अभी कुछ दिनों पहले इसराइल के राष्ट्रपति बेंजामिन नेतन्याहू ने व्हाइट हाउस में डोनाल्ड ट्रंप से मुलाकात के दौरान उन्हें एक चिट्ठी दी जिसे देखकर डोनाल्ड ट्रंप(Donald Trump) काफी खुश हुए। इस चिट्ठी में इसराइल और ईरान के द्वारा डोनाल्ड ट्रंप को नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नामांकित किया गया था। इसके पहले 20 जून को पाकिस्तान ने, जो कि इसराइल का सबसे बड़ा दुश्मन है उसने भी अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को शांति पुरस्कार (Nobel Peace Prize) के लिए नामांकित किया। सवाल यह है की डोनाल्ड ट्रंप जिन्होंने अपने कार्यकाल के दौरान शांति और अहिंसा को लेकर कुछ खास कदम नहीं उठाई उन्हें बड़े-बड़े देश के द्वारा नोबेल प्राइज के लिए नामांकित किया जा रहा है, लेकिन अहिंसा और शांति जैसे शब्दों से रूबरू कराने वाले भारत के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को आज तक नोबेल प्राइज नहीं मिला पर क्यों?
नोबेल पीस प्राइज में ऐसा क्या है ख़ास?
नोबेल पीस प्राइज यह दुनिया का सबसे प्रतिष्ठित और सबसे बड़ा पुरस्कार माना जाता है। नोबेल पुरस्कार दुनियां(Nobel Prize) के सबसे सम्मानित और प्रतिष्ठित पुरस्कारों में से एक है। इस पुरस्कार से दुनिया भर में लोगों का नाम होता है और यह उन लोगों या संस्थाओं को दिया जाता है जिन्होंने दुनियां भर में अहिंसा और शांति (Non Violance and Peace) फैलाने में अपना योगदान दिया हो। लेकिन इस पुरस्कार की पारदर्शिता (Transparency) बहुत कम है।
आपको बता दें कि इस पुरस्कार को देने के लिए नॉर्वे की संसद 5 सदस्यों की एक कमिटी बनाती है जिनका चुनाव भी नहीं होता। यानी नोबेल शांति पुरस्कार किसे मिलना है और किसे नामांकन करना है यह सभी डिस्कशन नॉर्वे के उन पांच लोगों पर होता है जिन्हें संसद चुनती हैं। आपको बता दें कि नोबेल पीस प्राइज के लिए नॉमिनेट होना भी बड़ी बात मानी जाती है। नॉर्वे नॉमिनेट होने वाले सदस्यों की सूची को अगले 50 साल तक अपने पास गुप्त रखता है। दुनिया भर के बड़े-बड़े नेता राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, अंतरराष्ट्रीय संस्था के लोग और कुछ यूनिवर्सिटीज के प्रोफेसर्स ही नोबेल पीस प्राइज का नामांकन दे सकते हैं।
क्या ट्रंप है नोबेल के हकदार?
डोनाल्ड ट्रंप जो कि अमेरिका के राष्ट्रपति हैं उन्होंने कई बार नोबेल शांति पुरस्कार पाने की अपनी इच्छा को जाहिर किया है। उनके कई सारे इंटरव्यूज और बयानों में उन्होंने कहा कि बराक ओबामा जो अपने कार्यकाल में कुछ भी नहीं करके गए उन्हें नोबेल प्राइज मिल गया। उनका दावा है कि ट्रम्प ने अब्राहम अकॉर्ड्स, कुछ देशों के बीच मध्यस्थता, और भारत-पाकिस्तान तनाव में शांति की पहल की और इसलिए वे नोबेल प्राइज के हकदार है। लेकिन आलोचक इस प्रयास को राजनीति से प्रेरित मानते हैं और ट्रम्प की अंतरराष्ट्रीय नीतियों में विरोधाभासी कदमों की वजह से उनकी दावेदारी पर सवाल उठाते हैं।
गांधी जी को 5 बार किया गया था नॉमिनेट
