ऑस्ट्रेलिया द्वारा बच्चों के लिए किया गया सोशल मीडिया बैन, क्या विश्वभर में जरुरी है ये मॉडल ?

सितंबर 2025 में यूरोपीय संघ की प्रमुख उर्सुला वॉन डेर लेयेन ने संकेत दिया था कि यूरोपीय संघ के 27 सदस्य देशों में बच्चों के सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म के इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगाया जा सकता है।
इमेज में दो लोग मोबाइल पर सोशल मीडिया स्क्रोल करते हुए देखे जा सकते हैं।
सोशल मीडिया का उपयोग करते हुए बच्चें।Photo by Viralyft
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Summary

ऑस्ट्रेलिया द्वारा 16 साल से कम बच्चों के लिए सोशल मिडिया पर बैन।

सोशल मीडिया से बच्चों के मानसिक स्थिति पर हो रहे प्रभाव।

विश्वभर में ऑस्ट्रेलियन मॉडल की चर्चा।

आज के समय में सोशल मीडिया लोगों के जीवन में काफ़ी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, और लोग मनोरंजन, ऑफिस वर्क से लेकर पढ़ाई तक के कंटेंट (Content) के लिए सोशल मीडिया (Social Media) पर निर्भर हैं। माना जाता है कि आजकल के बच्चों के लिए फ़ोन का उपयोग करना काफ़ी जरुरी हो गया है, क्योंकि हर एक काम की अपडेट ऑनलाइन प्लेटफ़ॉर्म पर ही दी जाती है, चाहे बच्चों को होमवर्क से जुड़ी जानकारी देनी हो या स्कूल में हो रहे अगले दिन किसी नए कार्यक्रम से संबंधित सूचना देनी हो, यहाँ तक कि स्कूल/कोचिंग बंद होने की खबर भी ऑनलाइन प्लेटफ़ॉर्म के माध्यम से ही अपडेट की जाती है।

वहीं, इससे होने वाले हानिकारक प्रभाव को भी नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता। सोशल मीडिया के कारण लोगों का जीवन सिर्फ़ फ़ेसबुक, इंस्टाग्राम, स्नैपचैट और व्हाट्सऐप तक ही सीमित होता जा रहा है,और इसका सबसे बुरा असर टीनएजर्स पर पड़ रहा है।

सितंबर 2025 में यूरोपीय संघ (European Union) की प्रमुख उर्सुला वॉन डेर लेयेन (Ursula von der Leyen) ने संकेत दिया था कि यूरोपीय संघ के 27 सदस्य देशों में बच्चों के सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म के इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगाया जा सकता है।

ऑस्ट्रेलिया द्वारा उठाया गया कदम

इन्हीं सब बातों को मद्देनज़र रखते हुए, 10 दिसंबर 2025 को ऑस्ट्रेलिया 16 साल से कम उम्र के बच्चों के लिए सोशल मीडिया बैन करने वाला दुनिया का पहला देश बन गया। इस बैन के तहत ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री एनथनी नॉर्मन अल्बनीज़ (Anthony Norman Albanese) ने फ़ेसबुक, स्नैपचैट, एक्स (Twitter), इंस्टाग्राम, टिकटॉक जैसे प्लेटफ़ॉर्म पर 16 साल से कम उम्र के बच्चों के लिए साफ़ मनाही की है। इतना ही नहीं, बल्कि कंपनियों द्वारा 16 साल से कम उम्र के बच्चों के अकाउंट बंद न करने पर भारी जुर्माने का प्रावधान भी लागू किया गया है।

