पहलगाम हमले के बाद इंदिरा गांधी क्यों आईं चर्चा में ?
जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले ने पूरे देश को हिला कर रख दिया है। इस हमले के तुरंत बाद केंद्र सरकार ने सर्वदलीय बैठक बुलाई। सभी दलों ने सरकार का साथ देने का भरोसा जताया, लेकिन सुरक्षा चूक पर सवाल भी उठाए गए। इस बीच सरकार ने पाकिस्तान के खिलाफ कई बड़े फैसले किए। पाकिस्तान ने भी कड़ा जवाब दिया। और इसी तनातनी के बीच अचानक पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी (Indira Gandhi) का नाम और उनकी नीतियाँ सोशल मीडिया से लेकर सियासत तक चर्चा का विषय बन गईं।
हमले (Pahalgam attack) के बाद भारत सरकार ने पाकिस्तान पर दबाव बनाने के लिए पाँच बड़े कदम उठाए। जिसमें यह सभी पाँच बड़े कदम उठाए गए हैं - सिंधु जल संधि को निलंबित किया गया। अटारी बॉर्डर चेक पोस्ट को बंद करने का आदेश दिया गया। नई दिल्ली में पाकिस्तानी उच्चायोग के सैन्य, नौसेना और वायुसेना सलाहकारों को “अवांछित व्यक्ति” घोषित किया गया। भारत और पाकिस्तान के दूतावासों में कर्मचारियों की संख्या पाकिस्तान के नागरिकों को मिलने वाली सार्क वीज़ा छूट सुविधा रद्द कर दी गई। भारत 1 मई 2025 तक इस्लामाबाद स्थित अपने उच्चायोग में कर्मचारियों की संख्या को 55 से घटाकर 30 कर दिया गया। इन फैसलों को भारत की सख़्त नीति के तौर पर देखा गया है।
पाकिस्तान की पलटवार
भारत के फैसलों के जवाब में पाकिस्तान भी पीछे नहीं रहा। उसने भारत के साथ हुए कई समझौते निलंबित कर दिए। सबसे बड़ा कदम था शिमला समझौते (Shimla Agreement) को रद्द करना। यही वह समझौता था जिसे 1972 में भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी (Indira Gandhi) और पाकिस्तान के राष्ट्रपति जुल्फिकार अली भुट्टो ने साइन किया था यह समझौता 2 जुलाई, 1972 को शिमला में हुआ था। इसके अलावा पाकिस्तान ने भारतीय विमानों के लिए अपना हवाई क्षेत्र बंद कर दिया। भारत के साथ व्यापार रोक दिया। भारतीय राजनायिकों को देश छोड़ने को कहा। अपने दूतावास के स्टाफ को भी घटा दिया। यानी पाकिस्तान ने भारत को उसी की भाषा में जवाब देने की कोशिश की।
पाकिस्तान द्वारा शिमला समझौता निलंबित करने के बाद लोगों को 1971 की जंग और उसके बाद हुए इस समझौते की याद आ गई। सोशल मीडिया पर अचानक इंदिरा गांधी का ज़िक्र तेज़ हो गया। दरअसल, 1971 की जंग में भारत ने पाकिस्तान को पराजित कर दिया था उस वक्त पाकिस्तान की बहुत बड़ी हार हुई थी। उसके बाद बांग्लादेश को आज़ाद कराया गया था और करीब 90 हज़ार पाकिस्तानी सैनिकों ने आत्मसमर्पण किया था। उस समय भारत की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी थीं। उनकी दृढ़ता और सख़्त फैसलों की वजह से ही यह जीत संभव हो पाई थी।
हमले (Pahalgam attack) के बाद निकले विरोध मार्च और बैठकों में भी इंदिरा गांधी का नाम काफी गूंजा। तेलंगाना के मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी ने कैंडल मार्च में कहा - “1967 में चीन को इंदिरा गांधी ने जवाब दिया था। 