परेश रावल की ‘द ताज स्टोरी’ अभी रिलीज़ भी नहीं हुई और पहले ही विवादों के घेरे में आ चुकी है।  (AI)
मनोरंजन

ताजमहल या तेजो महालय ? परेश रावल की फिल्म ने छेड़ा नया विवाद

परेश रावल (Paresh Rawal) की विवादित (Controversy) फिल्म (Film) 'द ताज स्टोरी (The Taj Story)' का पोस्टर सामने आते ही सोशल मीडिया पर बवाल मच गया। ताजमहल (Taj Mahal) को शिव मंदिर बताने वाले 'तेजो महालय' षड्यंत्र सिद्धांत से जुड़ते संकेतों ने आलोचकों को भड़काया, जबकि समर्थक इसे 'छिपे सच की खोज' बता रहे हैं।

न्यूज़ग्राम डेस्क

भारतीय सिनेमा में अक्सर ऐसी फ़िल्में बनती रही हैं, जो मनोरंजन से ज्यादा समाज में चर्चा और विवाद (Controversy) का कारण बन जाती हैं। परेश रावल (Paresh Rawal) की आने वाली फिल्म (Film) ‘द ताज स्टोरी (The Taj Story)’ भी उन्हीं में से एक है। इस फिल्म (Film) का पहला पोस्टर सामने आते ही इंटरनेट पर हंगामा मच गया और लोग इसे लेकर दो हिस्सों में बंट गए हैं। एक ओर समर्थक हैं, जो इसे छिपे हुए सच को सामने लाने वाला प्रयास बता रहे हैं, वहीं दूसरी ओर आलोचक हैं, जिनका मानना है कि यह फिल्म सांप्रदायिक तनाव बढ़ाने की एक और कोशिश है।

29 सितंबर 2025 को जब परेश रावल ने इस फिल्म का पहला पोस्टर जारी किया, तो सोशल मीडिया पर हलचल मच गई। पोस्टर में रावल को ताजमहल (Taj Mahal) का मुख्य गुंबद उठाकर उसके नीचे शिव की मूर्ति दिखाते हुए दिखाया गया है। इसके बाद पोस्टर पर लिखा है कि "क्या होगा अगर आपको जो कुछ भी सिखाया गया है, वह सब कुछ झूठ हो ? आपको बता दें सच्चाई छिपाया नहीं गया है, उसका आकलन किया जा रहा है।"

इस टैगलाइन ने लोगों की जिज्ञासा तो जगाई ही है, लेकिन साथ ही विवाद (Controversy) की चिंगारी भी भड़का दी है। बहुत से लोगों ने इसे महज़ "प्रोपेगैंडा" बताया है, जबकि कुछ ने कहा है कि फिल्म शायद "अनकही सच्चाइयों" को सामने लाने की सिर्फ कोशिश है। इसके बाद आपको बता दें पोस्टर रिलीज़ होते ही ट्विटर, फेसबुक और इंस्टाग्राम पर प्रतिक्रियाओं की बाढ़ आ गई। एक यूजर ने लिखा है, कि "एक और झूठी कहानी, जिसे बार-बार झुठलाया गया है। इतिहास वही है जो दस्तावेज़ों और सबूतों में दर्ज है, इसे बदलने की कोशिश समाज को बाँटने का काम करती है।"

दूसरे यूजर ने तंज कसते हुए कहा है, कि "भारत चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने का दावा करता है, लेकिन यहां लोग प्रचार और षड्यंत्रों में उलझे रहते हैं। क्या यही प्रगति है ? वहीं, एक तीसरे ने चिंता जताते हुए कहा है कि "यह फिल्म वोट बैंक की राजनीति को मज़बूत करेगी। उनका मानना है कि यह हिन्दू और मुसलमानों के बीच फूट डालने का यह एक तरीका खतरनाक है।" यानी, फिल्म ने रिलीज़ से पहले ही एक सामाजिक और राजनीतिक बहस को जन्म दे दिया है।

29 सितंबर 2025 को जब परेश रावल ने इस फिल्म का पहला पोस्टर जारी किया, तो सोशल मीडिया पर हलचल मच गई।

विवाद (Controversy) बढ़ने पर फिल्म के निर्माताओं स्वर्णिम ग्लोबल सर्विसेज प्राइवेट लिमिटेड ने एक बयान जारी किया और कहा कि "यह फिल्म किसी धार्मिक विवाद से संबंधित नहीं है। न ही हम यह दावा करते हैं कि ताजमहल के भीतर कोई शिव मंदिर है। यह फिल्म (Film) केवल ऐतिहासिक तथ्यों पर आधारित है। दर्शकों से निवेदन है कि वो इस फिल्म को देखकर ही अपनी राय बनाएं।" हालांकि, आलोचकों का मानना है कि यह बयान महज़ विवाद को शांत करने की सिर्फ कोशिश है, जबकि असली मकसद पहले ही पोस्टर और टीज़र से साफ हो चुका है।

14 अगस्त 2025 को जारी इस फिल्म के टीज़र में परेश रावल (Paresh Rawal) अदालत में खड़े होकर कहते हैं कि "अगर हम अभी अपने सवाल नहीं उठाते हैं, तो हमारी विरासत और हमारा अस्तित्व ही सवालों के घेरे में आ जाएगा।" आपको बता दें यह संवाद ही काफी था यह संकेत देने के लिए कि फिल्म ‘तेजो महालय’ षड्यंत्र सिद्धांत पर आधारित है।

