
हिंदी साहित्य (Hindi Literature) की दुनिया में मन्नू भंडारी (Mannu Bhandari) एक ऐसा नाम हैं, जो सिर्फ शब्दों से नहीं, बल्कि अपने जीवन के संघर्षों और विरोधों से भी जानी जाती हैं। वो समय जब महिलाएं चुप रहने को ही गरिमा समझती थीं, मन्नू ने कलम उठाकर टूटते रिश्तों, स्त्री-पीड़ा और सामाजिक दोहरेपन को निर्भीकता से कागज़ पर उतार दिया। उनका जीवन खुद किसी उपन्यास से कम नहीं था। राजेंद्र यादव (Rajendra Yadav) के साथ उनका रिश्ता, जो प्रेम से शुरू हुआ पर मानसिक और भावनात्मक दूरी तक जा पहुंचा, उनके लेखन का सबसे निजी और विवादास्पद हिस्सा बन गया।
यही नहीं, ‘आपका बंटी’ जैसे उपन्यास ने न सिर्फ साहित्यिक हलकों को झकझोरा बल्कि तलाक, महिला स्वतंत्रता और बाल मनोविज्ञान जैसे विषयों पर समाज को आईना दिखाया और विवादों का सामना भी किया। मन्नू भंडारी (Mannu Bhandari) का लेखन सजावटी नहीं, सच का कुरूप चेहरा दिखाने वाला हुआ करता था। यही उन्हें खास बनाता है। एक ऐसी लेखिका, जो नायिका भी थी और विद्रोही भी। हर एक इंसान के जीवन में उतार चढ़ाव आता है और मन्नू भंडारी का तो पूरा जीवन ही उतार चढ़ाव से भरपूर था।
मन्नू से मन्नू भंडारी बनने तक का सफर
मन्नू भंडारी (Mannu Bhandari) हिंदी साहित्य की उन लेखिकाओं में गिनी जाती हैं, जिन्होंने कहानी और उपन्यास को नया मोड़ दिया। उनका जन्म 3 अप्रैल 1931 को मध्यप्रदेश (Madhya Pradesh) के भानपुरा नामक छोटे कस्बे में हुआ था। बचपन से ही उन्हें पढ़ाई में गहरी रुचि थी, लेकिन पारिवारिक परिस्थितियाँ आसान नहीं थीं। पिता एक साधारण व्यापारी थे और माँ घरेलू स्त्री, इसलिए अक्सर आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ा। मन्नू भंडारी (Mannu Bhandari) की शुरुआती शिक्षा अजमेर में हुई। कॉलेज के दिनों में ही उन्होंने लिखने की शुरुआत कर दी थी। उस दौर में लड़कियों का साहित्य या पत्रकारिता की ओर जाना आम बात नहीं थी, लेकिन मन्नू ने समाज की सोच की परवाह किए बिना अपने सपनों को आगे बढ़ाया।
उन्होंने हिंदी साहित्य में स्नातकोत्तर की पढ़ाई की और शिक्षण कार्य भी किया।उनकी पहली कहानियाँ 1950 के दशक में पत्र-पत्रिकाओं में छपनी शुरू हुईं। धीरे-धीरे वे साहित्यिक जगत में एक सशक्त महिला आवाज़ बनकर उभरीं। मन्नू भंडारी ने अपने जीवन के संघर्षों को ही लेखन का आधार बनाया और यही उनकी कहानियों की असली ताकत बनी। 1961 में ‘एक इंच मुस्कान’ ने उन्हें साहित्य की मुख्यधारा में ला दिया। 1971 में ‘आपका बंटी’ (Aapka Bunty) ने उन्हें मशहूर भी किया और विवादों के केंद्र में भी। और फिर ‘महाभोज’ (‘Mahabhoj’) ने उन्हें राजनीतिक चेतना की लेखिका बना दिया। मन्नू का लेखन न तो सिर्फ कल्पना था, न ही सिर्फ अनुभव वह एक स्त्री की अंतर्दृष्टि, सामाजिक अन्याय के खिलाफ विद्रोह, और रिश्तों की उधेड़बुन से जन्मी सच्चाई थी। मन्नू भंडारी की मृत्यु 15 नवंबर 2021 में हुई। भले वो आज इस दुनियां में नहीं है लेकिन उनके उपन्यास और कहानियां हमेशा के लिए अमर हो चुकीं हैं।
