![डॉ. जेम्स बैरी (Dr. James Barry), जिन्हें दुनिया ने एक कुशल सैन्य सर्जन के रूप में जाना, असल में वह एक महिला थीं [Sora Ai]](http://media.assettype.com/newsgram-hindi%2F2025-08-05%2Fkx0rxh6y%2Fassetstask01k1xbjxgae7692hdjr97szd1d1754405805img1.webp?w=480&auto=format%2Ccompress&fit=max)
19वीं सदी में, जब महिलाओं को डॉक्टर बनना तो दूर, मेडिकल स्कूल में दाखिला लेने तक की इजाज़त नहीं थी, तब एक साहसी महिला ने समाज के सारे बंधनों को तोड़कर अपने सपने पूरे किए। इस महिला का नाम था मार्गरेट एन बल्कली (Margaret Ann Bulkley), जिसने पूरे जीवन एक पुरुष के रूप में, डॉ. जेम्स बैरी (Dr. James Barry), की पहचान अपनाकर चिकित्सा जगत में ऐसा इतिहास रचा, जिसे दुनिया आज भी याद करती है।
मार्गरेट का जन्म 1789 में आयरलैंड के कॉर्क शहर में हुआ था। उनके पिता एक दुकानदार और मामूली सरकारी अफसर थे। परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी और जब उनके पिता ने उन्हें छोड़ दिया, तब हालात और भी बिगड़ गए। आम लड़कियों की तरह मार्गरेट से भी यह उम्मीद की जा रही थी कि वह जल्दी शादी कर ले और घर-गृहस्थी संभाले। लेकिन उनके सपने कुछ और ही थे।
मुश्किल हालात में मार्गरेट और उनकी माँ ने लंदन के एक चित्रकार, अपने चाचा जेम्स बैरी,से मदद मांगी। चाचा के माध्यम से मार्गरेट की मुलाकात कुछ प्रभावशाली लोगों से हुई, जैसे डॉ. एडवर्ड फ्रायर और वेनेज़ुएला के क्रांतिकारी जनरल फ्रांसिस्को डी मिरांडा। इन्हीं लोगों ने मार्गरेट की बुद्धिमत्ता देखकर उन्हें डॉक्टर बनने का सपना देखने के लिए प्रेरित किया। लेकिन एक समस्या थी, उस समय महिलाएं डॉक्टर नहीं बन सकती थीं। उसके बाद फ्रायर और मिरांडा की मदद से मार्गरेट ने एक अनोखा फैसला लिया, उन्होंने पुरुष के वेश में मेडिकल स्कूल जाने की योजना बनाई। अपने दिवंगत चाचा के नाम पर उन्होंने "जेम्स बैरी" ("James Barry") नाम रखा, बाल कटवा लिए, कपड़े बदले, आवाज़ में बदलाव किया और 1809 में एडिनबर्ग यूनिवर्सिटी में दाखिला लिया।
छोटा कद, नर्म आवाज़ और चिकना चेहरा देखकर कई लोग उन्हें लड़का नहीं बल्कि बच्चा समझते थे। जब अधिकारियों ने उनकी उम्र को लेकर संदेह जताया, तब लॉर्ड एर्स्किन ने हस्तक्षेप करके उन्हें परीक्षा में बैठने दिया। और 1812 में, जेम्स बैरी ने मेडिकल कि डिग्री हासिल की, जो ब्रिटेन में (गुप्त रूप से ही सही) महिला द्वारा प्राप्त की गई पहली डिग्री थी। डिग्री के बाद डॉ. बैरी ने लंदन के सेंट थॉमस अस्पताल में काम किया और 1813 में ब्रिटिश सेना में भर्ती हो गईं।
1815 के वॉटरलू युद्ध (Battle Of Waterloo 1815) में उन्होंने सेवा दी और फिर उन्हें दक्षिण अफ्रीका के केप टाउन में तैनात किया गया। यहाँ उन्होंने ऐसा सर्जिकल कारनामा किया जिसने उन्हें अमर बना दिया,1826 में उन्होंने सिजेरियन ऑपरेशन किया जिसमें माँ और बच्चा दोनों बच गए। यह उस समय एक चमत्कार से कम नहीं था, क्योंकि तब एनेस्थीसिया और एंटीसेप्टिक का इस्तेमाल नहीं होता था।
डॉ. बैरी (Dr. James Barry) केवल इलाज करने तक सीमित नहीं रहीं, उन्होंने जन स्वास्थ्य सुधारों में अहम भूमिका निभाई। उन्होंने ग़रीबों, गुलामों, सैनिकों और कैदियों के लिए बेहतर इलाज, साफ पानी और साफ-सफाई की व्यवस्था की। वो कहती थीं, "रोकथाम इलाज से बेहतर है।" उनकी नियुक्तियाँ धीरे-धीरे बढ़ती गईं, मॉरीशस, कनाडा, त्रिनिदाद जैसे देशों में भी उन्होंने सेवा दी। वो सेना की मेडिकल सेवा में इतनी ऊँचाई पर पहुँच गईं कि उन्हें सैन्य अस्पतालों की महानिरीक्षक बनाया गया, यह पद ब्रिगेडियर जनरल के समकक्ष था।
डॉ. बैरी (Dr. James Barry) अपने काम में सख्त और अनुशासित थीं। उनके गुस्से और जुझारूपन के किस्से मशहूर थे। यहां तक कि फ्लोरेंस नाइटिंगेल ने भी कहा कि "वह अब तक की सबसे कठोर महिला थीं।" लेकिन यह कठोरता ही शायद पुरुष पहचान को बनाए रखने का तरीका था।
1859 में डॉ. बैरी (Dr. James Barry) को ब्रोंकाइटिस हुआ और वो रिटायर हो गईं। 1865 में लंदन में उनकी मौत हो गई। उन्होंने वसीयत में कहा था कि उनके शरीर की जांच न की जाए और उन्हें वैसे ही दफनाया जाए। एक नर्स ने उनके शरीर पर महिला शरीर रचना और प्रसव के निशान देखे। बाद में डॉक्टरों के बीच पत्राचार से यह बात सार्वजनिक हो गई कि डॉ. जेम्स बैरी असल में एक महिला थीं।
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उनकी असली पहचान सामने आते ही ब्रिटिश समाज हैरान रह गया। एक महिला ने पूरे तंत्र को धोखा देकर वो सब कुछ हासिल कर लिया, जो महिलाओं को “कभी संभव नहीं” बताया गया था। ब्रिटिश सेना ने यह जानकारी दशकों तक छुपाई, और उनके दस्तावेज 1950 तक सीलबंद रहे। उसके बाद 2016 में उनकी जीवन पर आधारित किताब "James Barry: A Woman Ahead of Her Time" प्रकाशित हुई। यह किताब बताती है कि कैसे मार्गरेट ने अपने समय से बहुत आगे सोचा और जीया।
डॉ. जेम्स बैरी (Dr. James Barry) की कब्र लंदन के केंसल ग्रीन कब्रिस्तान में है। वहाँ शिलालेख पर लिखा है, "डॉ. जेम्स बैरी, अस्पतालों के महानिरीक्षक, 26 जुलाई 1865 को उनकी 70 वर्ष की आयु में मृत्यु हो गई।" लेकिन यह सिर्फ एक शिलालेख नहीं है, यह इतिहास का वो दस्तावेज़ है, जो बताता है कि सपनों का कोई लिंग नहीं होता। मार्गरेट एन बल्कली ने दुनिया को दिखा दिया कि कौशल, हिम्मत और समर्पण से कोई भी सीमाएं पार की जा सकती हैं। [Rh/PS]