Zafar Mahal Mehrauli : प्राचीन इतिहास को जानने की इच्छा रखने वाले लोगों को अक्सर ऐतिहासक इमारतों को लेकर बहुत सी जिज्ञासा मन में होती है। आज हम भारत की एक ऐतिहासिक इमारत जो मुगलों की आखिरी इमारत कही जाती है उसी से जुड़ी प्राचीन कहानियों के बारे में आपको रूबरू करवाएंगे। दिल्ली के एक ऐसा किला जिसकी अपनी अनोखी कहानी है, जिसे बहादुर शाह जफर के काल में बनवाया गया था।
जफर महल दिल्ली के महरौली इलाके में स्थित है। मुगलकाल में कई ऐसी इमारत हैं, जिनके नाम लोग जानते भी नहीं हैं, उन्हीं इमारतों में एक जफर महल भी है इसका निर्माण मुगल काल खत्म हो जाने पर किया गया था। कुछ लोग तो इसे जीनत महल या लाल महल के नाम से भी जानते है।
जफर महल आखिरी मुगल स्मारक माना गया है, यही इस महल की खासियत है, यह महल तीन मंजिला है, इसे लाल बलुआ पत्थर से बनाया है। बाद में इसमें मुगल शैली में बना एक बड़ा छज्जा भी शामिल किया गया। प्रवेश द्वार पर, लोगो में घुमावदार और ढके हुए बंगाली गुंबदों के किनारे छोटी-छोटी उभरी हुई खिड़कियाँ हैं। मेहराब के दोनों किनारों पर बड़े कमल के रूप में दो अलंकृत पदक प्रदान किए गए हैं। इमारत की खासियत एक ये भी है कि इस महल को मुगल और यूरोपीय शैली का मिश्रण देखने को मिलेगा।
इस महल को बहादुर शाह जफर ने अपने आराम के लिए बनवाया था, क्योंकि उस समय महरौली में घने जंगल हुआ करते थे, जो गर्मियों में रहने लिए काफी आरामदायक जगह हुआ करती थी। यहां मुगल आते थे और वहां शिकार किया करते थे। इस महल में एक कब्रिस्तान भी है, यहां शाही मुगल परिवार के कई सदस्य को दफनाया गया है। अब यहां की हालत बहुत खराब हो चुकी है।
आप यदि इछुक है तो आप ये महल आज भी महरौली में जाकर देख सकते है, इसका निर्माण 1820 में शाहजहां के पोते अकबर शाह द्वितीय ने करवाया था। मगर इसे 19वीं सदी में दोबारा बहादुर शाह जफर ने बनवाया था, बहादुर शाह जफर इस आलिशान महल के बाहरी हिस्से में एक आलिशान दरवाजे का भी निर्माण करवाया था। अपने समय पर ये महल काफी ज्यादा आलिशान था, लेकिन अब ये महल एक खंडहर बन गया है।