Shravan Month 2022: कैसे स्थापित हुआ द्वितीय ज्योतिर्लिंग श्रीमल्लिकार्जुन? श्रीमल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग (Wikimedia Commons)
धर्म

Shravan Month 2022: कैसे स्थापित हुआ द्वितीय ज्योतिर्लिंग श्रीमल्लिकार्जुन?

Shravan Month 2022: भगवान मल्लिकार्जुन की पूजा करने से व्यक्ति दैहिक, दैविक, भौतिक सभी प्रकार की बाधाओं से मुक्त हो जाता है।

Prashant Singh

Shravan Month 2022: महाभारत, शिवपुराण तथा पद्मपुराण आदि धर्मग्रंथों में विस्तारपूर्वक वर्णित श्रीमल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग (Jyotirlinga Srimallikarjuna) आंध्रप्रदेश में कृष्णा नदी के तट पर स्थित है। यह ज्योतिर्लिंग दक्षिण का कैलास कहे जाने वाले श्रीशैलपर्वत पर शोभायमान है।

पुराणों के अनुसार, एक बार भगवान शंकर के दोनों पुत्र श्रीगणेश और श्रीकार्त्तिकेय आपस में, पहले विवाह करने के लिए, झगड़ने लगे। गणेश जी चाहते थे कि पहले उनका विवाह हो, और कार्तिकेय जी चाहते थे कि पहले उनका विवाह हो।

दोनों को झगड़ते देख कर भगवान शंकर ने और माता पार्वती ने कहा कि उन दोनों में से जो सबसे पहले इस पृथ्वी का चक्कर लगाकर आएगा, उसिकी सबसे पहले शादी होगी। माता-पिता की बात सुनकर कार्तिकेय जी तत्काल अपने वहाँ मोर पर बैठ कर पृथ्वी की परिक्रमा के लिए प्रस्थान हो गए। पर गणेश जी की स्थूल काय और वाहन छोटा सा मूसक होने के कारण उनके लिए यह एक कठिन कार्य था।

लेकिन बुद्धि के दाता विघनहार्ट गणेश जी ने तुरंत एक युक्ति सोची। उन्होंने माता-पिता की विधिपूर्वक पूजन किया और उनकी सात बार परिक्रमा पूरी करके अपनी पृथ्वी-प्रदक्षिणा का कार्य पूरा किया। उन्होंने शस्त्रों में वर्णित धर्म का पालन किया था-

पित्रोश्च पूजनं कृत्वा प्रक्रान्तिं च करोति यः।

तस्य वै पृथिवीजन्यं फलं भवति निश्चितम्‌॥

अर्थात, जो संतान माता-पिता की पूजा करके उनका परिक्रमा करते हैं, उनका वह कर्म समस्त पृथ्वी के परिक्रमा (समस्त तीर्थ) करने के समान होता है।

इधर कार्तिकेय जी जब तक पृथ्वी परिक्रमा से लौटे तो क्या देखते हैं कि गणेश जी का विवाह 'सिद्धि' और 'बुद्धि' नाम वाली दो कन्याओं के साथ हो चुका था। यह देखकर कार्तिकेय जी रुष्ट होकर क्रौञ्च पर्वत पर चले गए। पीछे से माता पार्वती उन्हें मनाने वहाँ पहुंची। उनके पीछे भगवान शंकर वहाँ पहुंचकर ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट हुए, और तभी से उनका नाम मल्लिकार्जुन-ज्योतिर्लिंग और इसी नाम से प्रख्यात हुए। कहा जाता है कि उस वक्त उनकी अर्चना मल्लिका-पुष्पों के द्वारा की गई थी, अतः उनका नाम मल्लिकार्जुन पड़ा।

मल्लिकार्जुन-ज्योतिर्लिंग (Jyotirlinga Srimallikarjuna) को लेकर एक और कथा प्रचलित है। कहा जाता है कि शैल पर्वत के निकट किसी समय राजा चंद्रगुप्त की राजधानी थी। एक समय उनके राज्य में कोई विपत्ति आई जिसके निवारण हेतु उनकी पुत्री ने महल छोड़कर पर्वतराज के आश्रम में जाकर गोपों के साथ रहने लगीं। उस अद्भुत कन्या के पास एक अत्यंत शुभ लक्षरा सुंदर श्यामा गौ थी, जिसका दूध रात में कोई चोरी से दुह ले जाता था।

एक दिन उस कन्या ने रात में उस चोर को दूध दुहते हुए देख लिया और क्रोध में वहाँ पहुंची। वहाँ जाकर वो अचंभित रह गई क्योंकि वहाँ एक शिवलिंग था और उसके अतिरिक्त कुछ भी नहीं। राजकुमारी ने उस घटना के बाद एक बहुत ही विशाल मंदिर बनवाया, और यही शिवलिंग मल्लिकार्जुन के नाम से प्रसिद्ध हुआ। प्रतिवर्ष यहाँ शिवरात्रि पर विशाल मेले का आयोजन होता है। भगवान मल्लिकार्जुन की पूजा करने से व्यक्ति दैहिक, दैविक, भौतिक सभी प्रकार की बाधाओं से मुक्त हो जाता है।

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