Takshashila University : ये विश्वविद्यालय तक्षशिला शहर में स्थित था, जो प्राचीन भारत में गांधार जनपद की राजधानी और एशिया में शिक्षा का प्रमुख केंद्र था।(Wikimedia Commons) 
इतिहास

प्राचीन भारत की पहचान था तक्षशिला विश्वविद्यालय, आइए जानें किसने किया इसे तबाह

यहां केवल धार्मिक शिक्षा ही नहीं बल्कि भाषाओं, कानून, ज्योतिष, खगोलशास्त्र और तार्किकता जैसे बातों की पढ़ाई होती थी। ये विश्व विद्यालय अपनी विज्ञान, चिकित्सा और कलाओं की शिक्षा के लिए प्रसिद्ध था।

न्यूज़ग्राम डेस्क

Takshashila University : शिक्षा उत्तम जीवन जीने के लिए काफ़ी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। बिना शिक्षा के जीवन पशु के जीवन के समान माना जाता है। ऐसे में जरा सोचिए यदि तक्षशिला विश्वविद्यालय जो दुनिया का सबसे पहला विश्वविद्यालय माना जाता है, वो यदि नष्ट न हुआ होता, तो आज विश्व कितना आगे होता। ये विश्वविद्यालय तक्षशिला शहर में स्थित था, जो प्राचीन भारत में गांधार जनपद की राजधानी और एशिया में शिक्षा का प्रमुख केंद्र था। ये विश्वविद्यालय विशुद्ध तौर पर भारतीय संस्कृति का ही प्रतिनिधित्व करता था लेकिन अब ये भारत में नहीं बल्कि पाकिस्तान में स्थित है।

यह विश्वविद्यालय छठवीं से सातवीं ईसा पूर्व में तैयार हुआ था। यहां भारत के साथ - साथ पूरे एशियाभर से विद्वान पढ़ने के लिए आते थें। इनमें चीन, सीरिया, ग्रीस और बेबीलोनिया भी शामिल थें। इस विश्वविद्यालय का जिक्र पौराणिक कथाओं में भी मिलता है। आपको बता दें कि इस विश्वविद्यालय का नींव श्रीराम जी के भाई भरत ने अपने पुत्र तक्ष के नाम पर रखा था।

विज्ञान के साथ धर्म की भी होती थी पढ़ाई

यहां केवल धार्मिक शिक्षा ही नहीं बल्कि भाषाओं, कानून, ज्योतिष, खगोलशास्त्र और तार्किकता जैसे बातों की पढ़ाई होती थी। ये विश्व विद्यालय अपनी विज्ञान, चिकित्सा और कलाओं की शिक्षा के लिए प्रसिद्ध था। यहां छात्र वेद, गणित, व्याकरण और कई विषयों की शिक्षा लेते थे। यहां लगभग 64 विषय पढ़ाए जाते हैं, जिनमें राजनीति, समाज विज्ञान और यहां तक कि राज धर्म भी शामिल था इसके साथ ही युद्ध से लेकर अलग-अलग कलाओं की शिक्षा भी मिलती थी, जिसमें तीरंदाजी भी सिखाई जाती थी।

इसका पता 1863 में लगा, जब पुरातात्विक खुदाई के दौरान जनरल कनिंघम को यहां के अवशेष मिले।(Wikimedia Commons)

आक्रमण के कारण खत्म हो गया ये विश्वविद्यालय

इस विश्वविद्यालय पर अनेक आक्रमणों हुए, जिससे ये भव्य विश्वविद्यालय खत्म हो गया।आपको बता दें कि इसका पता 1863 में लगा, जब पुरातात्विक खुदाई के दौरान जनरल कनिंघम को यहां के अवशेष मिले। इससे शहर के अलग-अलग पहलू एक एक करके सामने आने लगे। 5वीं ईस्वीं में चीन से बौद्ध भिक्षु फाहियान यहां आए थे। उन्होंने शहर के साथ विश्वविद्यालय को अपने पूरे भव्य रूप में देखा था परंतु 7वीं ईस्वीं में जब चीन के एक अन्य भिक्षु श्यानजांग आए तो उन्हें शहर में वीरानी और मलबा ही दिखा।

कुछ इतिहासकार के मुताबिक शक और हूण ने भारत पर आक्रमण किया था लेकिन उसे सिर्फ लूटा था, नष्ट नहीं किया था। उनके मुताबिक अरब आक्रांताओं ज्ञान के इस शहर को पूरी तरह से इसलिए खत्म कर दिया क्योंकि यहां से कोई विद्वान न निकल सकें। छठवीं सदी में यहां पर अरब और तुर्क के मुसलमानों ने आक्रमण करना शुरू किया और बड़ी संख्या में तबाही मचाई। वो तबाही इतना भयानक था कि आज भी यहां पर तोड़ी हुई मूर्तियों और बौद्ध प्रतिमाओं के अवशेष पाए जाते हैं।

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