जब एक उपन्यास ने समाज और निजी जीवन दोनों को हिला दिया
मन्नू भंडारी (Mannu Bhandari) हिंदी साहित्य की उन लेखिकाओं में शामिल हैं, जिनकी रचनाएँ हमेशा समाज के बीच चर्चा का विषय बनीं। उनका सबसे अधिक विवादित उपन्यास “आपका बंटी” (1971) है। यह उपन्यास टूटते हुए वैवाहिक रिश्ते और उससे प्रभावित बच्चों की मानसिक स्थिति पर आधारित था। कहानी में तलाक, वैवाहिक कलह और स्त्री की स्वतंत्र सोच को जिस बेबाकी से दिखाया गया, उसने उस समय के समाज को झकझोर दिया। कई लोगों ने इसे आधुनिक समाज की सच्चाई माना, तो कई आलोचकों ने इसे पारंपरिक मूल्यों के खिलाफ बताया। इसी वजह से “आपका बंटी” को लेकर काफी विवाद खड़ा हुआ।इसके अलावा उनका उपन्यास “महाभोज” भी विवादों में रहा। यह उपन्यास राजनीतिक भ्रष्टाचार, जातिगत संघर्ष और सत्ता की लालच पर करारा प्रहार करता है। जब इसे रंगमंच पर प्रस्तुत किया गया तो कई राजनीतिक दलों और नेताओं को इसमें अपनी छवि पर चोट लगती दिखी। नतीजा यह हुआ कि कई बार इसके मंचन पर रोक लगाने की कोशिशें हुईं।
मन्नू भंडारी का व्यक्तिगत जीवन भी विवादों से अछूता नहीं रहा। उनका विवाह मशहूर साहित्यकार राजेंद्र यादव से हुआ था, लेकिन दोनों के बीच वैचारिक मतभेद और व्यक्तिगत टकराव के कारण रिश्ते में दरार आ गई। यह दरार इतनी गहरी हो गई कि उनके जीवन की निजी बातें भी अक्सर सार्वजनिक चर्चा का हिस्सा बनती रहीं।इन सब विवादों के बावजूद मन्नू भंडारी ने लिखना बंद नहीं किया। उन्होंने साबित किया कि एक सच्चा साहित्यकार वही है, जो समाज की वास्तविकताओं को बिना डर और संकोच के सामने लाए। यही कारण है कि आज भी उनकी रचनाएँ पढ़ने वालों के दिलों को छूती हैं और उन्हें हिंदी साहित्य की सशक्त लेखिका के रूप में याद किया जाता है।
मन्नू भंडारी और राजेंद्र यादव की अधूरी कहानी
मन्नू भंडारी और राजेंद्र यादव (Mannu Bhandari and Rajendra Yadav) हिंदी साहित्य की दो मशहूर आवाज़ें, जो जब मिले तो लगा जैसे शब्दों का संगम हो गया हो। 1950 के दशक में जब दोनों साहित्यिक हलकों में सक्रिय हुए, तो उनके बीच सिर्फ विचारों की नहीं, दिलों की नज़दीकी भी बढ़ने लगी। इनका प्यार शुरू हुआ कहानियों और चर्चाओं के बीच एक-दूसरे की रचनाओं को समझते, बहस करते, और धीरे-धीरे एक-दूसरे में घुलते हुए। 1960 में उन्होंने शादी कर ली, और कई लोगों ने कहा कि यह शादी नहीं, साहित्यिक जोड़ा है।