ऑस्ट्रेलिया द्वारा लिए गए फैसले के पीछे कारण

ऑस्ट्रेलिया द्वारा लिए गए इस सख़्त फैसले के पीछे सबसे बड़ा कारण बच्चों पर सोशल मीडिया से हो रहे बुरे प्रभाव को रोकना है। सोशल मीडिया का उपयोग सबसे ज़्यादा टीनएजर्स (Teenagers) द्वारा किया जाता है। यह उपयोग सिर्फ़ स्कूल के काम तक ही सीमित नहीं है, बल्कि बच्चे अपनी उम्र से पहले ही अलग-अलग ऑनलाइन प्लेटफ़ॉर्म का इस्तेमाल अपनी रोज़मर्रा की ज़िंदगी में कर रहे हैं, जिससे उनकी सेहत, ख़ासकर मेंटल हेल्थ पर काफ़ी असर पड़ रहा है। दिन भर सोशल मीडिया पर आँखें गड़ाए रहने से 12 से 18 साल तक के टीनएजर्स में कम उम्र में ही एंग्ज़ायटी (Anxiety) और डिप्रेशन (Depression) जैसे लक्षण देखे जा रहे हैं। इतना ही नहीं, बल्कि सोशल मीडिया के बुरे प्रभाव में बच्चों द्वारा सेल्फ-हार्म के मामले भी शामिल हैं। स्कूल के बच्चे एक-दूसरे को साइबर बुलिंग (Cyberbullying) का शिकार बनाते हैं। साइबर बुलिंग और ट्रॉलिंग (Trolling) के ज़रिए बच्चों को उनके लुक्स (Looks), एक्सेंट (Accent), जाति (Caste), जेंडर (Gender) और क्लास (Class) के आधार पर निशाना बनाया जाता है, जिससे कई बच्चे या तो डिप्रेशन में चले जाते हैं या फिर स्कूल जाना तक छोड़ देते हैं।

इंस्टाग्राम और यूट्यूब की शॉर्ट वीडियो देखना न केवल टीनएजर्स की बुरी आदतों में से एक बन गया है, बल्कि इस आदत ने उनका अटेंशन स्पैन (Attention spain) भी बहुत कम कर दिया है। इंस्टाग्राम स्क्रोल करते-करते समय कब बीत जाता है, इसका पता ही नहीं चलता, जिससे उनके स्लीपिंग शेड्यूल पर भी नकारात्मक असर पड़ता है। नींद पूरी न होने के कारण छोटी उम्र से ही बच्चों में सिरदर्द, चिड़चिड़ापन और घबराहट जैसे लक्षण देखने को मिलते हैं, जो आगे चलकर मानसिक बीमारियों का कारण बन सकते हैं। एज फ़िल्टर (Age Filter) लगाने के बावजूद बच्चों को ऑनलाइन प्लेटफ़ॉर्म पर सेक्सुअल (Sexual), एब्यूसिव (Abusive) और  (Violent) कंटेंट से जुड़ी पोस्ट्स दिखाई देती हैं। आमतौर पर बच्चे ऐसी पोस्ट्स (Posts) और वीडियो में दिलचस्पी दिखाते हैं, क्योंकि ये उनके लिए नई चीज़ें होती हैं। इन्हें जानने की उत्सुकता में वे कई बार इन्हें अपनी रियल लाइफ़ में भी अपनाने की कोशिश करते हैं। यही कारण है कि आजकल टीनएजर्स द्वारा किए गए अपराधों की खबरें भी सामने आ रही हैं, जिन पर कहीं न कहीं सोशल मीडिया का प्रभाव दिखाई देता है।

सरकार द्वारा लिए गए फैसले पर प्रतिक्रिया

 कुछ लोगों ने सरकार द्वारा लिए गए इस फैसले का समर्थन किया है और माना है कि सोशल मीडिया की वजह से बच्चों को फ़ोन से दूर रखना मुश्किल हो गया था। अभिभावकों का मानना है कि सरकार द्वारा लिए गए इस फैसले से बच्चों की परवरिश में मदद मिलेगी। सरकार और मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि यह बैन बच्चों के लिए ज़रूरी है, जिससे उन्हें सोशल मीडिया से दूर एक संतुलित जीवन जीने का अवसर मिल सके। वहीं दूसरी तरफ, ऑस्ट्रेलिया में सरकार के खिलाफ एक याचिका (Petition) भी शुरू हुई है। इस याचिका में लोगों का मानना है कि सोशल मीडिया (Social Media) छात्रों के लिए अपने दोस्तों से जुड़े रहने का एक अहम ज़रिया है और सरकार उनके निजी जीवन में दख़लअंदाज़ी कर रही है। याचिका में यह कहा गया है कि बच्चों को पूरी तरह सोशल मीडिया से काट देना एक ड्रामेटिक, ग़लत और ख़तरनाक फैसला है। इसमें यह भी कहा गया है कि 16 साल से कम उम्र के बच्चों के लिए सोशल मीडिया पूरी तरह बंद कर उन्हें ज़रूरी जानकारी से भी वंचित किया जा रहा है।

