भारत में आस्था और परंपराएँ कई रूपों में दिखाई देती हैं। कहीं लोग चादर चढ़ाते हैं, कहीं नारियल फोड़ते हैं, कहीं दूध चढ़ाते हैं तो कहीं फूल माला। लेकिन पंजाब के अमृतसर शहर में एक ऐसा अनोखा गुरुद्वारा है जहाँ भक्त अपनी मनोकामना पूरी करने के लिए खिलौने वाले हवाई जहाज चढ़ाते हैं। जी हाँ, यहाँ की आस्था विदेश जाने के सपनों से जुड़ी है।
संत सर गुरुद्वारा - विदेश जाने की प्रार्थना का प्रतीक
अमृतसर हवाई अड्डे के रनवे के ठीक पास स्थित यह गुरुद्वारा संत सर गुरुद्वारा कहलाता है। इसे बाबा जवंद सिंह जी की याद में बनाया गया था, जिन्होंने यहाँ कई वर्षों तक ध्यान साधना की थी। लगभग 70 साल पुराना यह गुरुद्वारा आज भी हजारों श्रद्धालुओं के विश्वास का केंद्र है। यहाँ हर दिन भक्त पहुँचते हैं लेकिन रविवार या त्योहारों पर तो भीड़ इतनी बढ़ जाती है कि टैक्सीवे तक लोगों की कतारें लग जाती हैं।
इस गुरुद्वारे की सबसे अनोखी परंपरा है खिलौने वाले हवाई जहाज़ चढ़ाना। श्रद्धालु मानते हैं कि अगर वो यहाँ खिलौना वाला हवाई जहाज अर्पित करें तो उनके वीज़ा, पासपोर्ट और विदेश जाने के सपने पूरे हो सकते हैं। आसपास की दुकानों पर तरह-तरह के रंग-बिरंगे प्लास्टिक और धातु के छोटे जहाज़ बिकते हैं। लोग इन्हें खरीदकर माथा टेकते हैं और दुआ करते हैं कि एक दिन असली विमान में बैठकर वो भी विदेश जाएँगे।
यहां का सालाना मेला उत्सव और उमंग का संगम
हर साल जून के महीने में यहाँ बाबा जवंद सिंह जी का जन्मोत्सव मनाया जाता है। यह उत्सव पूरे एक हफ्ते तक चलता है। इस दौरान आसपास के गाँवों और शहरों से लाखों लोग यहाँ पहुँचते हैं। रास्ते में जगह-जगह कोल्ड कॉफी, मिल्कशेक, पिज़्ज़ा, आइसक्रीम और पकौड़ों के स्टॉल लगाए जाते हैं। यहां का माहौल इतना आकर्षक होता है कि यह किसी बड़े मेले जैसा प्रतीत होता है। यहां पर लंगर में चाय, पकौड़े और मीठा बाँटा जाता है।
भीड़ के बावजूद यहाँ एक खास अनुशासन देखने को मिलता है। श्रद्धालु कतार में खड़े होकर धीरे-धीरे गुरुद्वारे तक पहुँचते हैं। प्रवेश से पहले सभी लोग अपने जूते-चप्पल उतारकर एक जगह अच्छे से रखते हैं। सुरक्षा कारणों से मोबाइल फोन और बैग अंदर ले जाने की अनुमति नहीं होती है। टैक्सीवे के पास सैकड़ों लोग चलते हैं, जो इस खास अवसर पर विमानों के लिए बंद कर दिया जाता है।
गुरुद्वारे की एक और बड़ी खूबी है हवाई जहाजों का नज़दीक से दिखना। बच्चे अपने माता-पिता के कंधों पर बैठकर उड़ते और उतरते जहाजों को बड़ी उत्सुकता से देखते हैं। जब भी कोई पायलट हाथ हिलाता है, तो बच्चे खुशी से चिल्लाते हैं और हाथ हिलाकर जवाब देते हैं। उनके चेहरे पर विदेश जाने का सपना चमकने लगता है। गुरुद्वारे के पास एक शांत तालाब है जहाँ लोग स्नान करते हैं और पुरानी छाँवदार पेड़ों के नीचे बैठकर ध्यान लगाते हैं। भीड़भाड़ और शोर-शराबे से कुछ ही दूरी पर यह तालाब मन को गहरी शांति का अनुभव कराता है।
आस्था और आधुनिकता का संगम
पंजाब में विदेश जाने की चाह कोई नई बात नहीं है। बहुत से लोग कनाडा, इंग्लैंड, अमेरिका या ऑस्ट्रेलिया जाने का सपना देखते हैं। कई परिवारों के लिए विदेश में नौकरी और बसना जीवन का सबसे बड़ा लक्ष्य बन चुका है। ऐसे में गुरुद्वारा संत सर उनके लिए आस्था का वह केंद्र है, जहाँ वो अपनी आशा और विश्वास के साथ खिलौना हवाई जहाज चढ़ाते हैं।
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यह गुरुद्वारा सिर्फ धार्मिक स्थान नहीं है, बल्कि यह दिखाता है कि किस तरह आस्था और आधुनिकता एक साथ चल सकती है। यहाँ भजन की धुनें भी गूंजती हैं और साथ ही विमानों की गड़गड़ाहट भी सुनाई देती है। भक्त अपनी दुआओं में आध्यात्मिक शांति भी खोजते हैं और आधुनिक दुनिया की उड़ान का सपना भी देखते हैं।
यहां पर जब भक्त खिलौना हवाई जहाज लेकर सिर झुकाते हैं, बच्चे विमानों को देखकर खुश होते हैं, और लंगर में सब साथ बैठकर चाय-पकौड़े खाते हैं, तो यह दृश्य हर किसी के दिल में बस जाता है। यहाँ से लौटते समय हर कोई यही महसूस करता है कि विश्वास और सपनों का यह संगम दुनिया में और कहीं मिलना मुश्किल है।
निष्कर्ष
अमृतसर का यह गुरुद्वारा एक अनोखा उदाहरण है कि किस तरह इंसान अपने सपनों को आस्था से जोड़कर संजोता है। विदेश जाने की चाहत यहाँ सिर्फ एक ख्वाहिश नहीं, बल्कि एक धार्मिक विश्वास बन चुकी है। खिलौना हवाई जहाज चढ़ाने की यह परंपरा दिखाती है कि आस्था के रंग कितने निराले और अनोखे हो सकते हैं। यह स्थान न सिर्फ धार्मिक महत्व रखता है बल्कि यह पंजाब के लोगों की उम्मीदों और सपनों का भी प्रतीक है। [Rh/PS]