भारत की सुरक्षा को खतरे में डाल देगा मोदी सरकार का शांति बिल? जानें इसके फायदे और नुकसान

नरेंद्र मोदी की सरकार शांति बिल लेकर आई है, जिससे देश को स्वच्छ ऊर्जा, निवेश और ऊर्जा सुरक्षा मिल सकती है, लेकिन निजी-विदेशी भागीदारी के कारण राष्ट्रीय सुरक्षा, दुर्घटना-जवाबदेही और गोपनीयता पर गंभीर खतरे भी पैदा हो सकते हैं।
एक तरफ न्यूक्लियर पावर प्लांट, दूसरी तरफ नरेंद्र मोदी
केंद्र की NDA सरकार ने शांति बिल चर्चा के लिए संसद में पेश किया X
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Summary

शांति बिल से निवेश, आधुनिक तकनीक और स्वच्छ परमाणु ऊर्जा को बढ़ावा मिलने की उम्मीद है।

इससे बिजली उत्पादन बढ़ेगा और भारत की ऊर्जा सुरक्षा मजबूत हो सकती है।

प्राइवेट होने से राष्ट्रीय सुरक्षा, दुर्घटना की जिम्मेदारी और गोपनीय जानकारी लीक होने का खतरा भी है।

राउडी राठौड़ फिल्म सबने देखी होगी, उसमे एक अक्षय कुमार का डायलॉग है, 'जो मैं बोलता हूँ, वो मैं करता हूँ, और जो नहीं बोलता वो मैं Definitely करता हूँ।" प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी कुछ ऐसे ही मालूम पड़ते हैं। कब क्या कर बैठेंगे? कोई नहीं जानता है। हाल ही में उनकी पार्टी बीजेपी ने बिहार के नीतिन नबीन को राष्ट्रीय पार्टी (National Party) का कार्यकारी अध्यक्ष बना दिया। इसकी किसी को उम्मीद तक नहीं थी। ठीक ऐसे ही ऑप्रेशन सिंदूर (Opreation Sindoor) के वक्त हुआ था। जब सबको लगा कि नरेंद्र मोदी कोई एक्शन नहीं लेंगे, उसी समय भारतीय सेना ने पाकिस्तान पर हमला किया था।

तो ये बात तो तय है कि नरेंद्र मोदी मौका देखकर चौका मारते हैं। अब ऐसा हम इसलिए कर रहे हैं, क्योंकि 16 दिसंबर 2025 को मोदी सरकार की तरफ से केंद्रीय मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने लोकसभा में सस्टेनेबल हार्नेसिंग एंड एडवांसमेंट ऑफ न्यूक्लियर एनर्जी फॉर ट्रांसफॉर्मिंग इंडिया बिल-2025 ((Sustainable Harnessing of Advancement of Nuclear Energy for Transforming India), जिसे शांति बिल (Shanti Bill) कहा जा रहा है, पेश किया।

इस बिल को पेश करते समय ये दलील दी गई कि ये बिल न्यूक्लियर एनर्जी (Nuclear Energy) को सुरक्षित और तेजी से बढ़ाने में मदद करेगा। हालांकि, इस बिल का नाम शांति जरूर है लेकिन ये तबाही लाने का काम कर सकता है। क्यों इस बिल से भारत की सुरक्षा खतरे में आ सकती है? इसे समझते हैं और इसके क्या फायदे और नुकसान हैं, इसे समझते हैं।

क्या है मोदी सरकार का शांति बिल?

केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने एक बड़ा फैसला लिया है। सरकार शांति बिल (Shanti Bill) लेकर आई है, जिसका पूरा नाम सस्टेनेबल हार्नेसिंग एंड एडवांस्डमेंट ऑफ न्यूक्लियर एनर्जी फॉर ट्रांसफॉर्मिंग इंडिया है। अब तक ऐसा था कि न्यूक्लियर पावर प्लांट की जिम्मेदारी सिर्फ सरकारी कंपनियां जैसे NPCIL के पास थी। सरकार की मंशा है कि वो इसके जरिये परमाणु ऊर्जा क्षेत्र में निवेश को सुरक्षित, स्पष्ट और आकर्षक बनाना चाहती है। सबसे अहम बात कि ये बिल उन कंपनियों को कानूनी सुरक्षा देता है, जो परमाणु संयंत्र चलाती हैं।

हालांकि, सरकार ने इसे पूरी तरह से प्राइवेट सेक्टर के लिए खोलने का फैसला नहीं किया है। कुछ संवेदनशील चीज जैसे हेवी वाटर प्रोडक्शन (Heavy Water Production), फ्यूल एनरिचमेंट (fuel enrichment), यूरेनियम माइनिंग (uranium mining) और स्पेंट फ्यूल रीप्रोसेसिंग (spent fuel reprocessing), ये सभी सरकार के पास ही रहेंगे। परमाणु ऊर्जा क्षेत्र को सरकार भले ही प्राइवेट सेक्टर के लिए खोल रही है लेकिन इसमें पूरी तरह से विदेशी कंट्रोल भी नहीं होगा। वही, विदेशी कंपनियां हिस्सा ले सकती हैं, जो पूरी तरह से भारत के कंट्रोल में हों।

बता दें कि भारत सरकार 1962 के एटॉमिक एनर्जी एक्ट (Atomic Energy Act) और 2010 का सिविल लायबिलिटी फॉर न्यूक्लियर डैमेज एक्ट (Civil Liability for Nuclear Damage Act) को खत्म कर और दोनों को साथ मिलाकर एक नया बिल ला रही है और इसे शांति बिल नाम दिया गया है।

