Ratha Saptami 2024 : रथ सप्तमी के दिन सूर्य देव का जन्मदिन मनाया जाता है।इस दिन भगवान सूर्य की पूजा और उनको अर्घ्य देने का विधान है। (Wikimedia Commons) 
धर्म

कब है रथ सप्तमी? इस दिन सूर्यदेव को अर्घ्य देने से कुंडली में सूर्य ग्रह होगा मजबूत

रथ सप्तमी के दिन सूर्य आराधना करने से आयु बढ़ती है, धन और धान्य में वृद्धि होती है तथा परिवार की सुख और समृद्धि भी बढ़ती है।

न्यूज़ग्राम डेस्क

Ratha Saptami 2024 : धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, माघ माह के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि से सूर्य देव ने अपने रथ पर सवार होकर इस संसार को प्रकाश से आलोकित करना प्रारंभ किया था, इस वजह से रथ सप्तमी को सूर्य जयंती भी कहते हैं। रथ सप्तमी के दिन सूर्य देव का जन्मदिन मनाया जाता है।

रथ सप्तमी के दिन भगवान सूर्य की पूजा करते हैं और उनको अर्घ्य देने का विधान है। रथ सप्तमी के दिन सूर्य आराधना करने से आयु बढ़ती है, धन और धान्य में वृद्धि होती है तथा परिवार की सुख और समृद्धि भी बढ़ती है। ज्योतिष भी कुंडली में सूर्य ग्रह मजबूत करने हेतु भगवान भास्कर की पूजा करने की सलाह देते हैं।

किस दिन है रथ सप्तमी?

रथ सप्तमी माघ माह के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि 15 फरवरी को सुबह 10 बजकर 12 मिनट से शुरू होगी और अगले दिन 16 फरवरी को सुबह 08 बजकर 54 मिनट पर समाप्त होगी। अतः 16 फरवरी को रथ सप्तमी मनाई जाएगी।

रथ सप्तमी के दिन सूर्य आराधना करने से आयु बढ़ती है, धन और धान्य में वृद्धि होती है तथा परिवार की सुख और समृद्धि भी बढ़ती है। (Wikimedia Commons)

कब है शुभ मुहूर्त?

उस दिन सूर्योदय सुबह 06:59 पर होगा।इस दिन सुबह 05.17 मिनट से 06.59 मिनट के बीच पवित्र नदी में स्नान करना शुभ रहेगा।इस बार रथ सप्तमी के दिन ब्रह्म योग और भरणी नक्षत्र है। ब्रह्म योग प्रात:काल से लेकर दोपहर 03:18 तक है, उसके बाद से इंद्र योग प्रारंभ हो जाएगा। उस दिन भरणी नक्षत्र प्रात:काल से लेकर सुबह 08:47 तक है, उसके बाद से कृत्तिका नक्षत्र है। रथ सप्तमी के दिन स्वर्ग की भद्रा है, जो सुबह 08:54 से रात 08:30 तक है।

कैसे करें सूर्यदेव की पूजा?

माघ माह के शुक्ल पक्ष की सप्तमी के दिन सूर्योदय से पहले उठें। इस समय सूर्य देव को प्रणाम करें। इसके बाद दैनिक कार्यों को समाप्त करने के बाद गंगाजल मिले पानी से स्नान करें। इस समय आचमन कर स्वयं को शुद्ध करें और पीले रंग का वस्त्र धारण करें।इसके बाद जल में अक्षत, तिल, रोली और दूर्वा मिलाकर सूर्य देव को अर्घ्य दें। इसके बाद सूर्य चालीसा या सूर्य कवच का पाठ करें। इस समय ओम ह्रां ह्रीं ह्रौं सः सूर्याय नमः या ओम घृणि सूर्याय नमः मंत्रो का जाप करे।

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