लोकतंत्र का विकास AI Generated
इतिहास

लोकतंत्र का विकास: लोगों की ताकत ने कैसे बदल दी दुनिया

प्राचीन ग्रीस से लेकर आज के आधुनिक लोकतंत्र तक, इंसानों ने बार-बार साबित किया है कि असली ताकत जनता की होती है। लोकतंत्र का विकास हमें यह कहानी सुनाता है कि कैसे लोगों ने राजा और तानाशाहों से अपनी आज़ादी और अधिकार वापस लिए।

न्यूज़ग्राम डेस्क

प्राचीन ग्रीस

लोकतंत्र (Democracy) की शुरुआत प्राचीन ग्रीस (Greece) से हुई। “लोकतंत्र” शब्द ग्रीक भाषा से बना है – डेमोस (Demos) यानी लोग (People) और क्राटोस यानी शासन। इसका मतलब है, “लोगों का शासन” (Rule by the People) लगभग 500 ईसा पूर्व, ग्रीस के नेता क्लेस्थनीज ने ऐसा सिस्टम बनाया जिसमें अब केवल राजा नहीं बल्कि आम लोग भी शासन में भाग ले सकते थे।

उस समय हर साल 500 पुरुष नागरिक चुने जाते और उन्हें कानून बनाने और प्रशासन देखने का काम मिलता। इन्हें यादृच्छिक (random) तरीके से चुना जाता ताकि कोई व्यक्ति या परिवार बार-बार सत्ता पर कब्ज़ा न कर ले। यह सोच उस ज़माने के लिए बहुत आगे की थी।

लेकिन यह लोकतंत्र का विकास अधूरा था क्योंकि इसमें सिर्फ आज़ाद पुरुष नागरिक शामिल थे। महिलाएँ, दास, बच्चे और विदेशियों को अधिकार नहीं थे। इसके बावजूद, ग्रीस ने दुनिया को दिखाया कि अगर लोगों को फैसले लेने का मौका दिया जाए तो समाज अलग तरह से चल सकता है। इतना ही नहीं, जो नागरिक सभा में भाग नहीं लेते थे, उन पर जुर्माना भी लगता था। इससे पता चलता है कि लोकतंत्र को जिम्मेदारी और भागीदारी दोनों की ज़रूरत होती है।

रोमन गणराज्य

प्राचीन रोम (Ancient Rome) में भी लोकतंत्र की एक नई दिशा देखने को मिली। 509 ईसा पूर्व में रोमवासियों ने अपने राजा को हटाकर गणराज्य (Republic) की स्थापना की। यहाँ व्यवस्था थोड़ी अलग थी। लोग सीधे फैसले नहीं लेते थे, बल्कि अपने प्रतिनिधि चुनते थे। यही से प्रतिनिधि लोकतंत्र की शुरुआत हुई।

रोम (Rome) में हर साल दो “कौंसुल” चुने जाते थे। ये दोनों मिलकर शासन करते और एक-दूसरे की ताकत को संतुलित रखते। शुरू में सिर्फ अमीर और बड़े परिवारों (पैट्रीशियन) के पास ही सत्ता थी। लेकिन समय के साथ आम जनता (प्लेबियन) ने आवाज़ उठाई और “काउंसिल ऑफ द प्लेब्स” (Council of the People) नाम की संस्था बनी। इससे आम लोगों को भी कानून बनाने और फैसले लेने में जगह मिली।

रोमन गणराज्य की सबसे बड़ी खासियत यह थी कि इसमें “चेक्स एंड बैलेंस” (Checks and Balance) यानी सत्ता को बाँटने और रोकने की व्यवस्था थी। आज की आधुनिक लोकतांत्रिक सरकारों में जो संसद, न्यायपालिका और कार्यपालिका के बीच संतुलन है, उसकी जड़ें यहीं से आईं। इस तरह लोकतंत्र का विकास रोम से और मज़बूत हुआ।

अमेरिका की धरती पर मूल लोकतंत्र

अक्सर लोग सोचते हैं कि लोकतंत्र यूरोप (Europe) से शुरू होकर दुनिया में फैला, लेकिन यह सच नहीं है। यूरोपियों से बहुत पहले, लगभग 1142 में, उत्तरी अमेरिका (North America) की भूमि पर “हॉडेनोशोनी संघ” बना था। इसमें कई मूल अमेरिकी जनजातियाँ शामिल थीं। उन्होंने “ग्रेट लॉ ऑफ पीस” नामक नियम बनाया, जो पूरी तरह सहमति और साझेदारी पर आधारित था। यहाँ नेता अकेले फैसला नहीं ले सकते थे। सभी कबीले मिलकर चर्चा करते और फिर सहमति से निर्णय लेते। अगर कोई नेता अपने कर्तव्यों में असफल होता तो उसे तुरंत हटा दिया जाता। यह सोच आज के लोकतंत्र की मूल भावना से बिल्कुल मेल खाती है।