1971 में पाकिस्तान को हराकर दो टुकड़े कर दिए। उस समय अटल बिहारी वाजपेयी जी ने उन्हें ‘दुर्गा’ कहा था। आज हमें उसी दृढ़ नेतृत्व की जरूरत है।” शिवसेना (यूबीटी) के नेता संजय राउत ने सोशल मीडिया पर इंदिरा गांधी (Indira Gandhi) की तस्वीर पोस्ट करते हुए लिखा है, की “आज देश को इंदिरा गांधी की बहुत याद आ रही है।” वहीं भाजपा प्रवक्ता सुधांशु त्रिवेदी ने तंज कसा। उन्होंने कहा है की “आप सुरक्षा चूक की बात करते हैं। सबसे बड़ी चूक तो तब हुई थी जब प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की उनके ही घर में हत्या हो गई थी। क्या हमने कभी इसे राजनीतिक मुद्दा बनाया ?” यानी इंदिरा गांधी का नाम सियासत में भी हथियार की तरह इस्तेमाल होने लगा है।
सोशल मीडिया की प्रतिक्रिया
सोशल मीडिया पर इंदिरा गांधी के नाम को लेकर लोगों की अलग-अलग राय सामने आई। जैसे कुछ लोग कह रहे थे “अगर आज इंदिरा गांधी जिंदा होतीं तो पाकिस्तान कल का सूरज नहीं देख पाता।” और “1971 में पाकिस्तान की सेना को आत्मसमर्पण कराने वाली वही थीं उस वक्त उनका काफी योगदान रहा है। आज हमें वैसा ही नेतृत्व चाहिए जैसा की इंदिरा गांधी के समय था।”
वहीं कुछ लोग शिमला समझौते (Shimla Agreement) को लेकर आलोचना भी कर रहे हैं। उनका कहना है कि भारत ने मैदान-ए-जंग में जीत दर्ज की थी, लेकिन बातचीत की मेज़ पर सबकुछ खो दिया गया । कई लोग सवाल कर रहे हैं कि इंदिरा गांधी ने 90 हज़ार पाकिस्तानी कैदियों को छोड़कर उन्होंने बहुत बड़ी गलती की थी।
क्या था शिमला समझौता ?
1971 की जंग के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच शिमला समझौता हुआ। इसमें तय हुआ कि दोनों देश आपसी मुद्दों को बातचीत और शांतिपूर्ण तरीकों से हल करेंगे। युद्धविराम रेखा को लाइन ऑफ कंट्रोल (एलओसी) का दर्जा मिलेगा। कोई भी देश एलओसी को बदलने की एकतरफा कोशिश नहीं करेगा। दोनों देश आपसी रिश्तों को सामान्य बनाने की दिशा में काम करेंगे। यह समझौता उस समय स्थिरता और शांति की दिशा में बड़ा कदम माना गया था। लेकिन अब पाकिस्तान द्वारा इसे निलंबित करने से नए विवाद खड़े हो गए हैं।
Also Read: गोलियों से छलनी इंदिरा गांधी और एम्स की वो सुबह, जो इतिहास बन गई
पहलगाम हमले (Pahalgam attack) के बाद उठाए गए कदमों ने भारत-पाकिस्तान रिश्तों को फिर से तनावपूर्ण बना दिया है। इस माहौल में इंदिरा गांधी का नाम आना स्वाभाविक था, क्योंकि उन्होंने उस समय पाकिस्तान को उसकी सबसे बड़ी हार दी थी। लेकिन आज सोशल मीडिया और राजनीति में उनकी याद दो ध्रुवों में बंटी नज़र आती है। कुछ लोग उन्हें “लौह महिला” और “दुर्गा” कहकर याद कर रहे हैं, तो कुछ लोग उनकी नीतियों पर सवाल उठा रहे हैं।
निष्कर्ष
पहलगाम हमला सिर्फ एक आतंकी घटना नहीं था, बल्कि उसने भारत-पाकिस्तान संबंधों को फिर से एक चौराहे पर लाकर खड़ा कर दिया है । भारत और पाकिस्तान दोनों ने कठोर कदम उठाए। पाकिस्तान ने जब शिमला समझौता निलंबित किया, तो एक बार फिर इंदिरा गांधी (Indira Gandhi) की यादें ताज़ा हो गईं। इंदिरा गांधी का नाम इसलिए गूंज रहा है क्योंकि वो उस दौर की प्रधानमंत्री थीं जब भारत ने पाकिस्तान को हराकर नया इतिहास लिखा था। लेकिन सवाल यह है कि क्या आज का भारत भी वैसी ही सख़्ती दिखा पाएगा जैसी इंदिरा गांधी ने अपने कार्यकाल में दिखाई थी ?
समय बताएगा कि मौजूदा हालात में कौन-सा रास्ता अपनाया जाएगा, लेकिन इतना तय है कि इंदिरा गांधी का नाम भारत-पाकिस्तान संबंधों की हर बहस में हमेशा गूंजता रहेगा। [Rh/PS]