Nageshvara Jyotirlinga: सावन मास के पावन महीने में हम 12 ज्योतिर्लिंग की शृंखला में आज पढ़ेंगे 10वें ज्योतिर्लिंग श्री नागेश्वर ज्योतिर्लिंग के उत्पत्ति के बारे में। यह ज्योतिर्लिंग गुजरात राज्य में द्वारकापुरी से 17 मील की दूरी पर स्थित है। भगवान शिव का यह सुप्रसिद्ध ज्योतिर्लिंग अनंत पुण्यों को देने वाला है। यहाँ तक कि शस्त्रों में इसकी महिमा बताते हुए कहा गया है कि जो भी श्रद्धालु इस पुण्यमयी ज्योतिर्लिंग की उत्पत्ति और माहात्म्य की कथा सुनेगा, वह सारे पापों से छुटकर समस्त सुखों का भोग करता हुआ अंततः शिवधाम को प्राप्त होगा।
एतद् यः श्रृणुयान्नित्यं नागेशोद्भवमादरात्।> सर्वान् कामानियाद् धीमान् महापातकनाशनम्॥
पुराणों के अनुसार, प्राचीन काल में सुप्रिय नामक एक बड़ा धर्मात्मा और सदाचारी शिवभक्त वैश्य हुआ। वह अपने सभी कर्म भगवान शिव को अर्पित करते हुए करता था। आराधना, पूजन और ध्यान में वो हर समय तल्लीन रहता था। वह मन, वचन, कर्म से शिव को पूर्णतः समर्पित था। उसके शिवभक्ति से दारुक नामक एक राक्षस बहुत क्रोध में रहता था।
भगवान शिव की पूजा उसे किसी भी प्रकार नहीं सुहाती थी। वह निरंतर उसके पूजा पाठ में विघ्न डालने का हर सांभा प्रयास करता रहता था। एक दिन सुप्रिय नौका पर सवार होकर कहीं जा रहा था कि तभी दारुक ने इसे अच्छा अवसर समझकर नौका पर आक्रमण कर दिया। उसने सुप्रिय समेत सभी यात्रियों को कैद करके कारागार में डाल दिया। पर सुप्रिय ने कारागार में भी अपने इष्ट महादेव की पूजा-आराधना करना नहीं छोड़ा।
वह अन्य बंदियों को भी भगवान शिव की महिमा से अवगत करवाने लगा। दारुक के सवकों ने यह सब समाचार जब दारुक को सुनाया तो वह दानव बाद ही क्रोधित हुआ और क्रोध में ही पाँव पटकता कारागार में जा पहुंचा। वहाँ सुप्रिय भगवान शिव के ध्यान में तल्लीन होकर आँखें बंद किये हुए बैठा था। उस दुष्ट दैत्य ने यह सब देखकर अत्यंत क्रोध में भरकर कहा- 'अरे दुष्ट वैश्य! तू आँखें बंद कर इस समय यहां कौन-से उपद्रव और षड्यंत्र करने की बातें सोच रहा है?' उसके इस कटु वचन को सुनने के बाद भी धर्मात्मा शिवभक्त सुप्रिय की समाधि भंग नहीं हुई। इससे वह राक्षस और भी ज्यादा बौखला गया और उसने तत्काल अपने अनुचरों को सुप्रिय तथा अन्य सभी बंदियों को मार डालने का आदेश दे दिया। इस आदेश के बाद भी सुप्रिय किंचित मात्र भी विचलित और भयभीत नहीं हुआ।
बल्कि वह एकाग्रचित होकर अपनी और अन्य बंदियों की मुक्ति के लिए महादेव से प्रार्थना करने लगा। उसे अपने इष्ट पर पूर्ण विश्वास था कि उसके आराध्य अवश्य ही उसे इस विपत्ति से पार लगाएंगे। भगवान शंकर ने उसकी प्रार्थना सुनी और तत्काल वो उस कारागार में एक ऊंचे स्थान पर चमकते हुए सिंहासन पर स्थित होकर ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट हो गए।
इस प्रकार भगवान शिव ने सुप्रिय को दर्शन देने के साथ ही अपना पाशुपत-अस्त्र भी प्रदान किया। उस अस्त्र के सहायता से सुप्रिय ने राक्षस दारुक तथा उसके सहायक का वध किया और स्वयं शिवधाम को चला गया। भगवान शिव के आदेशानुसार इस ज्योतिर्लिंग का नाम श्री नागेश्वर पड़ा।