संत आनंद भारती उर्फ लक्कड़ बाबा भी प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के एक अपराजेय योद्धा रहे हैं। ब्रिटिश गवर्नर जनरल वारेन हेस्टिंग्स और ब्रिटिश फौज को भारत की आध्यात्मिक शक्ति के सामने नतमस्तक करने वाले अन्य कोई नहीं बल्कि लक्कड़ बाबा ही थे। 1857 की क्रांति की विफलता से राष्ट्रभक्त जनमानस में जो निराशा छाई थी उसे छांटने का काम भी बाबा ने ही अपनी मंडली के साथ देश भ्रमण पर निकल कर किया ।
आइए आज आपको लक्कड़ बाबा के जीवन का एक बहुत ही रोचक किस्सा सुनाते हैं यह बात उस समय की है जब वह अपनी टोली के साथ देश भ्रमण पर थे और उनकी टोली ने कलकत्ता में डेरा डाला हुआ था । शाम होते ही बाबा की मंडली और उसमें शामिल लगभग डेढ़ सौ संतों ने अलख निरंजन के जयघोष के साथ अपनी संध्या आरती शुरू की। नगाड़े , शंख, तुरही, झांझ, ढोल आदि वाद्य यंत्र बजाने शुरू किए जिससे समूचा क्षेत्र गूंज उठा। अंग्रेजी छावनी निकट होने के कारण आर्थिक की आवाज सुन कर अंग्रेज अफसर भड़क उठा और सिपाहियों की एक टुकड़ी के साथ वह साधुओं के डेरे तक जा पहुंचा और चिल्लाकर बोला- यह शोरगुल बंद करो। इस पर स्वामी जी ने निर्भीक और सहज स्वर में उत्तर दिया कि हम लोग शोर नहीं अपने भगवान की आरती कर रहे हैं और हमारे देश में आप हमें हमारे भगवान की पूजा करने से रोक कर बदतमीजी कर रहे हैं महोदय। बाबा का यह उत्तर सुन अंग्रेज भड़क उठा और बोला जुबान बंद करो अपनी जानते नहीं है ब्रिटिश शासन है तुम्हारा राज नहीं। इस पर बाबा भी तैश में आ गए और अंग्रेजी अफसर को डांटते हुए बोले " यदि तुम में हिम्मत है तो आरती बंद करा कर दिखाओ!" न जाने बाबा की इन शब्दों में कैसी अदृश्य शक्ति थी इसके बाद अंग्रेजी अफसर का मुंह सिल गया और वह एक शब्द भी नहीं बोल पाया।
अपने इस अपमान की बात अंग्रेजी अफसर छावनी लौट आया और शराब के सहारे अपनी आवाज वापस लाने की कोशिश की परंतु कोई असर नहीं हुआ। वह थक हार कर बाबा के डेरे के पास पहुंचा और उनसे इशारे से माफी मांगते हुए बोला कि ना जाने मेरी आवाज क्यों बंद हो गई है ?बाबा बड़े दयालु थे इसलिए उन्होंने उसे माफ कर दिया और बोले "जा बच्चा मगर कभी किसी करने वाले को मत रोना!" बस बाबा का इतना कहना था कि और अंग्रेजी अफसर की आवाज लौट आई। उसके मुंह से निकला ओ माई गॉड। इतना कहकर उसने संत को प्रणाम किया और वापस छावनी लौट गया मगर उसी दिन से जनसाधारण को दुबले पतले साधु की अदृश्य शक्ति का अहसास हो गया था।
वहीं दूसरी ओर जब इस घटना की खबर जनरल वारेन हेस्टिंग्स को लगी तो उन्होंने इस घटना को अंग्रेजी जाति का अपमान समझा और साधु को जिंदा जलाने का फरमान जारी कर डाला। जैसे ही अंग्रेजी सिपाही साधु को जलाने के लिए साधु के डेरे पर पहुंचे और ललकारते हुए बोले कि "अपने बाबा को सामने लाओ उन्हें जिंदा जलाने का आदेश है।" साधुओं से अपने गुरु का यह अपमान सहन नहीं हुआ और उन्होंने त्रिशूल और चिमटे उठा लिए किंतु बाबा सहज रूप से हंसते हुए सामने आए और बोले " चलो लगाओ आग ! आज मैं अंग्रेजी सरकार को भारत की आध्यात्मिक सामर्थ्य की झलक दिखलाता हूं ।" इतना कहकर वह अपने नियत स्थान पर पद्मासन बैठ गए एक साधु को जिंदा जलाया जा रहा है यह खबर जंगल में आग की तरह फैल गई हजारों लोग डेरे के समीप एकत्रित हो गए।
तत्पश्चात बाबा के चारों ओर लकड़ियों का ढेर चिनवा कर उसमें आग लगा दी गई । वारेन हेस्टिंग्स ने सोचा कि इस घटना से अंग्रेजी सरकार के प्रति लोगों के मन में दहशत फैल जाएगी पर इसका उल्टा ही हुआ। लकड़ियां जल जाने के बाद भी बाबा उसके भीतर हंसते हुए पद्मासन बैठे थे। बस फिर क्या था यह चमत्कार देख आम जनता के साथ-साथ अंग्रेजी अधिकारियों व सैनिकों ने भी अपने दांतों तले अंगुलियां दबा ली । हर तरफ बाबा की जय जयकार होने लगी। एक भारतीय संत की शक्ति के आगे अंग्रेजी सरकार छोटी पड़ गई । बाबा ने हंसते-हंसते वारेन हेस्टिंग्स से बोला कि देख लेना जिस तरह 90 मन लकड़ियां तुमने बेकार में फूंक दी, ठीक उसी तरह तुम्हारी हुकूमत भारत पर 90 वर्षों में खत्म हो जाएगी ऐसा कहा जाता है कि घटना की लंदन टाइम्स में प्रकाशित हुई थी। वारेन हेस्टिंग्स ने बाबा की यह भविष्यवाणी अच्छी तरह नोट कर ली थी ।और सत्य में ही बाबा की भविष्यवाणी सच साबित हुई और 1857 से 1947 तक यानी की नब्बे वर्षो में भारत से अंग्रेजी शासन का दाना पानी उठ गया।
(PT)