Operation Blue Star की बरसी पर बवाल Wikimedia Commons
इतिहास

Operation Blue Star की बरसी पर बवाल, जानिए क्या था यह ऑपरेशन?

6 जून को सुबह से शाम तक गोली चलती रही लेकिन रात में सेना ने जरनैल सिंह भिंडरावाले की लाश बरामद की जिसके बाद 7 जून की सुबह Operation Blue Star समाप्त हो गया।

Prashant Singh

ऑपरेशन ब्लू स्टार (Operation Blue Star) की बरसी पर अमृतसर (Amritsar) स्थित स्वर्ण मंदिर (Swarna Temple) में भीड़ ने खालिस्तान समर्थक नारे लगाए। इस बीच बवाल होना लाज़मी था। मौके पर लोग खालिस्तानी अलगाववादी जरनैल सिंह भिंडरावाले (Jarnail Singh Bhindranwale) की तस्वीरें लिए घूमते नजर आए।

आज ही के दिन 1984 में भारतीय सेना द्वारा हरमंदिर साहिब में Operation Blue Star के 38 साल पूरे हुए हैं। बता दें कि इस ऑपरेशन को भिंडरावाले और अन्य आतंकियों को ढेर करने के मकसद से चलाया गया था, जिसमें भारतीय सेना को सफलता प्राप्त हुई थी। पर इसके साथ ही कई निर्दोष नागरिकों की जान भी चली गई थी।

न्यूज़ रिपोर्ट्स के अनुसार, लोगों का एक समूह अमृतसर स्थित स्वर्ण मंदिर के प्रवेश द्वार पर जुटा, जिसके बाद वो खालिस्तानी समर्थक नारे लगाने लगे। इसके बाद लोगों ने जम कर बवाल किया।

आइए जानते हैं क्या है Operation Blue Star?

यह इंदिरा गांधी (Indira Gandhi) के मौत की एक ऐसी पटकथा मानी जाती है जिसे कहीं न कहीं स्वयं इंदिरा ने अपने शासन काल के दौरान लिखी थी, जिसमें 3 सेना अधिकारी समेत 83 सैनिक मारे गए, 248 घायल और इसके अलावा मरने वाले आतंकवादियों और अन्य की संख्या 492 थी।

1977 में Indira Gandhi की पंजाब में जबरदस्त हार

दरअसल, 1977 में आम चुनाव में इंदिरा गांधी की पंजाब में जबरदस्त हार के बाद प्रकाश सिंह बादल की अकाली दल की सरकार के हाथ पंजाब की सियासत आई। इसी वर्ष, 1977 में सिखों की धर्म प्रचार की प्रमुख शाखा 'दमदमी टकसाल' का जत्थेदार Jarnail Singh Bhindranwale को बनाया गया।

1977 में सिखों की धर्म प्रचार की प्रमुख शाखा 'दमदमी टकसाल' का जत्थेदार Jarnail Singh Bhindranwale को बनाया गया।

ये वही समय था जब Bhindranwale राजनीति का एक प्रमुख चेहरा बनकर पंजाब में उभर रहा था। ज्ञानी जैल सिंह (Giani Zail Singh) और संजय गांधी (Sanjay Gandhi) ने इसे राजनीति में मोहरा बनाने के लिए अपनी पारी चली। लेकिन उन्हें पता नहीं था कि यह भिंडरावाले ही उनके लिए सबसे बड़ी मुसीबत बनकर सामने आएगा। एक वरिष्ट पत्रकार कुलदीप नैयर ने अपनी किताब 'बियोंड द लाइंन एन ऑटोबायोग्राफी' में लिखते हुए बताया है कि संजय गांधी ने भिंडरावाले को रुपये देने की बात स्वयं स्वीकार की है। ऐसा करते हुए इन्हें इस बात की बिल्कुल भी भनक नहीं थी कि जरनैल सिंह भिंडरावाले आतंकवाद के रास्ते को अपना लेगा।

