महाविद्या भुवनेश्वरी Mahavidya Bhuvaneshwari (IANS)
धर्म

Gupt Navratri: जानें चौथी और पाँचवी महाविद्या भुवनेश्वरी और छिन्नमस्ता के बारे में

माता भुवनेश्वरी की साधना सभी प्रकार के सांसारिक सुखों को दिलाती है और देवता भी इनको ब्रह्मांड की रानी कहकर संबोधित करते हैं।

Prashant Singh

आषाढ़ की गुप्त नवरात्रि में हम पढ़ रहे हैं दस महाविद्याओं का स्वरूप वर्णन। इसी की में हम आज पढ़ेंगे महाविद्या भुवनेश्वरी और महाविद्या छिन्नमस्ता के बारे में।

महाविद्या भुवनेश्वरी

माँ भुवनेश्वरी सौम्य कोटि की देवियों की श्रेणी में आती हैं, जिनका सर्वांग अरुण कान्ति से युक्त है। यह अपने भक्त को मनोवांछित पुत्र-पुत्री का आशीर्वाद देती हैं और धन-धान्य से सम्पन्न बना देती हैं। ग्रंथों में माँ भुवनेश्वरी को शताक्षी अथवा शाकंभरी नाम से भी संबोधित किया गया है। जो व्यक्ति माँ की आराधना करता है उसमें सूर्य जैसा तेज और ऊर्जा का उदय होने लगता है। माता भुवनेश्वरी के आशीर्वाद से व्यक्ति राजनैतिक उन्नति भी प्राप्त करते हैं।

श्रीमद्देवीभागवत के अनुसार माँ भुवनेश्वरी को सौर मंडल की जननी और अंतरिक्ष की निर्माता बताया गया है। शिव की पत्नी और ब्रह्मांड की देवी माता भुवनेश्वरी को सर्वोच्च देवी हैं, जो समय के अनुसार सब कुछ प्रकट कर देती हैं और बुराइयों को नष्ट करती हैं। माता भुवनेश्वरी की कृपा से भक्त को शक्ति, शक्ति, बुद्धि और धन की प्राप्ति होती है।

पुराणों के अनुसार देवी भुवनेश्वरी को विष्णु के वराह अवतार से जुड़ा हुआ बताया गया है। और ऋग्वेद के कई पवित्र मंत्रों में देवी भुवनेश्वरी को धरती माता, पृथ्वी से जुड़ा हुआ बताया है।

इच्छा शक्ति के रूप में प्रेम की देवी मानी जाने वाली देवी भुवनेश्वरी प्रेम, अंतरिक्ष की शक्ति पैदा करती है, स्वतंत्रता देते हुए निर्माता और रक्षक की भूमिका निभाती हैं। 64 दिव्य गुणों का आशीर्वाद देने वाली यह देवी अपने मुस्कुराते हुए चेहरे के साथ प्रकट होती हैं माँ के माथे पर शिव के समान ही तीसरा नेत्र सुशोभित है। चार हाथों वाली इन देवी के एक हाथ अभयमुद्रा में रहते हैं, जो शरण और निडरता का प्रतीक है। दूसरा हाथ वरमुद्रा में आशीर्वाद देने को तत्पर रहते हैं। माँ के तीसरे हाथ में राजदंड जो व्यवस्था का प्रतीक है। माँ के चौथे में माला सुशोभित होती है। कमाल के फूल पर आसीन इन देवी के मुकुट पर अर्धचंद्र शोभायमान है।

माँ के शुभ दिन कालरात्रि, ग्रहण, होली, दीपावली, महाशिवरात्रि, कृष्ण पक्ष और अष्टमी हैं। इन महाविद्या की पूजा में लाल फूल, चावल, चंदन, रुद्राक्ष की माला आदि सामग्रियों का प्रयोग होता है।

माता भुवनेश्वरी की साधना सभी प्रकार के सांसारिक सुखों को दिलाती है और देवता भी इनको ब्रह्मांड की रानी कहकर संबोधित करते हैं।

महाविद्या छिन्नमस्ता

महाविद्या छिन्नमस्ता

दस महाविद्याओं में पाँचवी महाविद्या माँ छिन्नमस्ता उग्र कोटि की देवी हैं। उनको छिन्नमस्तिका या प्रचंड चंडिका के नाम से भी जाना जाता है। माँ के बाएं हाथ में अपना ही कटा हुआ सिर है और दूसरे हाथ में एक खत्री है। उग्र कोटि की इस देवी के गले में खोपड़ियों की माला और नाग शोभा पाते हैं। गर्दन से निरंतर रक्त प्रवाह की दो धाराएं उनकी महिला परिचारिकाओं- डाकिनी और वारिनी की पिपासा शांत कर रहा है। एक रक्त प्रवाह उनके कटे हुए सिर के मुँह में गिर रहा है। माँ के इस स्वरूप का प्रादुर्भाव मंदाकिनी नदी के किनारे हुआ था।

माँ की तीन आँखें हैं, जो मदन और रति पर खड़ी हैं। माँ की उपासना शांत मन से करने पर वह शांत स्वरूप में प्रकट होती हैं, और उग्र रूप में ध्यान करने पर उनकी उग्रता भरे स्वरूप का दर्शन होता है। माता का स्वरूप गोपनीय है। माँ की साधना से साधक को योग, बुद्धि, ज्ञान, ध्यान और शास्त्रार्थ में पारंगत हो जाता है।

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