भोपाल को मिला सांस की बीमारी का पहला अस्पताल मिला (IANS)
भोपाल को मिला सांस की बीमारी का पहला अस्पताल मिला (IANS) भोपाल
स्वास्थ्य

भोपाल को मिला सांस की बीमारी का पहला अस्पताल

न्यूज़ग्राम डेस्क

भोपाल गैस त्रासदी (Bhopal Gas Tragedy) के 38 साल बाद मरीजों को सांस की बीमारी का पहला अस्पताल मिला है। कुछ माह पहले शहर के ईदगाह हिल्स में रीजनल इंस्टीट्यूट फॉर रेस्पिरेटरी डिजीज की स्थापना की गई। यहां हर दिन करीब 150-200 मरीज आते हैं। इनमें से तीन से पांच फीसदी मरीज जहरील गैस से प्रभावित होते हैं।

मई में तत्कालीन राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद (Ram Nath Kovind) ने क्षेत्रीय श्वसन रोग संस्थान की आधारशिला रखी। इसके बाद टीबी अस्पताल परिसर में एक अलग श्वसन विभाग स्थापित किया गया। विभाग ने फेफड़ों के कैंसर (cancer), श्वसन रोगों और खराटरें की जांच और उपचार की सुविधा प्रदान की।

केंद्र सरकार ने विभाग के नए भवन के निर्माण के लिए लगभग 56 करोड़ रुपये स्वीकृत किए हैं। अनुमान है कि दो साल बाद एक ही छत के नीचे वेंटीलेटर, एक्स-रे, पैथोलॉजी, रेडियोलॉजी, अल्ट्रासाउंड, दवा समेत अन्य सुविधाएं यहां उपलब्ध होंगी।

नव स्थापित श्वसन विभाग अपनी तरह का मध्यप्रदेश में पहला और देश में चौथा है।

विशेष रूप से श्वसन रोगों के लिए पोस्ट ग्रेजुएट (पीजी) पाठ्यक्रम लगभग पांच साल पहले शुरू किया गया था और गांधी मेडिकल कॉलेज में रेस्पिरेटरी (केवल दो सीटों) में एमडी के पहले बैच ने इस साल मई में अपना पाठ्यक्रम पूरा किया।

आईएएनएस ने रेस्पिरेटरी के दो एमडी में से एक डॉ. हरीश पाठक से बात की, जो अब भोपाल में श्वसन विभाग में सेवा दे रहे हैं और यह समझने की कोशिश की कि जहरीली एमआईसी गैस रिसाव से प्रभावित मरीजों में अभी भी क्या लक्षण बने हुए हैं।

पाठक ने विशेष रूप से भोपाल में श्वसन विभाग की आवश्यकता के बारे में बताते हुए कहा कि यह फेफड़ों के रोगों से पीड़ित रोगियों की मदद कैसे करेगा।

उन्होंने कहा, एक अलग श्वसन विभाग की आवश्यकता पिछले कई वर्षों से महसूस की जा रही थी।

पाठक ने कहा, यदि आप एमआईसी गैस रिसाव से प्रभावित रोगियों के बारे में बात करते हैं, तो यह स्पष्ट होना चाहिए कि यह लाइलाज है। लेकिन यह इस बात पर निर्भर करता है कि कोई किस हद तक प्रभावित हुआ है या उस समय जहरीली गैस को कितना अंदर लिया है। एमआईसी गैस के लिए कोई विशिष्ट एंटीडोट नहीं था। जब तक किसी विशेष विषय पर गहन शोध नहीं हो जाता, तब तक आप सटीक दवा नहीं निकाल सकते। इसलिए मेरी राय में भोपाल गैस त्रासदी को चिकित्सा अनुसंधान में शामिल किया जाना चाहिए, ताकि भविष्य में ऐसी किसी आपदा के लिए चिकित्सा बिरादरी को तैयार करने में मदद मिल सके।

उन्होंने कहा कि जहरीली गैस रिसाव की घटना से प्रभावित लोग अक्सर सांस लेने में तकलीफ, फेफड़ों की समस्या और अन्य संबंधित लक्षणों की शिकायत करते हैं। सर्दियों के दौरान सूजन और उच्च रक्तचाप जैसी समस्याएं बढ़ जाती हैं, जब शहर में हवा की गुणवत्ता खराब हो जाती है। एक बात अच्छी है कि अब कोई नया रोगी नहीं आ रहा है।

भोपाल गैस आपदा के मरीजों का इलाज करने वाले पहले डॉक्टर डॉ. एच. एच. त्रिवेदी ने भी कहा कि एमआईसी गैस के लिए कोई एंटीडोट नहीं था और उस समय लोगों को बुनियादी दवाएं दी जाती थीं। उन्होंने कहा, 1984 में, जब भोपाल गैस त्रासदी हुई थी, तब मैं गांधी मेडिकल कॉलेज में प्रमुख था और हमने कई रोगियों का लगातार इलाज किया। डॉक्टरों की टीम ने बिना आराम के एक सप्ताह से अधिक समय तक काम किया। लेकिन मैं यह करने में संकोच नहीं करूंगा कि हमें पता नहीं था कि ऐसे रोगियों को कौन सी दवा दी जानी चाहिए क्योंकि हम एमआईसी गैस के प्रभाव से अनजान थे।

आईएएनएस/RS

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