बांग्लादेश में अल्पसंखयको के खिलाफ के खिलाफ बढ़ती हिंसा का दृश्य।  X
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बांग्लादेश : भीड़ ने युवक को पेड़ से लटका कर उसके शरीर को लगाई

गुरुवार (दिसंबर 2025) को दीपू चंद्र दास की मौत की खबर सामने आई, जिसने न सिर्फ बांग्लादेश बल्कि पूरी दुनिया को झकझोर कर रख दिया।

Author : न्यूज़ग्राम डेस्क
Reviewed By : Ritik Singh
  • बांग्लादेश की हुई नाज़ुक हालत।

  • युवक को पीट-पीट कर जान से मार डालना।

  • अल्पसंख्यकों के अस्तित्व पर बांग्लादेश में खतरा

जहाँ एक तरफ बांग्लादेश (Bangladesh)में “नए बांग्लादेश” बनाने का अभियान चल रहा है, जिसमें निष्पक्ष चुनाव, स्वतंत्र मीडिया, छात्रों और युवाओं के लिए अवसर, अल्पसंख्यकों की सुरक्षा जैसे विषयों पर ज़ोर दिया जा रहा है, वहीं हर दूसरे दिन बांग्लादेश से चौंका देने वाली खबरें सामने आ रही हैं। 12 दिसंबर 2025 को बांग्लादेशी छात्र नेता उसमान हादी की मृत्यु से पहले ही लोगों ने सड़कों पर कोहराम मचा रखा था। लोगों की भीड़ और उनके द्वारा किए जा रहे विरोध-प्रदर्शनों से पहले ही बांग्लादेश की स्थिति काफी नाज़ुक हो चुकी थी। लोग सड़कों पर उतरकर सरकार के खिलाफ आवाज़ उठा रहे हैं। अपने नेता की मौत से उत्पन्न आक्रोश में जनता पहले से ही बांग्लादेश में प्रदर्शन कर रही है, अख़बारों के दफ्तर जला रही है और सरकार से एक नए लोकतांत्रिक देश की मांग कर रही है।

वहीं दूसरी तरफ, गुरुवार (दिसंबर 2025) को दीपू चंद्र दास की मौत की खबर सामने आई, जिसने न सिर्फ बांग्लादेश बल्कि पूरी दुनिया को झकझोर कर रख दिया। दीपू चंद्र दास मैंमनसिंह ज़िले के रहने वाले थे। मृतक दीपू दास स्थानीय कपड़ा कारखाने में काम करते थे और इलाके में किराये पर कमरा लेकर रहते थे। खबर है कि बांग्लादेशी हिंदू नागरिक दीपू चंद्र दास को लोगों की भीड़ ने पीट-पीटकर मार डाला। इतना ही नहीं, हत्या के बाद भी भीड़ के आक्रोश ने सारी हदें पार कर दीं। लोगों ने उनके शव को एक पेड़ से लटकाया और फिर मृत शरीर में आग लगा दी। मौके पर मौजूद चश्मदीदों के अनुसार, गुरुवार 17 दिसंबर 2025 को बांग्लादेश में विश्व अरबी भाषा दिवस का कार्यक्रम चल रहा था और लोग उसे मना रहे थे। इसी दौरान भीड़ में यह अफवाह फैला दी गई कि दीपू चंद्र दास नामक व्यक्ति ने इस्लाम और पैग़म्बर मोहम्मद के खिलाफ आपत्तिजनक टिप्पणी की है। यह बात भीड़ में जंगल की आग की तरह फैल गई। बिना किसी सबूत या जांच के लोगों ने दीपू चंद्र दास को पीटना शुरू कर दिया और कानून को अपने हाथों में ले लिया। भीड़ ने दीपू चंद्र दास को तब तक पीटा जब तक उनकी जान नहीं निकल गई। इतना ही नहीं, नफरत और धर्म (Religion)की रक्षा के नाम पर लोगों ने उनके मृत शरीर तक को नहीं छोड़ा। शव को पेड़ से लटकाकर उसमें आग लगा दी गई। यह घटना पूरी दुनिया में चर्चा का विषय बन गई है, जहाँ सवाल अल्पसंख्यक धर्म और समुदाय के लोगों की सुरक्षा पर उठ रहे हैं।

जहाँ एक तरफ बांग्लादेश में लोकतांत्रिक देश (Democratic country) की मांग की जा रही है, वहीं दूसरी तरफ एक अल्पसंख्यक नागरिक को धर्म के नाम पर मार देने की खबर सामने आती है। क्या लोकतंत्र का मतलब कानून को अपने हाथ में लेना है? या फिर धर्म के नाम पर किसी अल्पसंख्यक की हत्या करना?

बांग्लादेश के मुख्य सलाहकार मोहम्मद यूनुस ने अपने बयान में कहा है, “हम मैंमनसिंह में एक हिंदू व्यक्ति की पीट-पीटकर हत्या की कड़ी निंदा करते हैं। नए बांग्लादेश में ऐसी हिंसा के लिए कोई जगह नहीं है। इस जघन्य अपराध के दोषियों को बख्शा नहीं जाएगा।” दूसरी ओर, सामरिक मामलों के जानकार और लेखक ब्रह्मा चेलानी ने बांग्लादेश की मौजूदा स्थिति पर एक्स (X) पर पोस्ट करते हुए लिखा कि, “बांग्लादेश खुले तौर पर अराजकता की ओर बढ़ रहा है। सरकार समर्थित उग्रवादियों ने अख़बारों के दफ्तरों में आग लगा दी है, भारतीय राजनयिकों के दफ्तरों और घरों पर हमला किया है। एक हिंदू अल्पसंख्यक युवक को पेड़ से बांधकर ज़िंदा जलाकर मार दिया गया।”

कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी ने भी बांग्लादेश में हिंदू युवक दीपू चंद्र दास की भीड़ द्वारा हत्या पर चिंता जताई है। उन्होंने कहा कि बांग्लादेश में हिंदू, ईसाई और बौद्ध अल्पसंख्यकों के खिलाफ बढ़ती हिंसा का संज्ञान लिया जाना चाहिए और उनकी सुरक्षा का मुद्दा मजबूती से उठाया जाना चाहिए।

इन दिनों बांग्लादेश की हालत काफी नाज़ुक बनी हुई है। अब देखना यह है कि इस मुद्दे पर बांग्लादेशी सरकार क्या ठोस कदम उठाती है, या फिर मोहम्मद यूनुस का यह बयान भी केवल एक राजनीतिक बयान बनकर ही रह जाएगा।

(Rh/PO)