ब्रिटिश डॉक्टर बनकर 7 मरीजों की जान लेने वाला फर्जी सर्जन गिरफ्तार

मध्य प्रदेश के एक अस्पताल में खुद को ब्रिटिश डॉक्टर बताकर सर्जरी करने वाले नरेंद्र विक्रमादित्य यादव को गिरफ्तार किया गया है। फर्जी पहचान और डिग्री के सहारे उन्होंने कई मरीजों का इलाज किया, जिसमें सात की मौत हो गई। पुलिस ने धोखाधड़ी, जालसाजी और ठगी का मामला दर्ज किया है।
ब्रिटिश डॉक्टर बनकर सर्जरी करने वाला फर्जी सर्जन गिरफ्तार।  (Sora AI)
ब्रिटिश डॉक्टर बनकर सर्जरी करने वाला फर्जी सर्जन गिरफ्तार। (Sora AI)
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मध्य प्रदेश के दमोह जिले में एक बेहद हैरान कर देने वाला मामला सामने आया है। नरेंद्र विक्रमादित्य यादव नामक एक व्यक्ति ने खुद को ब्रिटिश डॉक्टर बताकर हृदय रोग विशेषज्ञ के रूप में सर्जरी की, जिसके परिणामस्वरूप सात मरीजों की मौत हो गई। चौंकाने वाली बात यह है कि यह व्यक्ति पिछले दो दशकों से डॉक्टर के रूप में काम कर रहा था – वो भी बिना किसी वास्तविक मेडिकल डिग्री के।

नरेंद्र यादव खुद को 'डॉ. एन जॉन कैम' नामक एक ब्रिटिश हृदय रोग विशेषज्ञ बताकर पेश करता था। पुलिस का कहना है कि उसने ब्रिटेन के प्रसिद्ध सेंट जॉर्ज अस्पताल के डॉक्टर जॉन कैम का नाम अपने साथ जोड़ लिया ताकि लोगों को विश्वास हो कि वह एक उच्च प्रशिक्षित विदेशी विशेषज्ञ है। यही नहीं, यादव ने 2018 में ब्रिटेन में "डॉ. नरेंद्र जॉन कैम" के नाम से चार कंपनियां तक रजिस्टर करवा दी थीं, जिससे उसकी पहचान को लेकर और भ्रम फैल गया। लोगों ने इस नाम को अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञ मानकर विश्वास कर लिया।

दमोह शहर के मिशनरी अस्पताल में यादव ने कुछ सप्ताह तक हृदय रोग विशेषज्ञ के रूप में काम किया। इस दौरान उसने 64 मरीजों का इलाज किया, जिनमें 45 एंजियोप्लास्टी के केस थे। दुर्भाग्यवश, इनमें से सात मरीजों की मौत हो गई। स्थानीय पुलिस ने बताया कि इन सर्जरी में लापरवाही और गैरकानूनी हस्तक्षेप के प्रमाण मिले हैं। ऐसे मामलों की गहन जांच की जा रही है।

पुलिस ने यादव पर धोखाधड़ी, जालसाजी और ठगी के कई धाराओं में केस दर्ज किया है। जांच में पाया गया कि उसकी मेडिकल डिग्री में भी कई गड़बड़ियाँ हैं, जैसे कि किसी मान्यता प्राप्त संस्थान का नाम, छात्र रजिस्ट्रेशन नंबर या प्रमाणित हस्ताक्षर नहीं हैं। दमोह के अस्पताल प्रशासन ने दावा किया कि उन्हें उसकी फर्जी डिग्री के बारे में कोई जानकारी नहीं थी। एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, "वह बहुत प्रोफेशनल ढंग से पेश आता था, इसलिए कोई उस पर शक नहीं कर पाया।"

फर्जी डिग्री और झूठी पहचान से किया इलाज, 7 मरीजों की गई जान।     (Sora AI)
फर्जी डिग्री और झूठी पहचान से किया इलाज, 7 मरीजों की गई जान। (Sora AI)

इस पूरे मामले की परतें तब खुलनी शुरू हुईं जब दमोह की बाल कल्याण समिति को सात बच्चों की मौत की सूचना मिली। समिति के अध्यक्ष दीपक तिवारी ने जब ऑनलाइन जांच की, तो चौंकाने वाला सच सामने आया, नरेंद्र यादव के खिलाफ पहले से ही तीन राज्यों में केस दर्ज थे। जांच के दौरान पता चला कि यादव अस्पताल से अचानक नौकरी छोड़कर गायब हो गया था और कई दिनों तक उसका कोई अता-पता नहीं था। उसे आखिरकार उत्तर प्रदेश के प्रयागराज शहर से गिरफ्तार किया गया।गिरफ्तारी से ठीक पहले यादव ने एक नाटकीय कदम उठाया, उसने दो दर्जन पत्रकारों, व्यक्तियों और प्रकाशकों को ₹5 करोड़ (580,000) डॉलर का कानूनी नोटिस भेजा। उसका दावा था कि उसे बिना ठोस आधार के "किसी और डॉक्टर की पहचान" चुराने का दोषी ठहराया जा रहा है।

