Darukavan : हर वर्ष उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले में स्थित जागेश्वर धाम में लाखों श्रद्धालु अपनी मनोकामनाएं लेकर पहुंचते हैं। यह पूरा धाम देवदार के पेड़ों से घिरा हुआ है। इस जगह को दारुक वन के नाम से भी जाना जाता है। जागेश्वर धाम के पुजारी तारा चंद्र भट्ट के अनुसार 8वें ज्योतिर्लिंग के रूप में भगवान शंकर को यहां पूजा जाता है। नागेश्वर दारूक वन की वजह से भी जागेश्वर धाम को जाना जाता है। नागेश यानि भगवान शंकर और देवदार के पेड़ों को दारुक वन कहा जाता है।
यहां लाखों की संख्या में श्रद्धालु आते है और स्थानीय लोगों के साथ-साथ बाहर से आने वाले श्रद्धालु भी इन पेड़ों की पूजा करते हैं। यहां के लोग देवदार को भगवान शिव, माता पार्वती, गणेश और पांडव वृक्ष के रूप में पूजते हैं। देवदार को ‘द वुड ऑफ गॉड’ और भगवान शिव की जटा कहा जाता है। देवदार के पेड़ों की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि भगवान यहां पर अर्धनारीश्वर स्वरूप में देवदार के वृक्ष में एक भाग है। इसमें एक भाग माता पार्वती का है। इसके अलावा एक पेड़ में भगवान गणेश के साथ माता पार्वती और शंकर विराजमान हैं। यहां पर पांडव रूपी वृक्ष को भी पूजा जाता है।
मंदिर के एक अन्य पुजारी कौस्तुभा नंद भट्ट के अनुसार देवदार के पेड़ों में भगवान शंकर का वास होने वाली बात एकदम सत्य है। उनका मानना है कि देवदार की एक टहनी भी टूटनी या फिर कटनी नहीं चाहिए। खास बात तो यह है कि जागेश्वर धाम में करीब तीन किलोमीटर तक सिर्फ देवदार के पेड़ मिलते हैं। तीन किलोमीटर के दायरे के अलावा आपको कहीं भी एक भी देवदार के पेड़ नहीं मिलेंगे।
जो भी भक्त यहां पर दर्शन करने के लिए आते है या जिन्हें पवित्र स्थलों पर जाकर ध्यान करना अच्छा लगता हैं उन्हें दारुक वन में अलग ही अहसास होता है। भक्तों ने ही इस बात की पुष्टि की है कि यहां ध्यान करने से पॉजिटिव एनर्जी महसूस होता है।