Chattisgarh -जीवन के कुछ पड़ाव में छोटी-छोटी समस्याएं आते ही कई लोग हताश हो जाते है वे जीवन से हार मान लेते हैं। ऐसे ही लोगों के लिए एक नेत्रहीन प्रोफेसर मिसाल साबित हो रहे हैं। (Wikimedia Commons) 
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बचपन में था सिर्फ मां का सहारा, जन्म से ही थे नेत्रहीन आज है सहायक प्रोफेसर

आज बुधराम अपनी जिंदगी सामान्य रूप से जी रहे हैं। आज उनके परिवार में इनकी बूढ़ी मां के साथ इनकी पत्नी और बच्चे भी हैं।

न्यूज़ग्राम डेस्क

Chattisgarh - जीवन के कुछ पड़ाव में छोटी-छोटी समस्याएं आते ही कई लोग हताश हो जाते है वे जीवन से हार मान लेते हैं। ऐसे ही लोगों के लिए एक नेत्रहीन प्रोफेसर मिसाल साबित हो रहे हैं। सूरजपुर कॉलेज के यह सहायक प्रोफेसर जन्म से ही नेत्रहीन हैं। नेत्रहीन होने के बाद भी इन्होंने यह साबित कर दिखाया है कि यदि आप में दृढ़ संकल्प है तो कोई भी बाधा आपको मंजिल पाने से नहीं रोक सकती है। आज हम उस प्रोफेसर के बारे में बताने जा रहे हैं जो समाज के लिए तो एक मिसाल हैं और साथ ही आने वाले भविष्य में नेत्रहीन लोगों की प्रेरणा भी है।

केवल मां का था सहारा

बुधराम सूरजपुर के रेवती नारायण मिश्र कॉलेज में सहायक प्रोफेसर के पद पर तैनात हैं। यह अन्य प्रोफेसरों की तरह सामान्य इंसान नहीं हैं। बुधराम जन्म से ही नेत्रहीन हैं। उन्होंने अपनी नेत्रहीनता को अपनी कमजोरी बनाने की बजाय अपनी ताकत में तब्दील कर लिया। बचपन में ही उनके पिता की मृत्यु के बाद उनकी मां ने ही उनका पालन पोषण किया। गांव के एक गरीब मां के साथ दोनों आंख से अंधा बच्चा का पालन पोषण करना इतना आसान नहीं थी। लोग बुधराम और उनके मां को भीख मांग कर गुजारा करने के लिए कहते थे।

ऐसी कितनी ही कठिनाइयां पार करते हुए इस सहायक प्रोफेसर के जिंदगी में थोड़ी खुशियां आईं, लेकिन इन्होंने सभी चुनौतियों का सामना करते हुए आज दूसरों के लिए एक मिसाल बन गए हैं। आज बुधराम अपनी जिंदगी सामान्य रूप से जी रहे हैं। आज उनके परिवार में इनकी बूढ़ी मां के साथ इनकी पत्नी और बच्चे भी हैं।

कॉलेज के अनुसार बुधराम अन्य प्रोफेसर की तरह ही सामान्य रूप से उन्हें पढ़ाते तो हैं साथ ही साथ छात्रों के लिए वह प्रेरणा स्रोत भी हैं। (Wikimedia Commons)

दिव्यांगो के लिए बने मिसाल

सभी छात्र बुधराम का का सम्मान करते हैं।वहीं कॉलेज के अनुसार बुधराम अन्य प्रोफेसर की तरह ही सामान्य रूप से उन्हें पढ़ाते तो हैं साथ ही साथ छात्रों के लिए वह प्रेरणा स्रोत भी हैं। छात्रों को किताबी ज्ञान के साथ ही जिंदगी में चुनौतियों से लड़ने की भी शिक्षा देते है।

जो लोग अपनी विकलांगता को कमजोरी मांनते हुए हार मान जाते हैं। उनके लिए बुधराम सिर्फ समाज के लिए ही नहीं बल्कि विकलांग लोगों के लिए भी एक मिसाल है।

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