हर साल उड़ीसा के पुरी में जगन्नाथ रथ यात्रा का आयोजन किया जाता है जो सिर्फ एक धार्मिक महत्व नहीं बल्कि आस्था, परंपरा, संस्कृति और समर्पण का अद्भुत संगम है। इस धार्मिक रथ यात्रा के दौरान 3 रथ निकलता है एक भगवान जगन्नाथ का, दूसरा उनके भाई बलभद्र का और तीसरा उनकी बहन सुभद्रा का। समय-समय पर भगवान जगन्नाथ और उनकी रथ यात्रा से जुड़ी कई कहानियां सामने आती रही हैं, जो काफी चौंकाने वाली होती हैं। रथ यात्रा में लाखों की संख्या में श्रद्धालु हर साल एकत्रित होते हैं और भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा को पूर्ण करते हैं। ऐसा कहा जाता है कि भगवान जगन्नाथ के रथ की रस्सी को जो भी भक्त खींचता है उसे सीधा परमात्मा से जुड़ाव महसूस होता है। इस रस्सी से जुड़ी कई मान्यताएं और कई कहानियां है। लेकिन क्या आप यह जानते हैं की जो रस्सी धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व रखती है आखिर उन रस्सियों को बनाता कौन है?
रथ यात्रा की रस्सी छूने के लिए भक्त रहतें है परेशान
जगन्नाथ पुरी रथ यात्रा में भगवान जगन्नाथ के नंदीघोष रथ के साथ ही उनकी बहन सुभद्रा का दर्पदलन और भाई बलभद्र का तालध्वज रथ भी होता है। सबसे आगे बलभद्र जी का तालध्वज रथ चलता है। इसके बाद सुभद्रा जी का दर्पदलन रथ होता है और अंत में जगन्नाथ भगवान का नंदीघोष रथ होता है। तीनों रथ 3 किलोमीटर दूर गुंडीचा माता के मंदिर तक जाते हैं। आपको बता दे की जगन्नाथ रथ यात्रा के दौरान भक्तों के द्वारा रथ की रस्सी खींची जाती है और वहां उपस्थित हर भक्त यह सौभाग्य प्राप्त करना चाहता है। ऐसी मान्यता है कि जो भी भक्त जगन्नाथ रथ यात्रा की रस्सी को खींचता है वह सीधा भगवान से जुड़ाव महसूस करता है इसके साथ ही उसका आध्यात्मिक विकास भी होता है और वह जन्म और मृत्यु के बंधन से मुक्त हो जाता है। लेकिन इन रस्सी को बनाने के पीछे एक पूरा आदिवासी समाज लगा हुआ है, तो आइए इसके बारे में जानते हैं।
कौन बनाता है रथ यात्रा की रस्सियां?
सबसे पहले तो आपको बता दें कि रथ यात्रा के दौरान जिन राशियों को खींचकर भक्त रथ यात्रा को संपूर्ण करते हैं उन रस्सियों को काफी पवित्र माना जाता है और यह रस्सी उड़ीसा के एक खास समुदाय के द्वारा तैयार की जाती हैं। इन रस्सियों को खींचना यानि भगवान जगन्नाथ की सेवा करना के बराबर माना जाता है। जगन्नाथ रथ यात्रा के लिए मोटी रसिया बनाई जाती हैं और प्रत्येक रस्सी 220 फिट की बड़े ही पारंपरिक तरीके से तैयार होती हैं, इन्हें स्थानीय भाषा में “राहा” कहा जाता है। ओडिशा के केंदुझार जिले के डेहरी गांव के रहने वाले 80 आदिवासी इन राशियों का निर्माण करते हैं। यह आदिवासी समुदाय सामूहिक रूप से 12 रसिया तैयार करते हैं जिनमें प्रत्येक की लंबाई 300 मीटर होती है। इन रस्सियों के लिए रेशे सियाली के पेड़ों से प्राप्त होते हैं जो जिले के गंधमर्दन जंगलों में पाए जाते हैं। एक रस्सी का वजन 200 क्विंटल होता है, और प्रत्येक रस्सी के लिए इन आदिवासी समुदाय को मंदिर की तरफ से ₹10000 दिए जाते हैं।
सियाली की लताओं से चलती है जीविका
आपको बता दें कि उड़ीसा के जंगलों में पाई जाने वाली सियाली लता के पौधों से बनने वाली ये रस्सियां दूसरी रस्सियों की तुलना में ज्यादा मजबूत होती हैं और यात्रा में विशाल रथों को खींचने के लिए बहुत शक्ति प्रदान करती हैं। सियाली लता का पौधा इस क्षेत्र के जंगलों में आर्थिक रूप से सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण पौधों में से एक है, क्योंकि आदिवासी इन लताओं का उपयोग रस्सियों, टोकरियों, बैगों और इसी तरह के सामान बनाने के लिए करते हैं। यह डेहरी पौड़ी भुइयां नामक आदिवासी समुदाय से ताल्लुक रखते हैं जो अपने शांत, सरल और मेहनती स्वभाव के लिए जाने जाते हैं। यह समुदाय हर साल जगन्नाथ रथ यात्रा के लगभग एक हफ्ते पहले से सारा काम छोड़कर केवल रस्सी बनाने का यह मुख्य काम ही करता है।
जगन्नाथ रथ यात्रा सिर्फ एक धार्मिक उत्सव नहीं, यह भारत की जीवित परंपरा है। और इस परंपरा को जीवित रखते हैं वो साधारण से दिखने वाले असाधारण लोग – ओडिशा के आदिवासी कारीगर। वे रस्सियाँ बनाते हैं, जिनसे भगवान का रथ खिंचता है। ये रस्सियाँ केवल धागों से नहीं, आस्था, श्रम और श्रद्धा से बुनी जाती हैं। [Rh/SP]