ताजमहल को पूरी दुनिया में प्रेम का प्रतीक माना जाता है। शाहजहाँ ने इसे 17वीं शताब्दी में अपनी पत्नी मुमताज़ महल की याद में बनवाया था। इसमें दोनों की कब्रें आज भी मौजूद हैं। लेकिन 1989 में लेखक पी.एन. ओक ने दावा किया कि ताजमहल वास्तव में एक प्राचीन शिव मंदिर था, जिसे "तेजो महालय" कहा जाता था। उनका कहना था कि शाहजहाँ ने मुमताज़ की मौत के बाद पहले से मौजूद संरचना पर कब्ज़ा किया और उसे मकबरा बना दिया। इस सिद्धांत का मुख्य आधार ताजमहल के भीतर मौजूद 22 बंद कमरे बताए जाते हैं, जिनमें कथित तौर पर खज़ाना और मूर्तियाँ छिपी हुई हैं। हालांकि, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) ने 2018 में साफ कर दिया था कि ताजमहल (Taj Mahal) का निर्माण शाहजहाँ ने कराया था और इसके ऐतिहासिक दस्तावेज़ भी मौजूद हैं।

प्रसिद्ध इतिहासकार विलियम डेलरिम्पल का कहना है कि "यह विचार कि ताजमहल कभी शिव मंदिर था, यह उनके अनुसार एक दुर्भावनापूर्ण कल्पना है। इसका कोई वास्तविक आधार नहीं है और सभी विद्वान इसे नकारते हैं।" वह यह भी बताते हैं कि पी.एन. ओक ने और भी अजीब दावे किए थे, जैसे अर्जेंटीना का असली नाम अर्जुन-टीना था या इंग्लैंड का सैलिसबरी शहर असल में शिवपुरी था। यानी उनके दावों को ऐतिहासिक प्रमाणों का समर्थन नहीं है।

2014 में भाजपा नेता लक्ष्मीकांत बाजपेयी ने ताजमहल को वक्फ संपत्ति घोषित करने के मुद्दे पर बहस छेड़ी थी। आपको बता दें 2017 में विनय कटियार ने कहा कि मकबरे की छत से टपकता पानी इस बात का सबूत है कि वहाँ कभी शिवलिंग था। उसके बाद 2022 में भाजपा प्रवक्ता रजनीश सिंह ने 22 कमरों की जाँच की माँग की, और फरवरी 2025 में हिंदू महासभा के एक कार्यकर्ता ने ताजमहल के भीतर शिवलिंग पर गुप्त जलाभिषेक कर दिया। इन घटनाओं से साफ है कि ताजमहल का मुद्दा अक्सर राजनीति और धार्मिक विवादों का हिस्सा बनता रहा है।

आलोचकों का आरोप है कि ‘द ताज स्टोरी (The Taj Story)’ भी प्रोपेगैंडा फिल्मों की उसी श्रृंखला का हिस्सा है, जिसमें ‘द कश्मीर फाइल्स’, ‘द केरल स्टोरी (The Taj Story)’ और हाल ही में ‘द बंगाल फाइल्स’ शामिल हैं। इन फिल्मों पर भी यही आरोप लगा था कि वो समाज में नफ़रत और विभाजन की भावना को भड़काती हैं। इसके अलावा, यह तथ्य कि परेश रावल और निर्माता सुरेश झा दोनों भाजपा से जुड़े हैं, इस आरोप को और मज़बूत करता है।

ताजमहल (Taj Mahal) सिर्फ भारत ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया की धरोहर है। 1983 में इसे यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल घोषित किया गया था। यह हर साल लाखों सैलानियों को आकर्षित करता है और यह भारत की सांस्कृतिक पहचान का प्रतीक भी है। कई इतिहासकारों का मानना है कि ऐसे षड्यंत्र सिद्धांत असली इतिहास को तोड़-मरोड़कर पेश करते हैं और जनता को गुमराह करते हैं। इससे समाज में अविश्वास और विभाजन बढ़ता है।

परेश रावल की विवादित फिल्म 'द ताज स्टोरी' का पोस्टर सामने आते ही सोशल मीडिया पर बवाल मच गया।

निष्कर्ष

परेश रावल (Paresh Rawal) की ‘द ताज स्टोरी (The Taj Story)’ अभी रिलीज़ भी नहीं हुई और पहले ही विवादों (Controversy) के घेरे में आ चुकी है। फिल्म (Film) का पोस्टर और टीज़र इस ओर इशारा करते हैं कि यह फिल्म ताजमहल (Taj Mahal) को लेकर लंबे समय से चल रहे "तेजो महालय" षड्यंत्र सिद्धांत पर आधारित है। एक ओर फिल्म के निर्माता दावा कर रहे हैं कि यह ऐतिहासिक तथ्यों पर आधारित है, वहीं आलोचक इसे महज़ राजनीतिक एजेंडा मानते हैं।

अब सबकी नज़र 31 अक्टूबर 2025 पर टिकी है, जब यह फिल्म रिलीज़ होगी। तब पता चलेगा कि यह सचमुच इतिहास की कोई अनकही कहानी कहती है या फिर सिर्फ़ समाज में बहस और तनाव बढ़ाने का काम करती है। [Rh/PS]

संघर्ष और सफलता की प्रेरणादायक कहानी है जयदीप अहलावत की जर्नी!

"औरों में खुद को खोकर..." सुष्मिता सेन ने ताजा की यंग एज की यादें

हस्तशिल्प से लेकर पर्यटन तक जीएसटी सुधार से जम्मू-कश्मीर की अर्थव्यवस्था को मिलेगा बढ़ावा

नोएडा में डेंगू का प्रकोप : चार दिन में मिले 53 नए मरीज, मामलों की संख्या 419 पर पहुंची

महज 2 दिनों में 100 करोड़ के क्लब में शामिल हुई 'Kantara Chapter 1', 'सनी संस्कारी की तुलसी कुमारी' बुरी तरह पिछड़ी