History Of 3rd September [Sora Ai] 
इतिहास

3 सितंबर: जाने इस दिन से जुड़ी कुछ खास घटनाएं

3 सितंबर विश्वभर में यादगार तारीखों में से एक है, किन्तु भारत के परिप्रेक्ष्य में भी इस दिन कुछ उल्लेखनीय घटनाएँ दर्ज हैं। चाहे वह ब्रिटिश शासन के दौर में घोषित आपातकाल हो या स्वतंत्रता बाद की घटनाएँ।

न्यूज़ग्राम डेस्क

3 सितंबर विश्वभर में यादगार तारीखों में से एक है, किन्तु भारत के परिप्रेक्ष्य में भी इस दिन कुछ उल्लेखनीय घटनाएँ दर्ज हैं। चाहे वह ब्रिटिश शासन के दौर में घोषित आपातकाल हो या स्वतंत्रता बाद की घटनाएँ। 1939 में ब्रिटिश भारत में दूसरे विश्व युद्ध से जुड़े ऐतिहासिक निर्णय लिए गए, और 1564 में एक उपनिवेशवादी प्रशासनिक बदलाव इस दिन हुआ। ये घटनाएँ भारतीय इतिहास के विभिन्न युगों, औपनिवेशिक, राजनीतिक और ग्लोबल युद्धों के प्रभाव से हमारी जुड़ाव को दर्शाती हैं। आइए जानते हैं 3 सितंबर (History Of 3rd September) के दिन से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण घटनाओं, उपलब्धियों और व्यक्तित्वों के बारे में।

3 सितंबर 1564: एंटोनियो डी नोरोन्या का वायसराय नियुक्ति

Antonio de Noronya [Sora Ai]

3 सितंबर 1564 को पुर्तगाली उपनिवेश प्रशासन के अंतर्गत, एंटोनियो डी नोरोन्या (Antonio de Noronya) को भारत का नया वायसराय नियुक्त किया गया था। यह नियुक्ति भारतीय उपमहाद्वीप में पुर्तगाली प्रभाव और शासन व्यवस्थाओं की रणनीति से जुड़ी थी। वायसराय का पद उपनिवेशवादी नियंत्रण और प्रशासन में केंद्रीय भूमिका निभाता था। डी नोरोन्या की नियुक्ति उस युग में समुद्री मार्गों, व्यापारिक नियंत्रण, और क्षेत्रीय शक्ति संतुलन में महत्वपूर्ण बदलाव का सूचक थी। यह घटना उपमहाद्वीपीय इतिहास में औपनिवेशिक प्रशासकीय संरचना का एक महत्वपूर्ण उदाहरण है।

3 सितम्बर 1783: ट्रीटी ऑफ़ पेरिस

Treaty Of Paris [Wikimedia Commons]

3 सितम्बर 1783 को ट्रीटी ऑफ़ पेरिस (Treaty Of Paris) पर हस्ताक्षर से अमेरिकी स्वतंत्रता संग्राम आधिकारिक रूप से समाप्त हुआ और संयुक्त राज्य अमेरिका की संप्रभुता को ब्रिटेन ने मान्यता दी। इस संधि ने सीमाएँ, मत्स्यन अधिकार, युद्ध-बन्दियों की रिहाई और ऋणों के निपटान जैसे मुद्दों को परिभाषित किया। राजनीतिक-कूटनीतिक स्तर पर यह यूरोपीय उपनिवेशवाद के नक़्शे में बड़ा बदलाव था और अटलांटिक पार लोकतांत्रिक-गणतांत्रिक प्रयोग को वैधता मिली। संधि के दीर्घकालिक प्रभावों में अंतरराष्ट्रीय क़ानून-व्यवस्था, व्यापारी मार्गों का पुनर्संतुलन और नई गणराज्य की संस्थाओं का विकास शामिल है, जिसने आगे वैश्विक राजनीति को प्रभावित किया।

3 सितंबर 1896: एझवा समुदाय द्वारा अधिकारों की मांग

Ezhava Community [Wikimedia Commons]

