1977 का भारत राजनीति की आँधी में था। इमरजेंसी (Emergency 1975) के बाद पहली बार जनता पार्टी (Janta Party) की लहर उठी थी और सबको यकीन था कि कांग्रेस (Congress) को सत्ता से हटाकर एक नया युग शुरू होगा। इस नए युग की सबसे बड़ी उम्मीद थे बाबू जगजीवन राम (Babu Jagjivan Ram)। एक दलित नेता जिन्होंने स्वतंत्रता संग्राम से लेकर कैबिनेट तक लंबा सफर तय किया था। उनके भीतर प्रधानमंत्री बनने की पूरी संभावना थी, लेकिन तभी एक ऐसी तस्वीर सामने आई जिसने उनकी राजनीतिक यात्रा की दिशा ही मोड़ दी। एक दिन अचानक 'सूर्या' मैगजीन के कवर पर उनके बेटे सुरेश राम की एक महिला के साथ आपत्तिजनक तस्वीरें छप गईं। इस स्कैंडल (Scandal) ने देश को झकझोर दिया। नैतिकता, राजनीति और साज़िश, तीनों एक साथ आ गए। यह न सिर्फ भारत का पहला हाई-प्रोफाइल सेक्स स्कैंडल (Sex Scandal) बना, बल्कि यह एक नेता के भविष्य को भी निगल गया।
बाबू जगजीवन राम: दलितों की आवाज से सत्ता के शिखर तक
बाबू जगजीवन राम (Babu Jagjivan Ram) का जन्म 5 अप्रैल 1908 को बिहार के शाहाबाद जिले के चंदवा गांव में हुआ था। जन्म से ही उन्होंने छुआछूत और भेदभाव का सामना किया। लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी। बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी (Banaras Hindu University) और फिर कलकत्ता यूनिवर्सिटी से पढ़ाई कर उन्होंने अपने राजनीतिक करियर की नींव रखी। स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेकर वे कांग्रेस के सक्रिय नेता बनें। आज़ादी के बाद वे कई बार केंद्रीय मंत्री बने और विभिन्न मंत्रालयों की ज़िम्मेदारी संभाली, जैसे कि श्रम, रक्षा, कृषि और खाद्य।
उनकी राजनीतिक पकड़ इतनी मजबूत थी कि इंदिरा गांधी (Indira Gadhi) की कैबिनेट में भी उनकी अहम भूमिका थी। 1977 में जब कांग्रेस (Congress) का पतन हुआ और जनता पार्टी (Janta Party) ने सत्ता संभाली, तो जगजीवन राम को प्रधानमंत्री पद के लिए सबसे मजबूत दावेदार माना जा रहा था। लेकिन तभी आया एक ऐसा तूफ़ान जो सबकुछ बहा ले गया।
सुरेश राम की प्रचलित हुई तस्वीरें
सुरेश राम, बाबू जगजीवन राम (Babu Jagjivan Ram) के बेटे थे। राजनीति से वो सीधे तौर पर जुड़े नहीं थे, लेकिन अपने पिता की ऊँचाई की वजह से हमेशा चर्चा में रहते थे। कहा जाता है कि सुरेश पढ़े-लिखे और प्रतिभाशाली थे, लेकिन निजी जीवन में लापरवाह। उनकी निजी ज़िंदगी उस वक़्त विवादों में आ गई जब 1978 में 'सूर्या' मैगजीन में उनकी एक युवती के साथ अंतरंग तस्वीरें छपीं। वह युवती उनकी रखैल थी और ये तस्वीरें उनके निजी जीवन का हिस्सा थीं, लेकिन सार्वजनिक होते ही बवाल मच गया। ये तस्वीरें किसी होटल या घर की थीं, लेकिन इनका पब्लिश होना भारतीय राजनीति में किसी तूफ़ान से कम नहीं था।
सूर्या मैगज़ीन और मेनका गांधी का कनेक्शन
सूर्या मैगज़ीन उस वक्त एक तेजी से उभरती राजनीतिक-समाजसेवी पत्रिका थी, जिसकी संपादक खुद मेनका गांधी (Maneka Gandhi) थीं। मेनका, संजय गांधी की पत्नी थीं और उनका झुकाव हमेशा अपने पति के हितों के अनुसार रहा। कहा जाता है कि ये तस्वीरें उन्होंने जानबूझकर प्रकाशित कीं, ताकि जगजीवन राम को प्रधानमंत्री की दौड़ से बाहर किया जा सके। यह भी माना गया कि इस स्कैंडल के पीछे राजनारायण और चरण सिंह जैसे नेताओं का भी हाथ था, जो नहीं चाहते थे कि जगजीवन राम को इतनी ताकत मिले। एक मजबूत दलित नेता के प्रधानमंत्री बनने की संभावना कुछ लोगों को रास नहीं आई, और इस पूरे कांड में सुरेश राम एक मोहरा बन गए।
स्कैंडल का असर: राजनीति से नैतिकता का अंत?
इस कांड के बाद बाबू जगजीवन राम (Babu Jagjivan Ram) की छवि पर गहरा असर पड़ा। प्रधानमंत्री बनने की उनकी दावेदारी कमजोर पड़ गई। जनता पार्टी के भीतर भी उनके खिलाफ माहौल बनने लगा। विरोधियों ने नैतिकता का मुद्दा उठा लिया। यह सवाल कि अगर एक नेता अपने घर को नियंत्रित नहीं कर सकता, तो वह देश को कैसे संभालेगा? बाबूजी ने सार्वजनिक तौर पर कुछ नहीं कहा, लेकिन उनके मौन ने बहुत कुछ कह दिया। वो आहत थे, टूटे नहीं, लेकिन कभी फिर उतनी ऊंचाई तक नहीं पहुंचे, और उनका प्रधानमंत्री बनने का सपना भी अधूरा रह गया।
परिवार पर पड़ा असर लेकिन फिर बेटी का हुआ राजनीति में प्रवेश
इस कांड का असर सिर्फ बाबूजी तक नहीं रुका। परिवार के अन्य सदस्यों पर भी इसका प्रभाव पड़ा। लेकिन इसी बीच उनकी बेटी मीरा कुमार (Meira Kumar) ने खुद को राजनीति में स्थापित किया। बाद में वे लोकसभा स्पीकर बनीं और दलित महिलाओं की एक मज़बूत आवाज़ बनकर उभरीं। हालाँकि, सुरेश राम धीरे-धीरे राजनीति से दूर हो गए और सार्वजनिक जीवन से भी उनकी दूरी बनती चली गई। इस स्कैंडल के बाद उनकी ज़िंदगी के बारे में ज़्यादा जानकारी नहीं मिलती है।
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भारत का यह पहला सेक्स स्कैंडल सिर्फ एक व्यक्तिगत गलती नहीं थी, बल्कि एक सुनियोजित राजनीतिक चाल भी थी। बाबू जगजीवन राम जैसे नेता, जो दलित समाज के प्रतिनिधि बनकर उभरे थे, एक व्यक्तिगत दुर्घटना की वजह से अपने राजनीतिक करियर की ऊंचाई नहीं छू सके। इस घटना ने भारतीय राजनीति को एक बड़ा आईना दिखाया कि कैसे निजी जीवन की एक चूक सत्ता की सीढ़ी गिरा सकती है। यह एक कहानी है शक्ति, साजिश और शर्मिंदगी की, एक ऐसा सच जो आज भी इतिहास के पन्नों में दबा है, लेकिन सबकुछ कह जाता है। [Rh/SP]