![यह सिर्फ मिठाई नहीं होती यह ईश्वर का आशीर्वाद होता है, एक ऐसा स्वाद जो आत्मा को छू जाता है। [Sora Ai]](http://media.assettype.com/newsgram-hindi%2F2025-09-12%2Fupbh3vy5%2Fassetstask01k4zdasvyf5ta2jfbw1pj2yae1757695880img0.webp?w=480&auto=format%2Ccompress&fit=max)
भारत में मंदिर सिर्फ पूजा के स्थान नहीं हैं, ये ऐसे तीर्थ हैं जहाँ आस्था, परंपरा और स्वाद तीनों का संगम होता है। हर मंदिर की अपनी एक अलग पहचान होती है, लेकिन जो चीज़ हर श्रद्धालु के मन में सबसे खास होती है, वो है वहाँ का 'प्रसाद'। यह सिर्फ मिठाई नहीं होती यह ईश्वर का आशीर्वाद होता है, एक ऐसा स्वाद जो आत्मा को छू जाता है। क्या आपने कभी तिरुपति बालाजी के लड्डू का स्वाद चखा है? या फिर पुरी जगन्नाथ के महाप्रसाद का? ये प्रसाद ना सिर्फ स्वाद में अनोखे होते हैं, बल्कि उनके पीछे सदियों पुरानी परंपराएँ और मान्यताएँ छुपी होती हैं। आज हम भारत के 10 प्रसिद्ध मंदिरों के उन प्रसादों (Prasads of 10 famous temples of India) की बात करेंगे जो न केवल श्रद्धालुओं के बीच प्रसिद्ध हैं, बल्कि जिनकी खुशबू, स्वाद और भावनात्मक जुड़ाव सालों तक याद रहते हैं। तो चलिए, आज हम मंदिर की घंटियों की गूंज से शुरू करते हैं एक ऐसा स्वादात्मक और आध्यात्मिक सफर, जहाँ हर मोड़ पर मिलेगा ईश्वर का प्रसाद, और भक्ति का स्वाद।
ओडिशा के पुरी में स्थित श्री जगन्नाथ मंदिर (Shri Jagannath Temple) सिर्फ एक तीर्थ स्थल नहीं, बल्कि एक जीवित परंपरा का प्रतीक है। यहाँ हर दिन भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा को चप्पन भोग चढ़ाया जाता है लेकिन इनमें सबसे खास है ‘महाप्रसाद’ (Mahaprashad), जो श्रद्धालुओं के लिए सिर्फ प्रसाद नहीं, बल्कि मोक्ष का माध्यम माना जाता है। यह महाप्रसाद खास मिट्टी के बर्तनों में लकड़ी की आग पर पकाया जाता है, और मान्यता है कि इसे पकाते समय कोई भी सुगंध बाहर नहीं जाती लेकिन प्रसाद बनने के बाद उसकी खुशबू पूरे क्षेत्र में फैल जाती है। यहाँ का अनोखा नियम यह भी है कि भगवान को जो भी भोग लगता है, वो सबसे पहले माँ लक्ष्मी को अर्पित होता है।
अगर माँ लक्ष्मी (Maa Lakshmi) प्रसन्न होती हैं, तभी वह प्रसाद भगवान तक पहुँचता है। चावल, दाल, सब्ज़ी, खीर, साग सब कुछ इतना सात्विक और शुद्ध होता है कि इसे खाने वाला स्वयं को ईश्वर के और करीब महसूस करता है। पुरी का महाप्रसाद केवल भोजन नहीं यह भक्ति में लिपटा हुआ अनुभव है, जो शरीर को नहीं, आत्मा को तृप्त करता है।
जब भी तिरुपति बालाजी मंदिर (Tirupati Balaji Temple) का नाम लिया जाता है, तो श्रद्धा के साथ-साथ मन में एक खास स्वाद भी जाग उठता है ‘तिरुपति लड्डू’ ('Tirupati Laddu') का स्वाद। आंध्र प्रदेश (Andhra Pradesh) के तिरुमला में स्थित यह मंदिर दुनिया के सबसे धनी मंदिरों में से एक है, लेकिन यहाँ मिलने वाला प्रसाद है सबसे सरल, सबसे सात्विक और सबसे लोकप्रिय। इस लड्डू का इतिहास 300 साल से भी पुराना है।
