श्रीगौरी (Shreegauri Sawant) का जन्म पुणे में एक पुलिस अफसर के घर में हुआ था, जिनका उस वक्त नामकरण गणेश हुआ। महज 7 साल की उम्र में ही उनकी मां का निधन हो गया था। गणेश ने शुरुआत से ही लड़कों की तरह रहकर कपड़े पहनने पसंद नहीं किया था। वे टीवी पर महिलाओं को देखकर अपनी तस्वीर में भी उन्हें महसूस करते थे, हालांकि उनके पिता को गणेश के लड़कियों की तरह सजने से खुशी नहीं होती थी।
गणेश तीन भाई-बहनों में सबसे छोटे थे। एक बार श्रीगौरी ने बताया कि वे अपने माता-पिता की तीसरी संतान थीं और इसलिए ऊपरवाले ने उन्हें थर्ड के रूप में भेज दिया था। गणेश के ट्रांसजेंडर होने के कारण वे बचपन से ही लोगों की आलोचना का सामना करने के लिए मजबूर रहे हैं। उन्हें छूने और उनसे बात करने से लोग बचते थे, और उनको अनदेखा कर जाते थे।
उनके पिता ने उनके रूप में स्वीकृति नहीं दी, इससे उन्हें अपने घर को 14 या 15 साल की आयु में ही छोड़ना पड़ा। उन्होंने जीवन में कई कठिनाइयों का सामना किया। लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी, बल्कि ट्रांसजेंडर लोगों के अधिकारों की रक्षा के लिए लड़ाई लड़ी। उन्होंने 'हमसफर ट्रस्ट' (Humsafar Trust) संगठन से जुड़कर अपने संघर्ष की शुरुआत की और फिर 'सखी चार चौगी' (Sakhi Char Chaugi) नामक एनजीओ की स्थापना की। इस संगठन का उद्देश्य ट्रांसजेंडर लोगों की नौकरियों की खोज में मदद करना और एचआईवी-एड्स से प्रभावित लोगों की सहायता करना था। इसके साथ ही, उन्होंने सेफ सेक्स को भी प्रोत्साहित किया।
श्रीगौरी ने 2019 में महाराष्ट्र चुनाव आयोग की गुडविल एंबेसडर के रूप में भी काम किया।अपने जीवन में कई मुश्किलों का सामना किया है, लेकिन उन्होंने अपने लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए मेहनत की और समाज में जागरूकता फैलाने का प्रयास किया है।