Seth Chunnamal saved Fatehpuri Masjid: इसका निर्माण 1650 में मुगल बादशाह की बेगम फतेहपुरी ने कराया था।(Wikimedia Commons) 
इतिहास

लाला चुन्ना मल ने ही फतेहपुर सीकरी को अग्रेजों से बचाया, सबसे अमीर लोगों में थे शामिल

न्यूज़ग्राम डेस्क

Seth Chunnamal saved Fatehpuri Masjid: उत्तर प्रदेश पूरे साल पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र होता है, लेकिन अगर हम आगरा की बात करें तो यहां का फतेहपुर सीकरी काफी पुराना और नायाब है। इसका निर्माण 1650 में मुगल बादशाह की बेगम फतेहपुरी ने कराया था। लेकिन क्या आप जानते हैं 1857 के विद्रोह के बाद, ब्रिटिश सरकार ने कई मुस्लिम-स्वामित्व वाली संपत्तियों को जब्त कर लिया था, जिनमें फतेहपुरी मस्जिद भी शामिल थी? अंग्रेजों ने तो इस मस्जिद को बेचने का फैसला भी कर लिया था ताकि इसे गिराकर वहां नई इमारत बनाई जा सके। मगर उस समय दिल्ली के सबसे अमीर लोगों में शुमार लाला चुन्नामल मुसलमानों के सहायक बनकर सामने आए। उन्होंने उस समय इस मस्जिद को 11,000 रूपए में खरीद कर भाईचारा का संदेश दिया।

कौन थे लाला चुन्ना मल

लाला चुन्ना मल अपने समय के अमीर व्यक्तियों में से एक थे। वह ब्रिटिश भारत के पहले नगरपालिका आयुक्त थे। लाला चुन्ना मल दिल्ली-लंदन बैंक के प्रमुख शेयरधारक भी थे। वह शहर में गाड़ी और फोन रखने वाले पहले शख्स थे। लाला चुन्ना मल की हवेली की गिनती पुरानी दिल्ली की ऐतिहासिक इमारतों में की जाती है। दरअसल, यह हवेली उन्होंने 1848 में बनवाई थी, जो चांदनी चौक के मुख्य बाजार में स्थित है। आज भी उनके परिवार की छठी पीढ़ी इस हवेली में रहती है।

आज भी उनके परिवार की छठी पीढ़ी इस हवेली में रहती है। (Wikimedia Commons)

20 साल बंद रही मस्जिद

लाला चुन्ना मल ने जब नीलामी में फतेहपुरी मस्जिद खरीदी तो उस समय इलाके में कोई मुसलमान नहीं रहता था, जो इबादत कर सके। लेकिन इसके बाद भी उन्होंने मस्जिद को गिराया नहीं, बल्कि उसे बंद कर दिया। 20 साल बाद 1877 में जब विक्टोरिया इंग्लैंड की महारानी बनीं तो दिल्ली दरबार का आयोजन किया गया। उस समय अंग्रेजों ने मुसलमानों के उस इलाके में रहने पर लगा प्रतिबंध समाप्त कर दिया। लेकिन अंग्रेजी हुकूमत ने फतेहपुरी मस्जिद को अधिग्रहित कर लिया। अब मुसलमान इस मस्जिद में नमाज पढ़ सकने के लिए आजाद थे। लेकिन मस्जिद पर अंग्रेजों का कब्जा हो गया, इसलिए इसका मालिकाना हक रखने वाले लाला चुन्ना मल को मुआवजा दिया गया। उन्हें ब्रिटिश हुकूमत ने मस्जिद के बदले चार गांवों की जागीर प्रदान की।

बहादुर शाह जफर भी लेते थे कर्ज

कहा जाता है कि वे इतने अमीर थे कि मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर भी उनसे कर्ज लेते थे। 1857 की क्रांति के समय भी बहादुर शाह जफर को पैसों की जरूरत हुई तो उन्होंने लाला से कर्ज मांगा। लेकिन चुन्ना मल ने इनकार कर दिया। लेकिन इसके बाद वह शहर में नहीं रुके और अपनी ज्यादातर संपत्ति भी कहीं और ट्रांसफर कर दी। लेकिन बाद में जब उन्हें अपनी छवि सुधारने का मौका मिला तो वे नीलामी में मस्जिद खरीदकर अपनी छवि को बचा लिया।

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