1980 में कांग्रेस की जबरदस्त जीत

1980 में कांग्रेस (Congress) ने 529 सीटों में से 351 सीटों के साथ जबरदस्त जीत हासिल की। प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने ज्ञानी जैल सिंह को गृहमंत्रालय सौंपा। इस चुनाव में एक और सबसे खास चीज यह थी कि, पंजाब में खोई हुई गद्दी कांग्रेस को वापस मिल गई। पर इसके साथ ही एक मुसीबत भी ताक लगाए बैठा था।

यदि समस्या की शुरुआत की बात की जाए तो यह मुद्दा पंजाब में दरबारा सिंह को मुख्यमंत्री बनाए जाने के बाद शुरू हुई। पंजाब में हार के बाद अकाली दल अपने पुराने मुद्दे, 1973 के 'अनंतपुर साहब रिजॉलूश' पर वापस चली गई, जिसमें चंडीगढ़ और नदियों के पानी के बंटवारे को लेकर एकतरफा मांग की गई थी। अकालियों और दरबारा सिंह सरकार में तनातनी बढ़ती चली गई। इसी दौरान पंजाब की राजनीति, भाषा और धर्म के विवादों में ढेर होने लगी। यह दौर जनगणना का चल रहा था जिसमें लोगों को धर्म और भाषा का ब्योरा देना पड़ता था। इसी दौरान एक अखबार 'पंजाब केसरी' ने हिंदी को लेकर एक मुहिम चला दी, जिससे माहौल और खराब हो गया। इन सबके बीच कट्टर सिख नाराज हो गए, जिनमें Bhindranwale एक प्रमुख व्यक्ति था।

Punjab Kesari के संपादक की हत्या

9 सितंबर 1981 को Punjab Kesari के संपादक लाला जगत नारायण (Lala Jagat Narain) की गोली मारकर हत्या कर दी गई। इसका इल्जाम जरनैल सिंह भिंडरावाले पर भी आया। 15 सितंबर को अमृतसर के गुरूद्वारा गुरुदर्शन प्रकाश से भिंडरावाले को गिरफ्तार कर लिया गया, पर पर्याप्त सबूत न होने के कारण उसे जमानत मिल गई। यह सब मामला भड़का ही हुआ था कि तभी इसमें पंजाब को अलग देश बनाने की मांग ने इसमें घी डाल दिया। खून-खराबा लगातार बढ़ता जा रहा था। भिंडरावाले भी रिहा होकर बाहर आ गया था। इसके बाद उसने दिल्ली में 1982 के नवंबर और दिसंबर महीने में होने वाले एशियाड खेल के खिलाफ विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया, जिसके बाद सुरक्षा के लिए हजारों गिरफ्तारियाँ की गईं।

9 सितंबर 1981 को Punjab Kesari के संपादक Lala Jagat Narain की गोली मारकर हत्या कर दी गई।

इस कार्यवाई ने कट्टर सिखों का गुस्सा और बढ़ा दिया। गुस्सा इतना कि जिसके आगे नरम पंथियों की आवाज भी दब गई। प्रतिक्रिया ये हुई कि पंजाब के डीआईजी एएस अटवाल की हत्या स्वर्ण मंदिर के सीढ़ियों पर कर दी गई और लाश घंटों सीढ़ियों पर पड़ी रही। खौफ इस कदर था कि किसी की हिम्मत नहीं हो रही थी कि कोई लाश को जाकर हटा सके। लाश को हटाने के लिए मुख्यमंत्री दरबारा सिंह ने जरनैल सिंह भिंडरावाले से मिन्नत की। इस तरह की परिस्थिति को देखते हुए इंदिरा गांधी ने ज्ञानी जैल सिंह से स्वर्ण मंदिर के अंदर पुलिस भेजने की सलाह मांगी पर उन्होंने इनकार कर दिया। इससे भिंडरावाले के हौसले और बुलंद हो गए। नतीजा ये हुआ कि पंजाब में हालात बद से बदतर होते चले गए। इस सब के बीच अकाली दल अपने अनंतपुर साहब के रिजॉलूशन को पास करने के आलाप पर टिका रहा।