3 सितंबर 1896 को पद्मनाभन पाल्पू (Padmanabhan Palpu) के नेतृत्व में 13,176 सदस्यों वाले एझवा समुदाय (Ezhava Community) ने ट्रावनकॉर शासक को एझवा मेमोरियल (Ezhava Memorial) नामक एक ज्ञापन प्रस्तुत किया। इस आंदोलन ने सामाजिक न्याय की दिशा में सुधार की शुरुआत की, जहाँ दलित समुदायों ने न्याय और बराबरी की मांग की। यह घटना भारत में सामाजिक सुधार की लड़ाई और निचली सामाजिक जातियों के अधिकारों के संघर्ष का एक महत्वपूर्ण कदम थी।

3 सितंबर 1939: ब्रिटिश भारत में आपातकाल की घोषणा

Emergency During World War 2 [Wikimedia Commons]

3 सितंबर 1939 को ब्रिटिश भारत में तत्कालीन वाइसराय लॉर्ड लिनलिथगो (Lord Linlithgow) ने औपचारिक रूप से आपातकाल (Emergency) की घोषणा की, जब यूरोप में द्वितीय विश्व युद्ध भड़क चुका था। इस निर्णय ने भारतीय प्रशासनिक व्यवस्था पर गहरा प्रभाव डाला। भारतीय राजनीति में यह एक महत्वपूर्ण मोड़ था क्योंकि कांग्रेस और अन्य राष्ट्रीय नेताओं को युद्ध के प्रति अपनी प्रतिक्रिया निर्धारित करनी थी। इस अवधि में सरकार के पास व्यापक अधिकार थे और ब्रिटिश सत्ता ने अपनी नियंत्रण शक्ति को और मजबूत किया। यह घटना स्वतंत्रता आंदोलन की दिशा और प्रश्नों को नई रूपरेखा में ला खड़ी हुई।

3 सितम्बर 1976: वाइकिंग-2 का मंगल पर सफल अवतरण

Viking-2 mission [Wikimedia Commons]

नासा के वाइकिंग-2 मिशन (Viking-2 mission) का लैंडर 3 सितम्बर 1976 को मंगल के यूटोपिया प्लैनिटिया क्षेत्र में सफलतापूर्वक उतरा, छह सप्ताह पहले उतरे वाइकिंग-1((Viking-1) के बाद दूसरी ऐतिहासिक लैंडिंग। वाइकिंग-2 (Viking-2) ने सतह-छवियाँ, मौसम, मिट्टी-रसायन और जीवविज्ञान प्रयोग किए; जीवन-संकेतों पर निष्कर्ष विवादित रहे, पर मिशन ने मंगल के वातावरण, धूल-आँधियों और प्राचीन जल-प्रवाह के संकेतों पर असाधारण आँकड़े दिए।

3 सितम्बर 2017: उत्तर कोरिया का छठा परमाणु परीक्षण

"Hydrogen Bomb" [wikimedia Commons]

3 सितम्बर 2017 को उत्तर कोरिया (North Korea) ने पुंग्ये-री स्थल पर अपना छठा और अब तक का सबसे बड़ा अंडरग्राउंड परमाणु परीक्षण किया, जिसे “हाइड्रोजन बम” ("Hydrogen Bomb") बताया गया। परीक्षण से M 6.3 का भूकंपीय सिग्नल दर्ज हुआ और कुछ ही मिनट बाद गुफ़ा धँसने जैसी द्वितीयक घटना भी रिकॉर्ड हुई। वैश्विक निंदा, प्रतिबंधों की कड़ी और उत्तर-पूर्व एशिया में सुरक्षा-तनाव बढ़े। इस घटना ने DPRK की डिटरेंस-रणनीति, मिसाइल-मेटिंग दावे और अंतरराष्ट्रीय अप्रसार-व्यवस्था के लिए जटिल चुनौतियाँ पैदा कीं; तकनीकी विश्लेषणों ने विस्फोट-शक्ति को बहुत उच्च आँका और देर-से रेडियोन्यूक्लाइड लीक के संकेत भी मिले।

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