पूरी दुनिया में खासकर भारत में शांति और अहिंसा का पाठ पढ़ाने वाले महात्मा गांधी को उनके पूरे जीवन काल में पांच बार नोबेल पुरस्कार के लिए नॉमिनेट किया गया था। महात्मा गांधी को 1937, 1938, 1939, 1947, और 1948 (हत्या से दो दिन पहले) नामांकित किया गया था, लेकिन एक भी बार उन्हें नोबेल पुरस्कार से सम्मानित नहीं किया गया। अचंभित बात तो यह है की जीस अहिंसा और शांति को महात्मा गांधी ने पूरी दुनिया को सिखाया उससे प्रेरित होकर अमेरिका के नागरिक अधिकार के नेता मार्टिन किंग लूथर जूनियर को 1964 में, दक्षिण अफ्रीका के अश्वेत राष्ट्रपति नेल्सन मंडेला को 1993 और बराक ओबामा को भी यह पुरस्कार मिल चुका है।
इसके अलावा टेरेसा, भारत के कैलाश सत्यार्थी, बांग्लादेश के चीफ एडवाइजर युनुस खान और दलाई लामा को भी नोबेल शांति पुरस्कार मिल चुका है। 2009 में बराक ओबामा को नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया था और इसी बात को लेकर अमेरिका के हालिया राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को काफी दिक्कत है कि बराक ओबामा ने बिना कुछ किए पुरस्कार पा लिया अब उन्हें भी चाहिए।
नोबेल कमिटी ने दिए यह कारण
महात्मा गांधी को नोबेल शांति पुरस्कार नहीं मिलने के पीछे नॉर्वे की सरकार और कमेटी ने मुख्य कारण यह दिया था कि 1960 तक नोबेल पुरस्कार अधिकतर अमेरिका के ही लोगों को दिया जाता रहा है। हालांकि कमेटी ने और भी कई कारण दिए जो काफी पेचीदा हैं:
कमेटी ने यह माना कि गांधी जी पारंपरिक श्रेणियों में फिट नहीं होते हैं। वे कोई राजनीतिक नेता नहीं थे, न ही मानवीय राहत कार्यकर्ता, न ही अंतर्राष्ट्रीय शांति सम्मेलन के आयोजक थे।
1947 में भारत-पाकिस्तान विभाजन के दौरान हिंदू-मुस्लिम संघर्ष में गांधी की भूमिका पर कुछ सदस्यों को संदेह था कि क्या वे पूरी तरह निःस्वार्थ अहिंसावादी थे या नहीं ।
1948 में गांधी की हत्या के बाद, दो दिन पहले नामांकन बंद होने के कारण, समिति ने घोषणा की कि उस वर्ष “कोई उपयुक्त जीवित प्रत्याशी नहीं है” और नो अवॉर्ड देने का निर्णय लिया गया
कुछ सदस्यों ने पोस्टह्यूमस (मृत्यु के बाद) पुरस्कार देने की बात सोची थी, लेकिन नोबेल नियमों और प्रायोगिक पहलुओं के चलते उन्होंने यह नहीं किया। इसके बाद कई दशकों तक गांधी का नाम विजेताओं की सूची में नहीं आया।
इसके अलावा यह भी कहा जाता है कि 1960 तक पूरी दुनिया पर लगभग ब्रिटेन की कॉलोनी और उनका दबदबा था यदि भारत से किसी को नोबेल पुरस्कार से सम्मानित कर दिया जाता तो इसका मतलब था ब्रिटेन से सीधे-सीधे नफरत।
नोबेल कमेटी को है पश्चाताप
1999–2006 में कमेटी के सदस्यों ने सार्वजनिक रूप से कहा कि गांधी का पुरस्कार न मिलने की चूक “हमारे इतिहास की सबसे बड़ी कमी” थी। दलाई लामा ने जब 1989 में यह पुरस्कार प्राप्त किया, तब उन्होंने इसे गांधी की स्मृति में सम्मान बताया। आपको बता दें कि गांधी की महानता का प्रतिदान भारत सरकार ने 1995 में “इंटरनेशनल गांधी पीस प्राइज” लॉन्च करके किया, जिसमें गैर-हिंसात्मक सामाजिक और राजनीतिक परिवर्तन के लिए योगदान देने वालों को सम्मान दिया जाता है, जैसे नेल्सन मंडेला, ISRO, सुलभ इंटरनेशनल, आदि ।
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नोबेल की प्रक्रिया औपचारिक नियमों, राजनीति और समय की सीमाओं की जाल में गांधी जैसे असाधारण व्यक्तित्व को पहचानने में असमर्थ रही। जहाँ ट्रम्प को नामांकित किया जा रहा है और कुछ को मिल चुका है, वहीं गाँधी की संविधानिक अहिंसा, सादगी और सामाजिक समरसता का प्रभाव संपूर्ण मानवता पर पड़ा, लेकिन नोबेल समिति ने उसे स्वीकार नहीं किया। [Rh/SP]