बिहार के शिक्षा मंत्री ने रामचरितमानस पर  दिया बयान 

 

चंद्रशेखर (Twitter) 

धर्म

बिहार के शिक्षा मंत्री चंद्रशेखर यादव ने रामचरितमानस की चौपाई का उल्टा अर्थ बताकर अर्थ का अनर्थ कर डाला

'नालंदा ओपन यूनिवर्सिटी' में चल रहे दीक्षांत समारोह में बिहार के शिक्षा मंत्री चंद्रशेखर यादव ने कुछ हफ़्ते पहले ऐसा बयान दिया जिसके कारण बवाल मच गया। उन्होंने रामचरितमानस की चौपाई का गलत अर्थ बताकर इसे 'नफ़रत फैलाने वाला' ग्रंथ करार कर दिया।

न्यूज़ग्राम डेस्क

न्यूज़ग्राम हिंदी: 'नालंदा ओपन यूनिवर्सिटी' में चल रहे दीक्षांत समारोह में बिहार के शिक्षा मंत्री चंद्रशेखर यादव ने कुछ हफ़्ते पहले ऐसा बयान दिया जिसके कारण बवाल मच गया। उन्होंने रामचरितमानस की चौपाई का गलत अर्थ बताकर इसे 'नफ़रत फैलाने वाला' ग्रंथ करार कर दिया।

एक बड़े समूह के सामने उन्होंने गलत अर्थ बतलाकर अपने ही धार्मिक ग्रंथ का मज़ाक उड़ाया। जहां एक तरफ़ अन्य धर्म के लोग अपने धार्मिक मूल्यों और उसके दस्तावेजों का इतना सम्मान करते हैं वहीं हिंदू समाज के नेता अपने ही ग्रंथ के खिलाफ़ गलत धारणा रखते हैं। जनता के नेताओं द्वारा कही गई हर बात का समाज पर असर पड़ता है। ऐसे में मंत्री जी का यह बयान बड़े समूह को प्रभावित करता है।

3 मुकदमों वाले करोड़पति मंत्री जी की बातों पर कितना विश्वास करना चाहिए इस बात का अंदाजा इसी चीज़ से लगता है कि अपने नाम के पीछे के सरनेम का इस्तेमाल भी वह अपने सुविधा के अनुसार ही करते हैं। उनका कहना है कि वह केवल चंद्रशेखर लिखते हैं, नाम के आगे पीछे कुछ नहीं लगाते लेकिन साल 2005 में बतौर निर्दलीय प्रत्याशी जब वह चुनाव में उतरे थे तब उनके पोस्टरों पर उनका सरनेम लिखा हुआ था।

बिहार के शिक्षा मंत्री का रामचरितमानस पर विवादित बयान 

 बिहार के शिक्षा मंत्री ने रामचरितमानस की जिन चौपाइयों का उदाहरण दिया, उनमें से एक ये है – 'अधम जाति मैं बिद्या पाएँ। भयउँ जथा अहि दूध पिआएँ॥' बिहार के प्रोफेसर मंत्री ने इस चौपाई का अर्थ लगाया – 'नीच जाति में विद्या पाने का अधिकार नहीं था। अधम मतलब नीच। इसमें कहा गया है कि नीच जाति का व्यक्ति विद्या पाकर ऐसा हो जाता है, जैसे दूध पिलाने से साँप।'

चौपाई का अर्थ जानने से पहले यह ध्यान देना चाहिए कि यह किस संदर्भ में लिखा गया है। इसी तरह, जिस चौपाई का जिक्र चंद्रशेखर यादव ने किया, उसे काकभुशुण्डि कह रहे होते हैं, एक ऋषि जो काग (कौवा) के रूप में रहा करते थे। उनके बारे में बताया गया है कि उन्हें इच्छानुसार कई जन्म लेने और सदियों तक जीवित रहने का वरदान है और वो बड़े रामभक्त रहे हैं। उन्होंने भगवान विष्णु के वाहन गरुड़ को रामायण सुनाई थी, वाल्मीकि से काफी पहले। कथा है कि महर्षि लोमस की शिक्षाओं का मजाक उड़ाने के कारण उन्हें कौवे के रूप में प्राप्त होने का श्राप मिला था।

गरुड़ को अपनी पिछली बात बताते हुए काकभुशुण्डि कह रहे हैं कि दुष्ट प्रवृत्ति का मैं विद्या पाकर ऐसा हो गया, जैसे दूध पिलाने से साँप। ‘अधम’ का अर्थ होता है पापी या नीचतापूर्ण कार्य करने वाला। काकभुशुण्डि इस प्रसंग में ‘खल परिहरिअ स्वान की नाईं‘ भी कहते हैं, अर्थात दुष्ट को त्याग देना चाहिए। वो ये भी कहते हैं – 'बुध नहिं करहिं अधम कर संगा' भी कहते हैं, अर्थात बुद्धिमान व्यक्ति दुष्टों की संगत नहीं करते हैं।

यहाँ स्पष्ट है कि एक तरफ बुद्धिमान, अर्थात समझदार व्यक्ति होते हैं और दूसरी तरफ अधम, अर्थात दुष्ट व्यक्ति। इसमें काकभुशुण्डि अपनी ही पुरानी प्रवृत्ति बता रहे हैं कि कैसे उन्होंने बार-बार गुरु की अवहेलना की और उन्हें ‘अधम गति’ में जाने का श्राप मिला। यहाँ अधम का अर्थ है ‘निम्न’। पशु-पक्षियों और कीट-पतंगों का जीवन दुःख भरा होता है और मनुष्य का जीवन सबसे उच्च कोटि का माना गया है, यहाँ अधम का अर्थ इस संदर्भ में भी लगा सकते हैं।

जिस प्रकार साहित्य में हर लेखक को अपने विचार प्रस्तुत करने का अधिकार उसी समान तुलसीदास को भी है। यदि सनातन धर्म में जातिभेद का पालन होता तो निषाद समाज के नल राजा कैसे होते? प्रभु श्री राम शबरी के जूठे बेर नहीं खाते। अलग-अलग काल में समाज की अलग व्यवस्था होती है और यह बदलती रहती है।

VS

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