हिंदुओं को चुन-चुन कर मारा गया

5 अक्टूबर, 1983 को सिख चरमपंथियों ने कपूरथला से जालंधर जा रही बस को रोक कर उसमें सवार हिन्दू यात्रियों को चुन-चुन कर मार डाला। इस घटना के अगले ही दिन इंदिरा गांधी ने दरबारा सिंह की सरकार को हटाते हुए पंजाब में राष्ट्रपति शासन लगा दिया। पर इससे भी कोई फरक नहीं पड़ा, मार-काट का मंजर जस का तस बना रहा।

15 दिसंबर, 1983 को भिंडरावाले ने अपने हथियार बंद साथियों के साथ स्वर्ण मंदिर में कब्जा जमाते हुए अकाल तख्त पर कब्जा कर लिया। अकालतख्त का अर्थ है, एक ऐसा सिंहासन जो अनंतकाल के लिए बना हो। यहीं से सिख धर्म के लिए फरमान जारी कीए जाते हैं। अकालतख्त के कब्जे का विरोध होता रहा पर बेपरवाह भिंडरावाले ने हिंसा और मार-काट का दौर जारी रखा। भिंडरावाले ने सीधे-सीधे दिल्ली सरकार को चुनौती देते हुए पंजाब को अलग देश बनाने की मांग आगे कर दी जिसने इंदिरा गांधी की मुश्किलें और बढ़ा दीं।

आखिरकर 1 जून, 1984 का वो दिन आ ही गया जब पंजाब को सेना के हवाले करते हुए एक ऑपरेशन शुरू किया गया। मेजर जनरल कुलदीप सिंह की अगुवाई में इस ऑपरेशन का कोड वर्ड 'Operation Blue Star' रखा गया। सेना की 9वीं डिवीजन, स्वर्ण मंदिर तरफ बढ़ी और 3 जून को पत्रकारों को अमृतसर से बाहर करते हुए पाकिस्तान से लगती सीमा को सील कर दिया गया। सेना ने मंदिर परिसर में रह रहे लोगों को बाहर आने को कहा पर बार-बार की अपील के बाद भी 5 जून को 7 बजे तक सिर्फ 129 लोग ही बाहर आए।

इसके बाद 5 जून, 1984 को शाम 7 बजे सेना ने कार्यवाई शुरू कर दी। रात भर दोनों तरफ से गोली बारी चलती रही और अगली सुबह, 6 जून को सुबह 5 बज कर 20 मिनट पर तय हुआ कि अकालतख्त में छुपे आतंकियों को निकालने के लिए टैंकों को लगाया जाए। ऑपरेशन के दौरान बहुत नुकसान हुआ जिसमें बहुमूल्य दस्तावेजों और किताबों की लाईब्रेरी में आग लग गई, कई गोलीयां हरमंदर साहब की तरफ भी गई, और अकालतख्त को भी भारी नुकसान हुआ।

Bhindranwale की मौत के साथ Operation Blue Star समाप्त हुआ

6 जून को सुबह से शाम तक गोली चलती रही लेकिन रात में सेना ने जरनैल सिंह भिंडरावाले की लाश बरामद की जिसके बाद 7 जून की सुबह Operation Blue Star समाप्त हो गया। घटना के बाद पंजाब का माहौल बेहद तनावपूर्ण बन गया। रक्षा राज्यमंत्री केपी सिंहदेव ने इंदिरा गांधी को ऑपरेशन सफल होने की जानकारी दी जिसके बाद इंदिरा गांधी को भी इतनी मौतों की संख्या सुनकर झटका लगा, क्योंकि उनको इस बात का अंदाजा नहीं था कि इस कार्यवाई में इतने लोग मारे जाएंगे।

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