माना जाता है कि यह प्रसाद स्वयं भगवान वेंकटेश्वर की पसंद है, और इसे बनाने की विधि किसी धार्मिक अनुष्ठान से कम नहीं। देसी घी में भुने हुए बेसन, बारीक कटे काजू, किशमिश और इलायची के साथ बनाए गए ये लड्डू एक पवित्र प्रसाद होते हैं, जिन्हें ‘भोग’ कहने की बजाय ‘नैवेद्यम’ कहा जाता है। हर दिन लाखों भक्त इस मंदिर में दर्शन के लिए आते हैं, और कोई भी तिरुपति से बिना लड्डू लिए नहीं लौटता। दिलचस्प बात यह है कि इस लड्डू को GI टैग (Geographical Indication) भी मिला है, यानी इसे सिर्फ तिरुपति में ही कानूनी रूप से बनाया और बाँटा जा सकता है। यह सिर्फ एक मिठाई नहीं यह एक आस्था का प्रतीक है, जो हर श्रद्धालु को यह अहसास कराता है कि भगवान के प्रसाद में भी दिव्यता बसती है।
शिर्डी में स्थित साईं बाबा (Sai Baba in Shirdi) का मंदिर उन चंद तीर्थ स्थलों में से एक है जहाँ हिंदू और मुस्लिम दोनों श्रद्धा से सर झुकाते हैं। यहाँ कोई भव्य आरती की गूंज सुनने आता है, तो कोई बाबा के चमत्कारों का अनुभव करने। लेकिन एक चीज़ जो हर भक्त को जोड़ती है, वह है साईं बाबा का प्रसाद, जो सादगी और संतुलन का आदर्श है। शिर्डी में मिलने वाला प्रसाद बाकी मंदिरों की तुलना में बहुत साधारण होता है चने की दाल, मीठी बेसन की बर्फी, और कभी-कभी खिचड़ी या फल।
लेकिन यही सरलता साईं बाबा की शिक्षा को दर्शाती है कि भोजन शरीर के लिए है, लेकिन प्रसाद आत्मा के लिए। शिर्डी में स्थित "प्रसादालय" (साईं बाबा का अन्न क्षेत्र) हर दिन हजारों लोगों को मुफ्त भोजन कराता है, जिसे "अन्न दान" माना जाता है और यही बाबा की सबसे बड़ी सेवा मानी जाती है। वहाँ बैठकर पत्तल में जो भोजन मिलता है, वह किसी राजसी भोज से कम नहीं लगता। साईं बाबा का प्रसाद हमें यह सिखाता है कि भक्ति और प्रेम में कोई दिखावा नहीं होता बस श्रद्धा और सबूरी चाहिए।
कटरा से त्रिकुटा पहाड़ियों तक की कठिन यात्रा, जय माता दी के जयकारों के बीच माँ वैष्णो देवी के दर्शन की अभिलाषा, और फिर जब गुफा के भीतर माँ के पिंडी रूप के दर्शन होते हैं तो मन एक अनकहे भाव से भर उठता है। लेकिन इस आध्यात्मिक यात्रा की पूर्णता तब होती है जब माँ का प्रसाद हाथ में आता है। वैष्णो देवी मंदिर में मिलने वाला प्रसाद बहुत ही सात्विक, सरल लेकिन अत्यंत पवित्र माना जाता है।
इसमें आमतौर पर मिलते हैं सूखे मेवे (काजू, बादाम, किशमिश), बताशे, नारियल और माँ की चुनरी। यह प्रसाद न केवल खाया जाता है, बल्कि श्रद्धालु इसे अपने साथ घर भी ले जाते हैं एक आशीर्वाद की तरह, जिसे परिवार और प्रियजनों के साथ बाँटा जाता है। इस प्रसाद की खासियत इसकी सामग्री में नहीं, बल्कि उस विश्वास में होती है कि ये वस्तुएं माँ की कृपा से भरी हुई हैं। पहाड़ों की थकान, ठंडी हवाएँ और लंबा सफर सब कुछ एक पल में भूल जाता है जब माँ का प्रसाद हाथ में आता है। यह प्रसाद नहीं, एक शक्ति है, जो भक्त के जीवन में सकारात्मकता और आत्मविश्वास का संचार करती है।
“ॐ गण गणपतये नमः” जैसे ही यह मंत्र कानों में पड़ता है, मन गणपति बाप्पा के चरणों में झुक जाता है। मुंबई के प्रभादेवी में स्थित श्री सिद्धिविनायक मंदिर (Shri Siddhivinayak Temple) न केवल महान हस्तियों की आस्था का केंद्र है, बल्कि आम भक्तों के लिए भी यह वह स्थान है जहाँ हर कार्य की शुरुआत होती है बाप्पा के आशीर्वाद से। यहाँ का सबसे प्रसिद्ध प्रसाद है मोदक। यह वही मोदक है जिसे बाप्पा का सबसे प्रिय भोग माना जाता है।
