Hardoi: एक मां ने पिछले 14 सालों से लगातार संघर्ष झेलते हुए आखिरकार आज सफलता पा ली।[Wikimedia Commons] 
उत्तर प्रदेश

14 साल बाद आखिरकार एक मां को मिल गया इंसाफ

हरदोई की रामदेवी अपने बेटे की सड़क हादसे में मौत के बाद पति रामकुमार द्वारा मुआवजे के लिए छेड़ी गई जंग में हर कदम साथ रही। वह अपने गांव से भूखे प्यासे जिला अधिकारी कार्यालय में तारीख के लिए पैदल ही निकल पड़ती थी।

न्यूज़ग्राम डेस्क, Sarita Prasad

भारत में कई बार कुछ मामलों को लेकर कोर्ट के फैसले आने में इतने ज्यादा साल गुजर जाते हैं की इंसाफ के लिए लड़ रहा व्यक्ति भी इस दुनिया से विदा हो जाता है। आज हम आपको एक ऐसी मां की कहानी बताएंगे जिसने पिछले 14 सालों से लगातार इंसाफ के लिए कोर्ट के चक्कर काटे हैं। इस 14 सालों में उस मां पर क्या-क्या बीता, कितनी यातनाएं उन्हें सहनी पड़ी यह सभी जानकर आपकी भी आंखें भर जाएंगी।

क्या था मामला

मा एक ऐसा शब्द है, जिसे सुनते ही ममता, संवेदना, हिम्मत, हौसला और भी न जाने कितनी भावनाएं एक साथ उमड़ उठाती हैं। यूपी के हरदोई में एक मां ने पिछले 14 सालों से लगातार संघर्ष झेलते हुए आखिरकार आज सफलता पा ली। दरअसल हरदोई के जिगनिया कटरा की रहने वाली वृद्ध महिला रामदेवी का बेटा विपिन ट्रक पर काम करता था। 3 जुलाई 2009 को वह फर्रुखाबाद से ट्रक पर आलू लाद कर निकला, लेकिन रास्ते में भरदोही के पास ट्रक का टायर फटने की वजह से ट्रक अनियंत्रित हो गया और उसमें दबकर विपिन की मौत हो गई। 14 साल की कागजी लड़ाई के बाद आखिरकार बेटे की मौत का मुआवजा पाने में वृद्ध महिला कामयाब हुई।

रामदेवी गांव से भूखे प्यासे जिला अधिकारी कार्यालय में तारीख के लिए पैदल ही निकल पड़ती थी[Wikimedia Commons]

हरदोई की रामदेवी अपने बेटे की सड़क हादसे में मौत के बाद पति रामकुमार द्वारा मुआवजे के लिए छेड़ी गई जंग में हर कदम साथ रही। वह अपने गांव से भूखे प्यासे जिला अधिकारी कार्यालय में तारीख के लिए पैदल ही निकल पड़ती थी। मगर कुछ समय बिताने के बाद 3 वर्ष पहले उनके पति रामकुमार का भी निधन हो गया और यह वृद्ध महिला पूरी तरह से अकेली हो गई थी। उसके बाद उन्होंने अकेले ही बिना हिम्मत हारे जंग को जारी रखना तय किया। लगातार 100 तारीखो पर वह जैसे-तैसे कई किलोमीटर तक पैदल चलती थी, तब जाकर उन्हें वहां हरदोई शहर तक के लिए गाड़ी मिलता था। इतनी मुसीबतों को झेलते हुए रामदेवी ने ये जंग जीत ली।

14 वर्षों बाद मिला न्याय

रामदेवी के पति राम कुमार एक मजदूर थे, लिहाजा घर की जिम्मेदारी विपिन पर ही थी। इसी बीच अकेले बेटे विपिन की मौत से पूरा परिवार सदमे में आ गया था।

अब उन्होंने 14 वर्षों के कागजी लड़ाई लड़कर जीत हासिल की है[Wikimedia Commons]

फिर विपिन के निधन के बाद उनके पति ने कागजी लड़ाई शुरू करते हुए श्रमिक क्षतिपूर्ति की मांग की। रामदेवी ने बताया कि कई वर्षों तक वे मुआवजे के लिए दौड़ते रहे लेकिन न्याय नहीं मिला। अब उन्होंने 14 वर्षों के कागजी लड़ाई लड़कर जीत हासिल की है। आपको बता दे की हरदोई जिला अधिकारी मंगला प्रसाद सिंह के आदेश पर श्रमिक क्षतिपूर्ति के मुआवजे के रूप में 226380 रुपए बने थे। वहीं हादसे के दिन से 6% ब्याज के साथ नेशनल इंश्योरेंस कंपनी ने रामदेवी को चार लाख 16 हजार 167 रुपए का भुगतान किया है।

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