इतना ही नहीं, अमेरिकी (America) संविधान (Constitution) बनाने वालों को भी इस व्यवस्था से प्रेरणा मिली। अमेरिका के “ग्रेट सील” पर जो बंधे हुए तीर दिखते हैं, वह इसी हॉडेनोशोनी संघ से लिया गया प्रतीक है, जो एकता और ताकत को दर्शाता है। लेकिन यह दुखद है कि जिन मूल अमेरिकियों ने लोकतंत्र की सीख दी, उन्हें खुद अमेरिकी नागरिकता 1924 में जाकर मिली। इस घटना ने दिखाया कि लोकतंत्र का विकास आसान नहीं था, यह एक लंबी और कठिन यात्रा रही।

ग्रीस ने दुनिया को दिखाया कि अगर लोगों को फैसले लेने का मौका दिया जाए तो समाज अलग तरह से चल सकता है।

मध्यकालीन यूरोप

मध्यकालीन यूरोप (Medieval Europe) में लोकतंत्र पीछे चला गया था। उस समय राजाओं और सामंतों के पास पूरी ताकत थी। आम लोगों की कोई सुनवाई नहीं होती थी। लेकिन धीरे-धीरे बदलाव शुरू हुआ। 1215 में इंग्लैंड (England) के राजा जॉन को “मैग्ना कार्टा” पर हस्ताक्षर करने पड़े। इस दस्तावेज़ ने पहली बार राजा की शक्ति को सीमित किया और यह तय किया कि राजा भी कानून के ऊपर नहीं है। यह छोटा कदम आगे चलकर बहुत बड़ा साबित हुआ।

फिर 1265 में इंग्लैंड में संसद की शुरुआत हुई। इसमें केवल अमीर ही नहीं, बल्कि आम लोगों के प्रतिनिधियों को भी जगह मिली। यही से यूरोप में लोकतंत्र का विकास दोबारा शुरू हुआ। यह बदलाव बताता है कि जब लोग मिलकर दबाव डालते हैं तो सबसे शक्तिशाली राजा को भी झुकना पड़ता है।

क्रांतियाँ: लोकतंत्र की पूरी दुनिया में लहर

18वीं शताब्दी में लोकतंत्र की दिशा बदलने वाली दो बड़ी क्रांतियाँ (Revolution) हुईं। पहली थी अमेरिकी क्रांति (American Revolution:1776) और दूसरी फ्रांसीसी क्रांति (French Revolution:1789) इन दोनों ने पूरी दुनिया को हिला दिया।

अमेरिकी क्रांति ने कहा कि शासन जनता की अनुमति से ही चल सकता है। वहीं फ्रांसीसी क्रांति ने “स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व” (Freedom, Equality) का नारा दिया। यह विचार इतनी तेजी से फैला कि दूसरे देशों ने भी राजाओं और तानाशाहों के खिलाफ आवाज़ उठानी शुरू कर दी। इन क्रांतियों ने दुनिया को सिखाया कि असली ताकत बंदूक या ताज में नहीं बल्कि लोगों की आवाज़ में है। यही से लोकतंत्र का विकास तेज़ी से आगे बढ़ा।

आधुनिक लोकतंत्र

आज के समय में लगभग हर देश ने लोकतंत्र का कोई न कोई रूप अपनाया है। फर्क सिर्फ इतना है कि अब सीधा लोकतंत्र (जैसा ग्रीस में था) नहीं है, बल्कि प्रतिनिधि लोकतंत्र है। लोग अपने प्रतिनिधि चुनते हैं और वही उनकी ओर से संसद (Parliament) या विधानसभा में कानून बनाते हैं। आधुनिक लोकतंत्र की खासियत यह है कि इसमें बहुमत की सरकार बनती है लेकिन अल्पसंख्यक यानी कम लोगों की भी रक्षा होती है। मशहूर लेखक अल्बर्ट काम्यू ने कहा था: “लोकतंत्र सिर्फ बहुमत का शासन नहीं है, बल्कि अल्पसंख्यक की सुरक्षा भी है।”

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इसके अलावा लोकतंत्र की एक और खूबसूरती है, चुनावों के ज़रिए शांतिपूर्ण सत्ता परिवर्तन। पहले के जमाने में राजा को हटाने के लिए युद्ध होता था, लेकिन आज लोकतंत्र में सिर्फ वोट की ताकत से सरकार बदल जाती है। यही असली सफलता है।

लोकतंत्र ने हमें यह भरोसा दिया है कि चाहे कितनी भी मुश्किलें हों, आख़िर में जीत जनता की ही होती है।

निष्कर्ष

लोकतंत्र का विकास हमें यह सिखाता है कि इंसान हमेशा बराबरी और आज़ादी चाहता है। प्राचीन ग्रीस (Ancient Greece) के सीधे लोकतंत्र से लेकर रोमन गणराज्य (Republic of Rome) के प्रतिनिधियों तक, मूल अमेरिकी परंपराओं से लेकर यूरोप की संसदों तक और फिर अमेरिकी व फ्रांसीसी क्रांतियों से आज के आधुनिक लोकतंत्र तक, यह सफर बेहद लंबा रहा है। आज लोकतंत्र दुनिया की सबसे मज़बूत और लोकप्रिय व्यवस्था है। इसमें गलतियाँ भी हैं, चुनौतियाँ भी हैं, लेकिन इसके बिना कोई समाज आगे नहीं बढ़ सकता। लोकतंत्र ने हमें यह भरोसा दिया है कि चाहे कितनी भी मुश्किलें हों, आख़िर में जीत जनता की ही होती है। (Rh/BA)

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