इतना ही नहीं, बल्कि सोशल मीडिया कंपनी रेडिट (Reddit) ने भी ऑस्ट्रेलिया सरकार को कोर्ट में चुनौती दी है। रेडिट का मानना है कि यह कानून बच्चों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता (Freedom Of Speech) और ऑनलाइन समुदाय से जुड़े रहने की आज़ादी पर असर डालता है। साथ ही, एज (Age) लागू किए जाने वाले वेरिफ़िकेशन तरीके काफ़ी इन्ट्रूसिव (Intrusive) हो सकते हैं। कुछ टीनएजर्स का मानना है कि इस कानून से उनकी सोशल इंटरेक्शन, राजनीतिक संवाद और दोस्तों से जुड़े रहने का ज़रिया बंद हो जाएगा, इसलिए वे इस कानून का विरोध कर रहे हैं। फ़िलहाल यह मामला ऑस्ट्रेलिया की सबसे ऊँची अदालत में चल रहा है। हालाँकि, बच्चों ने अभी से ही इस बैन से बचने के लिए कई तरह के जुगाड़ लगाने शुरू कर दिए हैं। उदाहरण के तौर पर, 13 साल की एक लड़की इसाबेला ने स्नैपचैट (Snapchat) अकाउंट बनाते समय एज वेरिफ़िकेशन  (Age Verification) के दौरान अपनी माँ की फोटो का इस्तेमाल किया। इसी तरह, इसाबेला ने यह भी बताया कि उसने देखा है कि एक बच्चे ने बेयोंसे (Beyoncé) की फोटो का प्रयोग कर अपना अकाउंट बनाया।

भारत समेत पूरी दुनिया में ये नियम जरूरी 

इसमें कोई दो राय नहीं है कि ऑस्ट्रेलिया द्वारा उठाया गया कदम ग़लत नहीं है। बस ज़रूरत है एक मज़बूत और प्रभावी सिस्टम की, जहाँ बच्चे अपने अभिभावक या किसी अन्य व्यक्ति की फोटो का उपयोग कर अकाउंट बनाने में सफल न हो सकें। इस पूरे मामले में सबसे ज़्यादा ज़िम्मेदारी अभिभावकों की है, जो अपने बच्चों के साथ समय बिताकर उन पर नज़र रख सकते हैं। बच्चों द्वारा सोशल मीडिया का उपयोग कई बार ग़लत और ख़तरनाक तरीकों से किया जा रहा है, जिसका मुख्य कारण उनमें सही और ग़लत की पहचान का अभाव है।

छोटी उम्र में बच्चों के हाथ में ऐसा यंत्र थमा देना, जिसके सही उपयोग की उन्हें समझ नहीं है, आने वाली पीढ़ी के लिए गंभीर समस्या बन सकता है। यही वजह है कि दुनिया भर में ऑस्ट्रेलिया द्वारा उठाए गए इस कदम की चर्चा हो रही है और कई देश इस कानून को अपनाने पर विचार कर रहे हैं। बच्चों को सोशल मीडिया के बुरे प्रभाव से बचाने के लिए सख़्त नियमों की ज़रूरत है, ताकि आने वाले समय में हमारी युवा पीढ़ी सोशल मीडिया की लत का शिकार होकर मानसिक अस्थिरता से न जूझे, बल्कि एक स्थिर, सुरक्षित और स्वस्थ जीवन जी सके।

भारत में बच्चों की वर्त्तमान स्थिति को देखते हुए प्रतीत होता है कि भारत को भी ऑस्ट्रेलिया सरकार से सीख लेकर देश में  कुछ ऐसा ही मिलता-जुलता कानून लागू करना चाहिए जिससे बच्चों द्वारा सोशल मीडिया से इन्फ्लुएंस हो कर किये जाने वाले अपराध को रोका जा सके और उनके मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ रहे बुरे प्रभाव से अस्थिरता (Unstability) को कम किया जा सके। 

(Rh/PO)

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