फिमाई (Phimai) यह कोई सामान्य मंदिर नहीं है, यह है प्रसाद हिन फिमाई (Phimai)। एक ऐसा स्थल, जहाँ कभी देवताओं के कई रूपों की पूजा होती थी। एक ही आंगन में शिव (shiva), बुद्ध (buddhist) और स्थानीय आत्माएँ सबके लिए जगह थी। यह कहानी है फिमाई (Phimai) की, एक ऐसे शहर की है, जहाँ धर्म (Religion), संस्कृति (Culture)और इतिहास (History) का संगम बना है। आज से करीब हजार साल पहले, जब खमेर साम्राज्य अपने वैभव के चरम पर था, उस समय उसका केंद्र था अंगकोर जिसे आज के समय में कंबोडिया कहते हैं । लेकिन इस साम्राज्य की सीमाएँ बहुत दूर तक फैली थीं। थाईलैंड का उत्तर-पूर्वी हिस्सा भी खमेर के नियंत्रण में था, और यहीं बसा था। फिमाई (Phimai) अंगकोर से एक प्राचीन राजमार्ग द्वारा जुड़ा हुआ था, और यहाँ की सबसे रोचक बात ये है कि फिमाई का मुख्य मंदिर अंगकोर की दिशा में तैयार था। जैसे कोई शिष्य अपने गुरु की ओर देख रहा हो।
मंदिर एक, आस्थाएँ अनेक
फिमाई मुख्य रुप से एक भव्य मंदिर है, जिसकी वास्तुकला खमेर शैली की मिसाल है। यह मंदिर सफेद और लाल बलुआ पत्थरों से बना है। इस मंदिर की दीवारों पर इतनी बारीक नक्काशी कि है जैसे पत्थरों में सांस हो। यह मंदिर अपने निर्माण में अंगकोर के प्रसिद्ध मंदिरों की तरह है, लेकिन इसमें कुछ अनोखी बात यह है की यह मंदिर सिर्फ हिंदू मंदिर नहीं था। इसमें बुद्ध (buddhist) की मूर्तियाँ, धर्मचक्र, और रहस्यमयी आकृतियाँ भी थीं, जो द्वारवती बौद्ध (buddhist) परंपरा और तांत्रिक बौद्ध (buddhist) धर्म का संकेत देती थीं। कभी एक कोने में शिव (shiva) के वाहन नंदी की मूर्ति, तो दूसरे कोने में ध्यानस्थ बुद्ध (buddhist), और कुछ जगहों पर ऐसे प्रतीक जिनका संबंध आदिवासी विश्वासों से माना जाता है।
फिमाई में जो सबसे गहरी बात है, वो यह कि यहाँ धर्मों के बीच दीवारें नहीं थीं। यहाँ हिंदू धर्म, बौद्ध धर्म (buddhist Religion)और स्थानीय आत्मा की पूजा एक साथ फलते-फूलते थे। जैसे एक बगीचे में कई रंगों के फूल हों। फिमाई (Phimai) के पत्थरों में गढ़े चित्रों में महायान बौद्ध धर्म (buddhist Religion) की झलक मिलती है। ध्यान में लीन बुद्ध (Phimai) को एक विशाल नाग (मुचलिंडा) छाया दे रहा है। यह चित्रण उस समय के धार्मिक दर्शन को दर्शाता है जिसमें प्रकृति, ढांचा और दया यह सब कुछ शामिल था। फिमाई (Phimai) की कहानी केवल धर्म (Religion) की नहीं, सत्ता की भी है। खमेर साम्राज्य में एक विचार था, उस विचार को देवराज कहा जाता था। यानी, राजा को भगवान का रूप माना जाता था। यह परंपरा राजा जयवर्मन द्वितीय के समय शुरू हुई, जिन्होंने अपने आप को शिव (shiva) का अवतार घोषित किया कर दिया था I फिमाई (Phimai) जैसे मंदिर केवल पूजा के लिए नहीं, बल्कि राजा की ईश्वरीय सत्ता को स्थापित करने के लिए भी बनाए गए थे। राजा मंदिर इसलिए बनवाता था, ताकि लोग उसे सिर्फ शासक नहीं, देवता मानें। यह राजनीति और धर्म (Religion) का एक जादुई मेल था।
इतिहास की परतों में छुपे रहस्य
फिमाई (Phimai) में एक खास बात यह भी है कि यहाँ से संस्कृत में शिलालेख भी मिले हैं, जिनमें शिव (shiva) की स्तुति की गई है। लेकिन 6वीं शताब्दी में राजा महेंद्रवर्मन ने इन शिलालेखों को मिटाने का आदेश दिया था। कुछ इतिहासकार मानते हैं कि ऐसे कई साक्ष्य समय के साथ खो गए। लेकिन जो बचा है, वह भी इतना समृद्ध है कि हमें हजारों साल पीछे ले जाता है। आज फिमाई (Phimai) एक लोकप्रिय पर्यटन स्थल है। हर साल हजारों लोग यहाँ आते हैं, कुछ लोग यहाँ का इतिहास जानने, तो कुछ यहाँ का अध्यात्म समझने, और कुछ लोग बस यहाँ की सुंदरता देखने यहाँ आते हैं। फिमाई (Phimai) के गैलरी में आज भी वह शिलालेख है, जिसमें राजकुमार सिद्धार्थ से बुद्ध बनने तक की यात्रा लिखित है। यह केवल धर्म नहीं, बल्कि आत्मा की खोज की कहानी है।
निष्कर्ष:
फिमाई (Phimai) कोई खंडहर नहीं है। यह एक जीवित दस्तावेज़ है, जो बताता है कि कैसे एक ही स्थान पर अनेक आस्थाएँ, संस्कृतियाँ और विश्वास सह-अस्तित्व में रह सकते हैं। यहाँ पर ना कोई धर्म बड़ा था, और ना कोई धर्म छोटा था। फिमाई (Phimai) ने सबको अपनाया I शिव को, बुद्ध (buddhist) को, आत्मा को। यह हमें सिखाता है कि धर्म की सच्ची भावना विभाजन नहीं, एकता है।