“वैष्णव जन तो तेने कहिये जे, पीड़ परायी जाने रे”

"वैष्णव जन तो तेने कहिये जे, पीड़ परायी जाने रे" अर्थात सच्चा वैष्णव वही है जो दूसरों की पीड़ा को समझता है। यह भजन गुजरात के 15वीं सदी के प्रसिद्ध आध्यात्मिक संत नरसिंह मेहता द्वारा रचित है।
ट्रांसपेरेंसी-पारदर्शिता
मुनीश रायज़ादा द्वारा निर्मित वेब-सीरीज़ "ट्रांसपेरेंसी-पारदर्शिता"।YouTube
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"वैष्णव जन तो तेने कहिये जे, पीड़ परायी जाने रे", एक ऐसी रचना, जो सिर्फ गाने के लिए नहीं, बल्कि जीने के लिए बनी थी। जो मंदिर की दीवारों से निकलकर सीधे इंसान के दिलों तक पहुंच गई। सावनी मुधगल (Sawani Mudgal) की मधुर आवाज़ में जब यह भजन गूंजता है, तो लगता है मानो आत्मा को कोई आईना दिखा रहा हो। जहाँ करुणा, सच्चाई और सेवा ही इंसानियत का असली अर्थ बन जाता हैं।

आज उसी आत्मिक संदेश को आधुनिक रूप में सामने लाती है मुनिश कुमार रायज़ादा द्वारा निर्मित वेब सीरीज़ "ट्रांसपेरेंसी-पारदर्शिता" (Transparency), जहाँ राजनीति और समाज की उलझनों के बीच एक सवाल गूंजता है, क्या हम सच में “वैष्णव जन” बन पाए हैं? क्या हमारी सोच और कर्म उतने ही पारदर्शी हैं जितना हम दूसरों से उम्मीद करते हैं? यह सीरीज़ संगम है,भक्ति और व्यवहारिकता का, जहाँ भजन दिल को बदलने की बात करता है और “पारदर्शिता” समाज को।

"वैष्णव जन तो तेने कहिये जे, पीड़ परायी जाने रे" अर्थात सच्चा वैष्णव वही है जो दूसरों की पीड़ा को समझता है। हमे यह सिखाता है कि सच्चा इंसान वही है जो दूसरों के दुख को अपना माने, बिना स्वार्थ के सेवा करे, सत्य बोले और हर कार्य में ईमानदारी रखे। यह भजन गुजरात के 15वीं सदी के प्रसिद्ध आध्यात्मिक संत नरसिंह मेहता (Narsingh Mehta) द्वारा रचित है। नरसिंह मेहता को गुजराती भाषा के 'आदि कवि' और 'भक्त कवि' के रूप में जाना जाता है। यह भगवान कृष्ण के परम भक्त थे और इन्होंने 'वैष्णव जन तो' जैसे कई प्रसिद्ध भजनों की रचना की थी। जो गाँधी जी का भी पसंदीदा था। इस भजन को कई फिल्मों में इस्तेमाल भी किया गया था, और न जाने कितने प्रसिद्ध गायकों ने स्वर दिया। किन्तु इस भजन को न्याय और असली स्वरुप मिला पारदर्शिता (Transparency) वेब-सीरीज़ में। वह इसलिए क्योंकि जो संदेश यह भजन हम सब को देना चाहता है वह इस वेब-सीरीज़ में भरपूर मात्रा में उपलब्ध है।

यह भजन, सत्ता के लोभ में चूर उन सभी को आईना दिखता है जो स्वराज का राग अलाप कर चंदा-चोरी में जुट गए थे। जिन्होंने केवल अपना जेब भरा और सत्ता का गलत उपयोग किया।

इस भजन में महात्मा गाँधी, मार्टिन लूथर किंग जू. एवं नेल्सन मंडेला को दर्शाया गया है। क्योंकि उनके काम और सोच में निःस्वार्थ भावना रहती थी। इन सभी ने अपने देश को विकास के दिशा में नई पहचान दी और वो भी बिना अपने ऊपर कोई दाग लगाए। "इंडिया अगेंस्ट करप्शन" (India Against Corruption) का नेतृत्व करने वाले समाज सेवी अन्ना हज़ारे (Anna Hazare) जो कि महात्मा गाँधी के पदचिन्हों पर चलने के लिए जाने जाते हैं, इस सीरीज़ में उन्हें भी दर्शाया गया है। वह इसलिए क्योंकि अन्ना हज़ारे ही वह समाज सुधारक हैं जिन्होंने देश से भ्रष्टाचार को मिटाने के लिए आंदोलन का आवाह्न किया था। जिनके साथ इस देश का हर वर्ग, संप्रदाय और तबका एक साथ चल रहा था।

ट्रांसपेरेंसी-पारदर्शिता
आम आदमी पार्टी की ‘पारदर्शिता’ की कमी का खुलासा देखें YouTube पर

इस भजन को आप वेब-सीरीज़ के छठे एपिसोड 'स्वराज के टापू' में देख सकते हैं जिसमे महात्मा गाँधी (Mahatma Gandhi) के आश्रम को भी दर्शाया गया है। इसी एपिसोड में आपको भारत के तीन आदर्श ग्राम को जानने का अवसर मिलेगा। एक है हिवरे बाज़ार (Hiware Bazaar) दूसरा है रालेगण सिद्धि (Ralegan Siddhi) जो की अन्ना हज़ारे का गांव है और तीसरा तमिलनाडु में कुथमबक्कम गांव (Kuthambakkam Village), यह तीनों गांव देश में अन्य गांवों के लिए मॉडल के रूप में उभर कर आएं हैं।

इस सीरीज़ (Series) में राजनीति, लोकतंत्र और भ्रष्टाचार की परतों को हटाकर पारदर्शिता की आवश्यकता को उजागर किया गया है। जैसे भजन में कहा गया है कि सच्चा वैष्णव दूसरों की पीड़ा महसूस करता है और सत्य के मार्ग पर चलता है, वैसे ही “पारदर्शिता” (Pardarshita) यह संदेश देती है कि समाज और शासन की सच्ची शक्ति तभी बन सकती है जब हर व्यक्ति भीतर से ईमानदार और संवेदनशील हो। सावनी मुद्गल की आवाज़ में गायी इस गीत के संगीतकार हैं प्रवेश मल्लिक (Pravesh Mallik), इन्होंने 2016 में आयी फिल्म "जय गंगाजल" (Jai Gangajal) से संगीतकार के रूप में अपनी शुरुआत की थी। और यह गीत मुनीश रायज़ादा फिल्म्स द्वारा निर्मित है।

[Rh/SS]

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