अफ़ग़ानिस्तान (Sora AI) 
इतिहास

अफ़ग़ानिस्तान की आज़ादी: 106 साल बाद भी अधूरी स्वतंत्रता

अफ़ग़ानिस्तान ने 1919 में अंग्रेज़ों से स्वतंत्रता हासिल की थी। लेकिन आज, एक सदी बाद भी यह देश पूरी तरह स्वतंत्र नहीं है। सोवियत युद्ध, अमेरिकी हस्तक्षेप और तालिबान के राज ने लोगों की ज़िंदगी और महिलाओं के अधिकारों को लगातार प्रभावित किया है।

न्यूज़ग्राम डेस्क

स्वतंत्रता से पहले

अफ़ग़ानिस्तान (Afghanistan) हमेशा साम्राज्यों का चौराहा रहा है, यूनानी, मंगोल (Mangol), मुग़ल (Mughal) और फिर ब्रिटिश (British) व रूसी ताक़तों का दबदबा रहा। 19वीं सदी में यह "ग्रेट गेम" का हिस्सा बना। तीन अंग्रेज़-अफ़ग़ान युद्धों के बाद 19 अगस्त 1919 को रावलपिंडी संधि (Rawalpindi Agreement) हुई और देश को अपनी विदेश नीति पर नियंत्रण मिला। यही दिन आज़ादी का प्रतीक बना।

आधुनिक बनने की कोशिश (1920–1970)

राजा अमानुल्लाह ख़ान (Amanullah Khan) और बाद के शासकों ने शिक्षा और महिला अधिकारों पर ज़ोर दिया। काबुल (Kabul) की गलियों में महिलाएँ बिना परदे के निकलती थीं, अपनी पसंद के कपडे पहनती थी, स्कूल और विश्वविद्यालय जाती थीं। 1960 का काबुल "सेंट्रल एशिया का पेरिस" (Central Asia Ka Paris) कहलाया जाता था। अफ़ग़ानिस्तान (Afghanistan) परंपरा और आधुनिकता का मेल बनने की कोशिश कर रहा था।

सोवियत हमला और गृहयुद्ध (1979–1996)

1979 में सोवियत संघ (Soviet Union) ने अफ़ग़ानिस्तान (Afghanistan) पर कब्ज़ा किया। अमेरिका (America) और पाकिस्तान (Pakistan) ने मुजाहिदीन (Mujahideen) का समर्थन किया और लगभग 10 वर्षो तक यह युद्ध चला जिसमे मुजाहिदीन गोरिल्ला युद्ध (पहाड़ियों मै छुपकर दुश्मन पर हमला) किया करते थे। 1989 में सोवियत सेना गई, लेकिन गृहयुद्ध (Civil War) शुरू हो गया। 1996 तक तालिबान ने सत्ता संभाली और महिलाओं की शिक्षा व नौकरी पर पाबंदी लगा दी।को वोट करने का अधिकार दिया गया तब भी मौजूद था

महिलाओं की शिक्षा व नौकरी पर पाबंदी लगा दी। (Sora AI)

अमेरिकी दौर (2001–2021)

9/11 हमले के बाद अमेरिका (America) ने तालिबान (Taliban) सरकार को गिरा दिया और अफ़ग़ानिस्तान में एक लोकतांत्रिक व्यवस्था खड़ी करने की कोशिश की। इस दौरान एक नया संविधान बनाया गया, चुनाव कराए गए और जनता को वोट करने का अधिकार दिया गया। तालिबान के डर से घरों में कैद महिलाएँ फिर से स्कूल और विश्वविद्यालय जाने लगीं। वे नौकरियों, मीडिया, राजनीति और खेल तक में दिखाई देने लगीं। दुनिया के सामने अफ़ग़ानिस्तान एक बार फिर खुला और आधुनिक दिखने लगा। लेकिन तालिबान की हिंसा ख़त्म नहीं हुई और ग्रामीण इलाक़ों में वे लगातार युद्ध करते रहे। भ्रष्टाचार तब भी मौजूद था, लेकिन देश की आर्थिक स्वतंत्रता और सुरक्षा मज़बूत नहीं हो सकी। यानी बीस साल के इस दौर में अफ़ग़ानिस्तान (Afghanistan) ने आज़ादी का स्वाद तो चखा, लेकिन स्थिरता हासिल नहीं कर पाया।

तालिबान 2.0 (2021–अब तक)

अगस्त 2021 में अमेरिकी (America) सेना हटते ही तालिबान फिर काबुल (Kabul) में लौट आया। तालिबान की वापसी के बाद महिलाओं की शिक्षा पर रोक लगा दी गई। 6वीं कक्षा से ऊपर की पढ़ाई और विश्वविद्यालयों में लड़कियों का प्रवेश बंद कर दिया गया। महिलाओं को अधिकतर नौकरियों से हटा दिया गया और उन्हें कहा गया कि वे दोबारा परदे में रहें तथा बिना पुरुष अभिभावक के घर से बाहर न निकलें। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता कम हो गई। कागज़ पर अफ़ग़ानिस्तान स्वतंत्र है, लेकिन असल में लोग खासकर की महिलाएं अब भी बंधनों में जी रही हैं।

क्या यह देश सचमुच आज़ाद है? (Sora AI)

19 अगस्त 2025 को अफ़ग़ानिस्तान अपनी 106वीं आज़ादी की वर्षगाँठ मनाएगा। लेकिन सबसे बड़ा सवाल अब भी वही है: क्या यह देश सचमुच आज़ाद है? आज़ादी का मतलब केवल विदेशी ताक़तों से छुटकारा पाना ही नहीं होता, बल्कि इसका अर्थ होता है अपने नागरिकों को सुरक्षा, शिक्षा, रोज़गार और बराबरी के अधिकार देना। अफ़ग़ानिस्तान में बाहरी ताक़तों का दबाव, तालिबान की सख़्त हुकूमत और महिलाओं के अधिकारों को लगातार हानि इस आज़ादी को अधूरा बना देता है। जहाँ एक ओर झंडा और परेड आज़ादी का जश्न मनाते हैं, वहीं दूसरी ओर लाखों लोग, ख़ासकर महिलाएँ और बच्चे अब भी बंधनों में जी रहे हैं। (Rh/Eth/BA)

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