
फंगल यीस्ट संक्रमण (Fungal Yeast Infection), मुंह-गले-आंतों के छालों (Intestinal Ulcers) (अल्सर) से लेकर मधुमेह (Diabetes), लीवर की बीमारियां और दर्द जैसी कई समस्याओं में यह बेहद कारगर साबित हुई है।
इसका वानस्पतिक नाम 'फिलैंथस रेटिकुलैटस' (Phyllanthus Reticulatus) है, और वैज्ञानिक अध्ययनों ने भी इसके एंटीवायरल (Antiviral), एंटीमाइक्रोबियल (Antimicrobial), और सूजन-रोधी (Anti-Inflammatory) गुणों की पुष्टि की है।
नीलबड़ी एक चढ़ाई वाली झाड़ी है, जो फिलैंथेसी (Philanthaceae) परिवार से संबंधित है। यह अफ्रीका (Africa), भारत (India), पाकिस्तान (Pakistan), श्रीलंका (Sri Lanka), म्यांमार (Myanmar), चीन (China), थाईलैंड (Thailand) और ऑस्ट्रेलिया (Australia) जैसे उष्णकटिबंधीय (Tropical) इलाकों में पाई जाती है। इस पौधे की शाखाएं पतली और भूरी होती हैं, जो ऊपर की ओर हरी हो जाती हैं। इसकी पत्तियां हरी, अंडाकार या आयताकार (जिसकी चार भुजाएं) होती हैं, जिनकी लंबाई 3-5 सेमी और चौड़ाई 2-3 सेमी होती है। फूलों के बाद इसमें छोटे-छोटे गोल फल लगते हैं, जो 4-6 मिमी व्यास के होते हैं। ये फल पहले हरे होते हैं और पकने पर नीले-काले हो जाते हैं, जिनमें बैंगनी गूदा और 8-15 छोटे त्रिकोणीय बीज होते हैं। इसके ताजे या सूखे भागों से अर्क बनाकर इस्तेमाल किया जाता है।
आयुर्वेद के अनुसार, नीलबड़ी कफ और वात दोष को शांत करती है। यह बालों की देखभाल जैसे सफेद बालों को काला करना और झड़ना रोकने में उपयोगी भी है। इसी के साथ ही, यह त्वचा रोगों जैसे दाद या दाग-धब्बों में भी फायदेमंद है। पेट की समस्याओं, जोड़ों के दर्द (गठिया) (Arthritis), और लीवर के स्वास्थ्य में इसका खास महत्व है। यह शरीर से विषाक्त पदार्थों को बाहर निकालने में भी मददगार है।
पत्तियां, डंडियां और छाल में कैंसररोधी, दर्द निवारक, एनाल्जेसिक और घाव ठीक करने वाले गुण हैं, जो मुंह-गले-आंतों के कैंसर को रोकने और दर्द कम करने में सहायक हैं। फलों और जड़-तनों में हेपेटोप्रोटेक्टिव गुण हेपेटाइटिस बी जैसी बीमारियों में उपयोगी हैं। पत्तियों-डंडियों का काढ़ा लीवर समस्याओं के लिए कारगर है।
विशेषज्ञों का कहना है कि नीलबड़ी प्राकृतिक चिकित्सा का एक सुरक्षित विकल्प है, लेकिन इस्तेमाल से पहले डॉक्टर की सलाह लें। यह जड़ी-बूटी स्वास्थ्य को बढ़ावा देने वाली आयुर्वेद (Ayurveda) की विरासत को जीवंत रखती है।
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