लेकिन यह प्रेम कहानी (Mannu Bhandari and Rajendra Yadav Love Story) बहुत जल्दी एक जटिल उपन्यास में बदल गई। जिसमें भरोसे की जगह अकेलापन, संवाद की जगह चुप्पी, और साथ की जगह दूरी ने ले ली। राजेंद्र यादव, जो खुद को मुक्त सोच का पैरोकार मानते थे, उन्होंने खुला रिश्ता (Open Relationship) जैसी अवधारणाओं को समर्थन दिया, जो उस दौर में न केवल अस्वीकार्य थीं, बल्कि मन्नू के लिए आंतरिक पीड़ा का कारण बन गईं। उन्होंने एक साक्षात्कार में कहा था: “मैंने अपने रिश्ते को बचाने की बहुत कोशिश की, पर जब आत्मा ही घुटने लगे, तो कलम ही एकमात्र सहारा बचती है।” इस रिश्ते की सबसे बड़ी विवादास्पद परछाई तब पड़ी जब राजेंद्र यादव की अन्य महिला लेखिकाओं से नजदीकियों की चर्चा साहित्य जगत में होने लगी। मन्नू ने कभी खुलकर कुछ नहीं कहा, लेकिन उनकी रचनाएँ उनका मौन प्रतिरोध बन गईं। यह प्रेम कहानी कोई 'हैप्पी एंडिंग' नहीं थी, लेकिन उसने हिंदी साहित्य को कुछ सबसे सशक्त, सबसे ईमानदार रचनाएँ ज़रूर दीं।
मन्नू भंडारी की साहित्यिक भेंट और सम्मान
मन्नू भंडारी ने हिंदी साहित्य को ऐसी रचनाएँ दीं, जिन्होंने पाठकों की सोच और समाज की धारणाओं को गहराई से प्रभावित किया। उनकी सबसे प्रसिद्ध और चर्चित कृति “आपका बंटी” (1971) है। यह उपन्यास आज भी हिंदी साहित्य के क्लासिक उपन्यासों में गिना जाता है और लाखों प्रतियाँ बिक चुकी हैं। बच्चों की मानसिकता, तलाक और टूटते रिश्तों पर लिखा गया यह उपन्यास उन्हें व्यापक लोकप्रियता दिलाने वाला साबित हुआ। उनका दूसरा बड़ा उपन्यास “महाभोज” है, जो राजनीति, जातीय संघर्ष और सत्ता के खेल पर तीखा प्रहार करता है। इस उपन्यास को न केवल पाठकों बल्कि रंगमंच की दुनिया में भी खूब सराहा गया। इसे कई भाषाओं में अनूदित किया गया और नाटक के रूप में प्रस्तुत किया गया।
मन्नू भंडारी को उनके साहित्यिक योगदान के लिए कई पुरस्कार मिले। उन्हें व्यास सम्मान (2007) से नवाज़ा गया, जो उनके साहित्यिक जीवन की बड़ी उपलब्धि मानी जाती है। इसके अलावा, उन्होंने कई साहित्य अकादमी पुरस्कार, राज्य स्तरीय सम्मान और प्रतिष्ठित साहित्यिक संस्थानों से सम्मान प्राप्त किया। उनकी कहानियाँ और उपन्यास सिर्फ किताबें नहीं बल्कि समाज का दर्पण हैं। मन्नू भंडारी ने यह साबित किया कि स्त्री लेखन भी उतना ही सशक्त और प्रासंगिक है, जितना पुरुष लेखन।
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मन्नू भंडारी की ज़िंदगी एक ऐसा उपन्यास रही जिसे उन्होंने जीया भी, झेला भी और लिखा भी। उन्होंने कभी मुखौटे नहीं पहने न अपने रिश्तों में, न अपने लेखन में। उनके शब्दों में जीवन की वह कड़वाहट थी जो अक्सर मीठे झूठ में छुपा दी जाती है। शायद इसीलिए उनके लेखन ने इतना सच बोला कि वह विवाद बन गया, और इतनी सच्चाई दिखाई कि वह विरासत बन गया। जहां एक ओर ‘आपका बंटी’ जैसे उपन्यास ने उन्हें आलोचना के कटघरे में खड़ा किया, वहीं उसी रचना ने उन्हें हिंदी साहित्य की सबसे ईमानदार लेखिकाओ में शामिल कर दिया। उनके और राजेंद्र यादव के बीच का प्रेम, और फिर उसका दरकना यह सब उन्हें तोड़ नहीं पाया, बल्कि एक औरत को लेखिका और विचारधारा में बदल गया। आज मन्नू हमारे बीच भले न हों, पर उनके किरदार, उनके संवाद और उनके सवाल अब भी जिंदा हैं, हमारे समाज, रिश्तों और सोच में गूंजते हुए। [Rh/SP]