शजर पत्थर Wikimedia
कला

शजर पत्थर, जिसपर खुद कुदरत करती है कारीगरी

दुनिया भर में शजर पत्त्थर केवल केन और नर्मदा में ही पाया जाता है जो अपनी प्राकृतिक कलाकृतियों के लिए दुनियाभर में मशहूर है।

Ritu Singh

शजर पत्थर, उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) के बाँदा (Banda) में पाया जाने वाला एक अनोखे किस्म का पत्थर है। इस पत्थर की खास बात ये है की यह अपनी चित्रकारी खुद करते है। स्थानीय लोगो का कहना है की शरद पूर्णिमा की रात जब चाँद की किरणे इन पत्थरो पर पड़ती है तो बीच में जो भी आकृति आती है वह इन पत्थरो पर उभर जाती है। वही वैज्ञानिको का मानना है की शजर पत्थरों पर उभरने वाली आकृतियाँ फंगस ग्रोथ है। जानकारों का यह भी कहना है की कोई भी दो शजर पत्थर एक जैसे नहीं होते सभी में कुछ अलग चित्र अलग रंग और रूप देखने को मिलता है। यह पत्थर अपने भीतर दिखने वाले इन्ही खूबसूरत चित्रों के लिए मशहूर है। शजर पत्थरो का इस्तेमाल आभूषणो (ornaments), सजावटी सामान व अन्य वस्तुओ में लगाने के काम आता है। इन्ही के साथ माना जाता है की यह हेल्थ प्रॉब्लम (Health problem) में भी बेहद फायदेमंद है। 

इन पत्थर से जुड़े कुछ दिलचस्प तथ्य 

दुनिया भर में शजर पत्त्थर केवल केन और नर्मदा (Narmada) में ही पाया जाता है जो अपनी प्राकृतिक कलाकृतियों के लिए दुनियाभर में मशहूर है।  

भारत (India) में जिस समय ईस्ट इंडिया कंपनी (East India Company) का शासन था, उस समय में ब्रिटैन (Britain) की महारानी क्वीन विक्टोरिया (Queen Victoria) के लिए दिल्ली के दरबार में नुमाइश लगाई गयी थी। उस नुमाइश में क्वीन को शजर पत्थर इतना पसंद आया की वह इन्हे अपने साथ ब्रिटैन ले गयी थी। 

केन नदी में यह पत्थर हमेशा से ही थे मगर इनकी पहचान लगभग 400 साल पहले हुई जब अरब (Arab) से आए लोगो ने इनकी खुबिया पहचानी। 

इन पत्थरो का नाम इनपर कुदरती रूप से उकेरी हुई पेड़ पत्ती, पक्षी की अलग अलग तरह की आकृतियों के कारण ही शजर पड़ा जिसका मतलब पारसी भाषा में पेड़ होता है। इस पत्थर की कीमत मुग़ल (Mughal) शासन के दौरान काफी बढ़ गयी थी। 

शजर पत्थर मुसलमानो में खास तौर पर बेहद लोकप्रिय है और यह हकीक के नाम से भी जाना जाता है। मुसलमान इस पत्थर पर आयते लिखवाना पसंद करते है खासतौर पर मक्का (Mecca) जाने वाले मुस्लमान इस पत्थर को अपने साथ लेकर जाते है। 

शहर उद्योग का हाल 

नदी से शजर पत्थर को निकलकर उसे काटने और तराशने की लम्बी प्रक्रिया के बाद ही इसकी असली सूरत सामने आती है और इसी के बाद इसकी कीमत तय की जाती है। इस उद्योग (industry) में लगे व्यवसाइयों का कहना है की पहले बाँदा में शजर के लगभग 70-80 कारखाने थे मगर ज्यादा लागत और काम आमदनी की वजह से लोगो की रूचि काम होती गयी और अधिकांश कारखाने बंद हो गए। इस वक़्त काफी कम कारखाने बचे हुए है जो शजर के काम को आगे बढ़ने के लिए नए तरीके खोज रहे है। 

नदी से निकालने के बाद इन पत्थरो पर बनी आकृतियों के अनुसार इन पत्थरो की कटाई, घिसाई, और पॉलिशिंग की जाती है।

बाँदा के कारीगरों ने शजर पत्थरो की कई सारी कलाकृतिया बनाई है जिनमे ताज महल (Taj Mahal) भी शामिल है। इस वक़्त कारीगर शजर पत्थर से राम मंदिर बनाने का काम कर रहे है।


Ritu Singh

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