Brigadier Mohammad Usman - ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान 15 जुलाई 1912 को बीबीपुर गांव में जन्मे थे। (Wikimedia Commons) 
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ब्रिगेडियर उस्मान नहीं होते, तो पाकिस्तान के कब्जे में होता वैष्णो देवी मंदिर

उनका इरादा ‘हरि निवास पैलेस’ से लेकर माता वैष्णो देवी की गुफा तक कब्जा करना था लेकिन ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान ने उनके मंशा को पूरा होने नहीं दिया।

न्यूज़ग्राम डेस्क

Brigadier Mohammad Usman - यह तब की बात है जब भारत को आजाद हुए मुश्किल से 2 महीने बीते थे। अक्टूबर में कश्मीर की वादियों में बर्फबारी होने लगी थी। अक्टूबर 1947 के पहले हफ्ते में अचानक कबायली पठानों ने पाकिस्तानी फौज की मदद से जम्मू-कश्मीर पर हमला बोल दिया। अक्टूबर का आखिरी हफ्ता आते-आते कबायली, श्रीनगर के अंदरूनी इलाकों तक पहुंच गए। उनका इरादा ‘हरि निवास पैलेस’ से लेकर माता वैष्णो देवी की गुफा तक कब्जा करना था लेकिन ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान ने उनके मंशा को पूरा होने नहीं दिया।

कौन थे ब्रिगेडियर उस्मान?

ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान 15 जुलाई 1912 को बीबीपुर गांव में जन्मे थे। उनके पिता काजी मोहम्मद फारूक बनारस के कोतवाल हुआ करते थे। पुलिस की नौकरी पाने में नाकाम होने के बाद उस्मान ने सेना में जाने का मन बनाया और सैंडहर्स्ट मिलिट्री कॉलेज में उनका सेलेक्शन भी हो गया। सैंडहर्स्ट में सैम मानेकशॉ उनके बैचमेट थे, जो आगे चलकर भारतीय सेना के अध्यक्ष बने।

ब्रिगेडियर उस्मान को ‘नौशेरा का शेर’ नाम मिला। (Wikimedia Commons)

12 साल की उम्र में कूद पड़े थे कूएं में

ब्रिगेडियर उस्मान की बहादुरी के तमाम किस्से मशहूर हैं। वह महज 12 साल की उम्र के थे, एक दिन गांव से गुजरते हुए उन्होंने देखा एक कुएं के पास भीड़ लगी है। नजदीक गए तो पता लगा कि एक बच्चा कुएं में गिरा है।नन्हें उस्मान ने बिना कुछ सोचे कुएं में छलांग लगा दी और उसे बच्चों को सही सलामत निकाल ले आए।

कैसे पड़ा ‘नौशेरा का शेर’ नाम?

1 फरवरी 1948 की सुबह में कोट पर जीत हासिल करने के ठीक 5 दिन बाद कबायली, पाकिस्तानी फौज की मदद से फिर एकजुट हुए और नौशेरा पर हमले की तैयारी कर ली। नौशेरा की लड़ाई में करीब 11000 कबायलियों ने भाग लिया। 6 फरवरी की सुबह तमाम मुश्किलों के बावजूद भारतीय सैनिकों ने उनके छक्के छुड़ा दिए। उसके बाद से ही ब्रिगेडियर उस्मान को ‘नौशेरा का शेर’ नाम मिला।

जिस वक्त ब्रिगेडियर उस्मान पाकिस्तानी घुसपैठियों से लड़ते हुए शहीद हो गए। , उस वक्त उनकी उम्र महज 36 साल थी। (Wikimedia Commons)

36 साल की उम्र में हुए शहीद

ब्रिगेडियर उस्मान 3 जुलाई 1948 को पाकिस्तानी घुसपैठियों से लड़ते हुए शहीद हो गए। घुसपैठियों की तरफ से फेंका गया एक गोला फटा और उसके टुकड़े उनके सीने में धंस गए। भारतीय फौज में ‘जय हिंद’ कहने का चलन शुरू करने वाले ब्रिगेडियर उस्मान का पार्थिव शरीर दिल्ली लाया गया। जिस वक्त ब्रिगेडियर उस्मान का देहांत हुआ, उस वक्त उनकी उम्र महज 36 साल थी। उनको बाद में ‘महावीर चक्र’ से सम्मानित किया गया।

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