बिल का हुआ जमकर विरोध

केंद्रीय मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने लोकसभा में जब ये बिल पेश किया, तब इसका खूब विरोध हुआ। कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस (TMC) के सदस्यों ने इसकी खूब आलोचना की। कांग्रेस की ओर से मनीष तिवारी ने कहा कि ये बिल संविधान के अनुच्छेद 21 और 48ए का हनन करता है क्योंकि इससे निजी क्षेत्र को अत्यधिक खतरनाक परमाणु क्षेत्र में एंट्री मिलेगी, उनकी जवाबदेही होगी और सांविधिक छूट प्रदान होगी। साथ ही न्यायिक उपाय भी सीमित हो जाएंगे। वहीं, TMC के सौगत राय का कहना है कि सरकार इस विधेयक के जरिए एक निजी कंपनी को बढ़ावा दे रही है।

अब जब विरोध हुआ, तब सरकार की तरफ से किरेन रिजिजू ने सफाई दी। उनका कहना है कि अभी ये विधेयक पारित नहीं हुआ है। बस प्रस्ताव पर विचार करना है। विधेयक को महज पेश भर किया जा रहा है।

लोकसभा में पास हुआ बिल

गौरतलब है कि शांति बिल (Shanti Bill) 17 दिसंबर को लोकसभा में पास हो गया है। इसे वॉइस ऑफ़ वोट (voice of vote) के जरिये पास किया गया। जब ये बिल पास हो रहा था, तो इसके विरोध करते हुए विपक्ष ने सदन से वॉकआउट कर दिया। अब ये बिल राजयसभा में जाएगा और वहां पास हो जाता है, तो राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद ये बिल कानून बन जाएगा।

एक्सपर्ट कार्तिक गणेशन की राय

शांति बिल पर एक्सपर्ट ने भी अपनी राय पेश की। कार्तिक गणेशन, जो ऊर्जा/पर्यावरण विशेषज्ञ हैं, उनका कहना है कि यह बिल निजी निवेशकों को संदेश देता है कि भारत न्यूक्लियर सेक्टर के लिए खुला है, जिससे नवाचार, निवेश और स्वच्छ ऊर्जा क्षमता बढ़ेगी. उन्होंने बताया कि इसका उद्देश्य न्यूक्लियर एनर्जी को क्लीन बेस होल्ड एनर्जी के रूप में स्टेबल करना है, जो कोयले की निर्भरता को कम करेगा।

क्या भारत की सुरक्षा खतरे में आ जाएगी?

केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार शांति बिल (Shanti Bill) के जरिये परमाणु ऊर्जा क्षेत्र को प्राइवेट और विदेशी कंपनियों के लिए खोलने की बात तो कर रही है लेकिन यहाँ एक चिंता का विषय भी है। परमाणु ऊर्जा एक बहुत ही संवेदनशील और रणनीतिक क्षेत्र है, जिसमें रिएक्टर, ईंधन और तकनीक से जुड़ी गोपनीय जानकारी होती है। अगर प्राइवेट या विदेशी कंपनियों के लिए ये सेक्टर खोल दिया गया और सरकार का दबदबा कमजोर हुआ, तो इसकी अहम जानकारियां लीक होने का खतरा रहेगा।

इसके साथ ही एक अहम सवाल ये भी है कि अगर कोई परमाणु दुर्घटना होती है, तो इसकी जिम्मेदारी कौन लेगा? सीधे तौर पर इसका नुकसान देश और आम जनता को ही होगा। इसलिए इस बिल को हम तब तक सुरक्षित नहीं मान सकते, जब तक सरकार इसको लेकर सख्त कानून ना बनाए और और मजबूत सुरक्षा के साथ निगरानी की गैरंटी नहीं दे देती है।

शांति बिल के फायदे और नुकसान

अब तक हमने ये चर्चा की, कि शांति बिल (Shanti Bill) क्या है? किसने इसपर प्रतिक्रिया दी, और कैसे भारत की सुरक्षा इससे प्रभावित हो सकती है? अब ये समझते हैं कि इस बिल के फायदे क्या हैं और साथ ही साथ नुकसान क्या हैं?

Q

क्या है इस बिल के फायदे?

A

इससे देश में निवेश और आधुनिक तकनीक का आगमन होगा।

कोयले और तेल पर निर्भरता कम होगी।

भारत की ऊर्जा सुरक्षा मजबूत होगी।

परमाणु ऊर्जा क्षेत्र में प्राइवेट कंपनियों की भागीदारी बढ़ेगी।

इससे बिजली उत्पादन बढ़ेगा और 24×7 स्थिर ऊर्जा प्राप्त होगी।

देश में रोज़गार के नए अवसर पैदा होंगे।

स्वच्छ ऊर्जा मिलने से प्रदूषण और कार्बन उत्सर्जन घटेगा।

Q

क्या है इस बिल के नुकसान?

A

परमाणु क्षेत्र संवेदनशील और रणनीतिक क्षेत्र है, और इससे देश की राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरा हो सकता है।

प्राइवेट कंपनियों के कारण बिजली महंगी होने की उम्मीद है।

परमाणु कचरे के सुरक्षित निपटान की बड़ी और लंबी समस्या देखने को मिल सकती है।

प्राइवेट या विदेशी कंपनियों को जिम्मेदारी मिलती है, तो कई गुप्त जानकारी लीक होने का खतरा है।

परमाणु दुर्घटना होने पर जिम्मेदारी किसकी होगी और मुआवजा कौन देगा, इसको लेकर भी भ्रम हो सकता है।

(RH/ MK)

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