गुड़ और नारियल से भरा, चावल के आटे से बना स्टीम्ड मोदक (Steamed modak) या तले हुए मेवेदार मोदक जब इन्हें प्रसाद रूप में ग्रहण किया जाता है, तो यह केवल स्वाद नहीं देता, बल्कि एक शुभ शुरुआत का संदेश भी देता है। हर मंगलवार को इस मंदिर में अपार भीड़ उमड़ती है, और भक्तजन घंटों लाइन में खड़े रहकर बाप्पा के दर्शन करते हैं और फिर प्रसाद में मोदक पाकर अपने जीवन में सिद्धि और सफलता की कामना करते हैं। सिद्धिविनायक का मोदक सिर्फ मिठाई नहीं वह विश्वास, आशीर्वाद और विनायक की कृपा का प्रतीक है, जिसे पाकर हर मन प्रसन्न हो उठता है।
पवित्र सरोवर के बीचों-बीच दमकता स्वर्ण मंदिर (Golden Temple) अमृतसर का दिल, और करोड़ों श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र। यहाँ हर धर्म, हर जाति, हर वर्ग के लोग बिना किसी भेदभाव के नतमस्तक होते हैं। लेकिन जब बात आती है प्रसाद की, तो एक ही चीज़ सबके हाथों में रखी जाती है और वह है ‘कराह प्रसाद’। गर्म, घी में डूबा, गेहूं के आटे, शुद्ध देसी घी और गुड़ या चीनी से बना यह प्रसाद अपने स्वाद से ज़्यादा अपनी विनम्रता और सेवा भावना के लिए जाना जाता है।
कराह प्रसाद गुरुद्वारे की लंगर परंपरा की तरह ही हर किसी को बराबरी के भाव से दिया जाता है कोई ऊँच-नीच नहीं, कोई भेद नहीं। जब भक्त गुरबाणी सुनने के बाद कराह प्रसाद को दोनों हथेलियों से ग्रहण करते हैं, तो उसमें न सिर्फ स्वाद होता है, बल्कि एक अद्भुत शांति और संतोष भी होता है। यह प्रसाद आपको याद दिलाता है कि सच्चा स्वाद वहीं है जहाँ सेवा, श्रद्धा और समानता हो। और शायद इसी वजह से, स्वर्ण मंदिर का कराह प्रसाद हर बार वैसा ही लगता है पवित्र और आत्मा को तृप्त करने वाला।
काशी नगरी (Kashi Nagri) की संकरी गलियों में एक ऐसा मंदिर है, जहाँ भक्ति का रूप भोजन में बदल जाता है। यहाँ है माँ अन्नपूर्णा का मंदिर (Mother Annapurna Temple) देवी पार्वती का वह स्वरूप, जो संपूर्ण सृष्टि का अन्न संचालित करती हैं। यहाँ पूजा में फूल, नारियल या मिठाई नहीं अन्न चढ़ाया जाता है। क्योंकि माँ अन्नपूर्णा का आशीर्वाद पेट नहीं, परिपूर्णता से जुड़ा होता है। इस मंदिर में मिलने वाला प्रसाद बाकियों से अलग है यहाँ परोसा जाता है सादा भोजन, जिसमें चावल, दाल, सब्ज़ी और कभी-कभी खीर शामिल होती है।
मंदिर के विशेष अवसरों पर हजारों लोगों को अन्नदान के रूप में माँ का प्रसाद वितरित किया जाता है। मान्यता है कि जो भी श्रद्धा से यहाँ माँ अन्नपूर्णा (Mother Annapurna Temple) का प्रसाद ग्रहण करता है, उसके घर में कभी अन्न की कमी नहीं होती। यही कारण है कि काशी आने वाला हर तीर्थयात्री, काशी विश्वनाथ के दर्शन से पहले या बाद में, माँ अन्नपूर्णा का आशीर्वाद लेना नहीं भूलता। यह प्रसाद केवल शरीर की भूख नहीं मिटाता यह एक आध्यात्मिक संतुष्टि है, जो सिखाती है कि ‘दान से बढ़कर कोई पूजा नहीं’।
कोलकाता के प्रसिद्ध कालीघाट के काली मंदिर (Kali Temple of Kalighat) में जब आप कदम रखते हैं, तो यहाँ की ऊर्जा और भक्ति की गूंज आपको तुरंत ही मंत्रमुग्ध कर देती है। माँ काली, जो विनाश की देवी के साथ साथ शक्ति और सुरक्षा की देवी भी हैं, यहाँ भक्तों के जीवन में नयी ऊर्जा भरती हैं। कलिंघाट मंदिर का प्रसाद बेहद खास है यह सिर्फ मिठाई या फल नहीं, बल्कि माँ काली की शक्ति और आशीर्वाद का प्रतीक माना जाता है।
