
हरियाणा (Haryana) के जींद जिले का बीबीपुर गांव आज केवल एक गांव नहीं रहा, यह सामाजिक बदलाव का प्रतीक बन गया है। कभी इस गांव को लोग सामान्य के नजरों से देखते थे, लेकिन आज इसकी पहचान देश और दुनिया के एक ऐसे मॉडल के रूप में हो चुकी है, जहां से बदलाव की एक शांत परंतु सशक्त हवा चल पड़ी है। और इस बदलाव के सूत्रधार हैं, पूर्व सरपंच सुनील जागलान।
बीबीपुर गांव (Bibipur village) में परिवर्तन की शुरुआत सिर्फ सफाई, डिजिटलीकरण या महिला सशक्तीकरण से नहीं हुई, बल्कि एक बहुत महत्वपूर्ण लेकिन अक्सर नजरअंदाज की जाने वाली चीज़, "भाषा की मर्यादा" से भी हुई। सुनील जागलान (Sunil Jaglan) ने समाज में फैली अभद्र भाषा, खासतौर पर महिलाओं के खिलाफ इस्तेमाल की जाने वाली गालियों पर लगाम लगाने का बीड़ा उठाया।
जागलान का मानना है कि कोई भी समाज तब तक प्रगतिशील नहीं हो सकता, जब तक उसकी भाषा में मर्यादा और सम्मान नहीं होगा। उन्होंने कहा – "माँ-बहन की गाली देना मर्दानगी नहीं, बल्कि कायरता, मानसिक कमजोरी और खराब परवरिश का प्रमाण है।" उनका यह विचार आज पूरे गांव में एक आदर्श बन चुका है। अब बीबीपुर के लोग गाली देने वाले को टोकते हैं, बच्चों को शुरू से सिखाया जाता है कि अभद्रता कमजोरी है, संस्कार नहीं।
सुनील जागलान का शुरू किया गया "मिशन पासिबल" केवल विकास का नहीं, सांस्कृतिक सुधार का आंदोलन है। इस मिशन के तहत उन्होंने बीबीपुर (Bibipur village) को शहरों जैसा विकसित बनाने के साथ-साथ गांव के लोगों के मन और विचारों को भी बेहतर बनाने की ठानी। उन्होंने न केवल डिजिटल ग्राम पंचायत की शुरुआत की, बल्कि बच्चों और महिलाओं को शिक्षित करने, बेटियों को सम्मान देने, और भाषा में सौम्यता लाने के लिए विशेष अभियान चलाए।
आज सुनील जागलान (Sunil Jaglan) की प्रेरणादायक कहानी स्कूली पाठ्यक्रम का हिस्सा बन गई है। दसवीं कक्षा की वर्कबुक में “A Village Named Bibipur” नामक अध्याय को शामिल किया गया है। इसमें उनके द्वारा किए गए कार्यों को उदाहरण बनाकर छात्रों को प्रेरित किया जाएगा। यह किताब दिल्ली के निजी स्कूलों से शुरू होकर धीरे-धीरे देशभर के स्कूलों में पढ़ाई जाएगी।
सुनील जागलान ने जब 2012 में बेटी नंदिनी के पिता बने, तो उन्हें यह एहसास हुआ कि समाज में बेटियों को अब भी पिछड़ा माना जाता है। इसी सोच को बदलने के लिए उन्होंने “सेल्फी विद डॉटर” नामक अनोखा अभियान शुरू किया, जिसने दुनियाभर में वाहवाही लूटी। आज यह अभियान 70 देशों में पहुंच चुका है। लेकिन इसके साथ ही उन्होंने यह महसूस किया कि जब तक समाज की भाषा में सुधार नहीं होगा, तब तक असली बदलाव अधूरा रहेगा। उन्होंने गांवों में पंचायत बैठकों से लेकर स्कूलों तक, सभी जगहों पर गालियों और अपशब्दों के खिलाफ अभियान चलाया। उनका नारा था, "गाली नहीं, गलती पर चर्चा हो"।
सुनील जागलान (Sunil Jaglan) कहते हैं, “अभद्र भाषा सामाजिक पतन, बौद्धिक दीवालियापन और आध्यात्मिक खोखलेपन का प्रतीक है। यह विकास की राह में सबसे बड़ा रोड़ा है।” उनका मानना है कि महिलाओं को गाली देना, मज़ाक नहीं अपराध है। उन्होंने हर पंचायत सभा, हर रैली में यह बात दोहराई कि गालियां देने वाला मर्द नहीं, कमजोर है। उन्होंने यह भी बताया कि महान नेता, विचारक और वैज्ञानिक कभी गंदी भाषा का प्रयोग नहीं करते, क्योंकि शक्ति का असली प्रमाण शालीनता होती है। बीबीपुर में आज छोटे बच्चों को गाली देना पाप सिखाया जाता है। स्कूलों में “भाषा संस्कार कार्यशाला” आयोजित की जाती हैं। युवा लड़कों और लड़कियों को बताया जाता है कि किस प्रकार शब्द समाज की आत्मा होते हैं, और अपशब्द समाज को भीतर से खोखला कर देते हैं।
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इस अभियान से गांव की महिलाओं को भी मानसिक सुरक्षा मिली है। अब महिलाएं खुलकर पंचायत में बोलती हैं, गाली देने वाले को डांटती हैं, और नई पीढ़ी को सही भाषा का ज्ञान देती हैं। बीबीपुर (Bibipur village) की महिलाएं आज गर्व से कहती हैं, "हमारे गांव में अब शब्दों से सम्मान झलकता है, डर नहीं।" सुनील जागलान के नेतृत्व में बीबीपुर ने दुनिया को दिखा दिया कि परिवर्तन केवल सड़कों और बिजली से नहीं आता, असली बदलाव सोच और शब्दों से आता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी आठ बार उनके अभियानों की खुले मंच से तारीफ कर चुके हैं। उनका मॉडल आज कई देशों और राज्यों में अपनाया जा रहा है।
निष्कर्ष
बीबीपुर (Bibipur village) की कहानी बताती है कि एक छोटा सा गांव भी देश और दुनिया को रास्ता दिखा सकता है, बशर्ते नेतृत्व में संकल्प और सोच में सम्मान हो।
सुनील जागलान (Sunil Jaglan) की मुहिम ने यह साबित कर दिया है कि "शब्दों की शक्ति तलवार से ज्यादा होती है। अगर भाषा में बदलाव लाओ, तो समाज खुद बदल जाएगा।" इस प्रेरणादायक प्रयास से सीखने का समय है, "गाली देना बंद करो, बदलाव की भाषा बोलो।" क्योंकि भाषा ही समाज की असली पहचान होती है। [Rh/PS]