यादव की पहचान पर सवाल कोई नई बात नहीं है। 2019 में उसने खुद एक ब्लॉग पोस्ट में दावा किया था कि वह यूके के डॉक्टर जॉन कैम के अधीन प्रशिक्षित हुआ और 2002 में सेंट जॉर्ज अस्पताल में काम करने लगा। उसने यह भी लिखा कि वह अमेरिका, जर्मनी और स्पेन में भी कार्यरत रहा। 2021 में उसने दावा किया कि राजस्थान में 5,000 बेड वाला 'जॉन कैम इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज एंड रिसर्च' तैयार कर रहा है। लेकिन यह दावा भी संदेह के घेरे में है क्योंकि उसकी परियोजना और जमीन का कोई ठोस रजिस्ट्रेशन नहीं मिला।

गिरफ्तारी से ठीक पहले यादव ने एक नाटकीय कदम उठाया, उसने दो दर्जन पत्रकारों, व्यक्तियों और प्रकाशकों को ₹5 करोड़ (580,000) डॉलर का कानूनी नोटिस भेजा। उसका दावा था कि उसे बिना ठोस आधार के "किसी और डॉक्टर की पहचान" चुराने का दोषी ठहराया जा रहा है।     (Sora AI)
गिरफ्तारी से ठीक पहले यादव ने एक नाटकीय कदम उठाया, उसने दो दर्जन पत्रकारों, व्यक्तियों और प्रकाशकों को ₹5 करोड़ (580,000) डॉलर का कानूनी नोटिस भेजा। उसका दावा था कि उसे बिना ठोस आधार के "किसी और डॉक्टर की पहचान" चुराने का दोषी ठहराया जा रहा है। (Sora AI)

2023 में यादव ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म 'X' (ट्विटर) पर ‘प्रोफेसर एन जॉन कैम’ के नाम से एक फर्जी अकाउंट बनाया। जब उस अकाउंट की पोस्ट्स वायरल हुईं, तो असली डॉक्टर जॉन कैम को खुद सामने आकर कहना पड़ा कि यह अकाउंट उनका नहीं है और उनके नाम का दुरुपयोग किया जा रहा है।इस बयान के बाद यादव की पहचान और गहरी जांच के दायरे में आ गई।

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यह पहला मामला नहीं है, जब यादव पर गंभीर आरोप लगे हों। 2014 में भारत के मेडिकल काउंसिल ने "पेशेवर कदाचार" के लिए उसे पांच साल के लिए प्रतिबंधित किया था। 2019 में उसने एक ब्रिटिश डॉक्टर का कथित अपहरण किया था, जिसे वह हैदराबाद में नौकरी के नाम पर बुला लाया था। 2013 में भी उस पर उत्तर प्रदेश में ठगी और धोखाधड़ी का केस दर्ज हुआ था, लेकिन कोर्ट ने उस पर कुछ समय बाद रोक लगा दी। अभी पुलिस इस बात की तसल्ली कर रही है कि नरेंद्र यादव की सारी डिग्रियां फर्जी हैं या किसी हिस्से में सच्चाई भी है। यदि पुष्टि हो जाती है कि वह पूरी तरह से बिना योग्यता के मेडिकल प्रैक्टिस कर रहा था, तो यह भारत के चिकित्सा क्षेत्र की सबसे बड़ी धोखाधड़ी मानी जाएगी।

तीन राज्यों में दर्ज थे केस, प्रयागराज से पकड़ा गया फर्जी हृदय विशेषज्ञ।     (Sora AI)
तीन राज्यों में दर्ज थे केस, प्रयागराज से पकड़ा गया फर्जी हृदय विशेषज्ञ। (Sora AI)

निष्कर्ष

इस मामले ने भारतीय स्वास्थ्य प्रणाली की निगरानी व्यवस्था पर बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है। यदि एक व्यक्ति बिना वैध डिग्री के वर्षों तक डॉक्टर बनकर काम करता रहा, तो यह अस्पतालों की नियुक्ति प्रक्रिया और प्रमाण-पत्र जांच प्रणाली की गंभीर विफलता है। इससे यह भी स्पष्ट होता है कि सोशल मीडिया, वेबसाइट्स और प्रोफेशनल पोर्टल्स पर केवल दिखावे से ही किसी की पहचान और योग्यता पर भरोसा नहीं किया जाना चाहिए। साथ ही यह मामला देशभर के अस्पतालों को चेतावनी देता है कि वो नियुक्तियों से पहले गहन सत्यापन और क्रॉस-चेकिंग को प्राथमिकता दें। [Rh/PS]

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