World fourth Largest Sea : सूखने के वजह से कई जहाज इसमें अटके रह गए क्योंकि उन्हें आगे का रास्ता नहीं मिला। (Wikimedia Commons) 
पर्यावरण

ग्लोबल वार्मिंग का कहर! सूख जा रहा है समुद्र, मत्स्य उद्योग हुआ पूरा बर्बाद

सबसे ज्यादा नुकसान मत्स्य उद्योग को हुआ, जो पूरी तरह से बर्बाद हो गई। इसके कारण बेरोजगारी बढ़ गई और साथ ही साथ आर्थिक नुकसान भी हुए। इस सागर के सूखने से प्रदूषण भी बढ़ गया और लोगों को सेहत से जुड़ी परेशानियों से भी बढ़ गई।

न्यूज़ग्राम डेस्क

World fourth Largest Sea : मार्च आते ही कई शहरों का तापमान बढ़ने लगा है दोपहर की तेज धूप गर्मी के दिन याद दिला रही है लेकिन ये कोई नया मामला नहीं है। बढ़ते ग्लोबल वार्मिंग की वजह से स्लिम्स नदी सूख गई थी। इसी प्रकार की त्रासदी का शिकार अरल सागर भी हुआ था। लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि अरल सागर कभी दुनिया का चौथा सबसे बड़ा समंदर था, जो कजाखस्तान और उत्तरी उज्बेकिस्तान के बीच मौजूद था। अब ये समुद्र तकरीबन 90 फीसदी तक सूख चुका है। पहले ये 68,000 किमी के इलाके में फैला था। सूखने के वजह से कई जहाज इसमें अटके रह गए क्योंकि उन्हें आगे का रास्ता नहीं मिला। 2017 में इस समंदर के सूखकर सिकुड़ने की पुष्टि नासा ने किया था।

इस समुद्र के सूखने से सबसे ज्यादा नुकसान मत्स्य उद्योग को हुआ, जो पूरी तरह से बर्बाद हो गई। इसके कारण बेरोजगारी बढ़ गई और साथ ही साथ आर्थिक नुकसान भी हुए। इस सागर के सूखने से प्रदूषण भी बढ़ गया और लोगों को सेहत से जुड़ी परेशानियों से भी बढ़ गई।

चार झीलों में बट गया था ये सागर

आपको बता दें कि अरल सागर को आइलैंड का समंदर कहा जाता था। इसमें 1534 द्वीप मौजूद हुआ करते थे लेकिन हैरानी की बात यह है कि पिछले 50 सालों में इसका 90 फीसदी से ज्यादा हिस्सा सूख चुका है। इसके सूखने की घटना को दुनिया की सबसे बड़ी पर्यावरण त्रासदी माना जाता है।1960 से इस सागर के सूखने का सिलसिला शुरू हुआ और 1997 तक उत्तरी अरल सागर, पूर्व बेसिन, पश्चिम बेसिन और सबसे बड़े हिस्से को दक्षिणी अरल सागर ये चार झीलों में बंट गया। इसके उपरांत 2009 तक अरल सागर का दक्षिण-पूर्वी हिस्सा पूरी तरह से सूख गया और दक्षिण-पश्चिमी हिस्सा पतली पट्टी में बदल गया।

इस सागर के सूखने से प्रदूषण बढ़ गया। (Wikimedia Commons)

लाख कोशिशों के बाद भी सूख गया ये सागर

रिपोर्ट्स के अनुसार, इसके सूखने की शुरुआत सोवियत संघ के एक प्रोजेक्ट के कारण हुई। जब 1960 में एक सिंचाई प्रोजेक्ट के लिए नदियों का बहाव मोड़ा गया। इसके बाद सागर को सूखने से बचाने के लिए कजाखस्तान ने डैम बनाना शुरू किया, जो 2005 में पूरा हुआ। इसके बाद 2008 में सागर में पानी का स्तर 2003 की तुलना में 12 मीटर तक बढ़ा था परंतु दुर्भाग्यवश तमाम कोशिशों के बाद भी सागर की स्थिति को सुधारा नहीं जा सका।

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