यहाँ भक्तों को प्रायः रिफाइन सूखे मेवे, हलवा, और खासतौर पर चावल-खीर जैसे सात्विक व्यंजन प्रसाद स्वरूप दिया जाता है माना जाता है कि कालीघाट के प्रसाद में माँ काली की ऊर्जा और उनके तेज की चमक होती है, जो भक्तों के मन को भयमुक्त कर, उन्हें शक्ति और साहस प्रदान करता है। यह प्रसाद खाने से श्रद्धालु मानसिक और आध्यात्मिक रूप से भी मजबूत महसूस करते हैं कालीघाट मंदिर का प्रसाद हमें यह याद दिलाता है कि माँ काली की पूजा केवल एक अनुष्ठान नहीं, बल्कि जीवन के हर संकट से उबरने का एक शक्ति स्रोत है।
मंदिर की गगनचुंबी गोपुरम, रंग-बिरंगे मूर्तियों की कतारें, और शक्तिशाली देवी मीनाक्षी का तेजस्वी रूप यह मंदिर सिर्फ आस्था का केंद्र नहीं, बल्कि द्रविड़ संस्कृति की आत्मा है। यहाँ प्रसाद के रूप में जो दिया जाता है, वह है पंचामृत। यह नाम जितना सरल लगता है, इसका महत्व उतना ही गहरा है। पंचामृत यानी पाँच पवित्र चीजों का मिश्रण दूध, दही, घी, शहद और केला।
यह प्रसाद देवी को स्नान कराने के बाद श्रद्धालुओं में वितरित किया जाता है, और माना जाता है कि इसे ग्रहण करने से शारीरिक और मानसिक शुद्धि होती है। इस पंचामृत का स्वाद जितना मीठा होता है, उतना ही उसमें समाया होता है परंपरा और श्रद्धा का रस। यह सिर्फ देवी को चढ़ाया गया भोग नहीं, बल्कि उनके आशीर्वाद की मिठास है जो हर भक्त को भीतर तक शीतलता और शक्ति से भर देती है। मीनाक्षी मंदिर का पंचामृत हमें यह एहसास कराता है कि प्रसाद सिर्फ भोजन नहीं ईश्वर के स्पर्श का माध्यम होता है।
कर्नाटक के घने सघन वनों और पहाड़ियों के बीच बसा कुक्के सुब्रमण्य मंदिर (Kukke Subramanya Temple) एक ऐसा स्थान है जहाँ प्रकृति, भक्ति और शक्ति तीनों का अद्भुत संगम होता है। यहाँ भगवान सुब्रमण्य (कार्तिकेय) की पूजा नाग देवता के रूप में होती है। विशेष रूप से वे श्रद्धालु जो सर्प दोष (नाग दोष) से मुक्ति पाना चाहते हैं, यहाँ आकर विशेष पूजा करते हैं। इस मंदिर का प्रसाद भी उतना ही विशिष्ट और पवित्र माना जाता है।
यहाँ मिलने वाला "अक्षते" (चावल में हल्दी और तिल का मिश्रण) और साथ में केले और पंचामृत, भक्तों को रोग, कष्ट और शारीरिक समस्याओं से रक्षा का प्रतीक मानकर दिया जाता है। वहीं, मंदिर की खासता है कि पूजा के बाद श्रद्धालुओं को एक विशिष्ट भोजन (प्रसाद के रूप में) मंदिर के भोजनालय में बैठाकर कराया जाता है, जिसमें सादा लेकिन सात्विक कर्नाटक शैली का भोजन परोसा जाता है जो आत्मा को गहराई से तृप्त करता है। यह प्रसाद सिर्फ पेट भरने के लिए नहीं, बल्कि आध्यात्मिक उपचार का एक माध्यम माना जाता है जैसे भगवान सुब्रमण्य हर भक्त के जीवन से विष निकाल रहे हों।
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भारत के ये मंदिर और उनके प्रसाद न केवल हमारे भूख को शांत करते हैं, बल्कि हमारे मन, शरीर और आत्मा को भी संतुष्टि देते हैं। हर प्रसाद के पीछे एक कहानी, एक आस्था और एक अनूठा स्वाद है, जो हमें हमारी सांस्कृतिक विरासत से जोड़ता है। तो अगली बार जब आप किसी मंदिर जाएं, तो केवल दर्शन ही नहीं करें, बल्कि उस मंदिर के प्रसाद का आनंद लें और महसूस करें उस भक्ति की मिठास को जो हर निवाला में समाई होती है। [Rh/SP]