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बांग्लादेश में अब भी “हिन्दुओं” पर अत्याचार थमा नहीं है

Swati Mishra

1971 में, पूर्वी पाकिस्तान (आज का बांग्लादेश) में आजादी की लहर उठने लगी थी। पाकिस्तान लगातार पूर्वी पाकिस्तान पर उर्दू भाषा अपनाने का ज़ोर डाल रहा था। जिस वजह से पूर्वी पाकिस्तान अपनी आजादी की मांग को लेकर एक समय पर बगावत पर उतर आए थे। तब पाकिस्तान की सेना ने आंदोलन को कुचलने के लिए बड़े पैमाने पर भीषण अत्याचार को अंजाम दिया था। हत्या, मार – काट, रेप जैसी क्रूरता को अंजाम देते वक्त उनके हाथ तक नहीं कांपे। 

उस समय पाकिस्तानी सेना की क्रूरता से बचने के लिए, बांग्लादेश से करोड़ों की संख्या में शरणार्थी भागकर भारत आ गए थे। भारत द्वारा इन शरणार्थियों को दिए गए पनाह से पाकिस्तान फिर एक बार विचलित हो उठा था। जिसका परिणाम यह हुआ की, भारत – पाकिस्तान के बीच युद्ध छिड़ गया और इस युद्ध के अंत में पूर्वी पाकिस्तान ने आजादी का और पाकिस्तान ने हार का स्वाद चखा था। 

बांग्लादेश की आजादी में भारत का एक महत्वपूर्ण योगदान रहा है। लेकिन आज अगर बांग्लादेश में बंगाली हिन्दुओं की स्थिति देखी जाए। तो ये बड़ा ही आश्चर्यजनक प्रतीत होता है। बांग्लादेश की आज़ादी के समय वहां बड़ी संख्या में बंगाली हिन्दू रहा करते थे। लेकिन आज वहां हिन्दुओं की स्थिति काफी बदतर है। वहां से हिन्दुओं का भारत में पलायन अब निरंतर बढ़ता जा रहा है। सेंटर फॉर डेमोक्रेसी फ्लुरलिज्म एंड ह्यूमन राइट्स ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि, अनुमान के मुताबिक अगर यही स्थिति कायम रही तो 25 साल बाद तक बांग्लादेश में एक भी हिन्दू नहीं बचेगा। ढाका यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर अब्दुल बरकत की भी एक रिपोर्ट में यह दावा किया गया है कि, पिछले 4 दशक से, बांग्लादेश से 2.3 से ज्यादा लोग हर साल पलायन कर रहे हैं। बांग्लादेश में हिन्दू जनसंख्या अब वहां की कुल आबादी का लगभग 7 प्रतिशत बाकी है। 

आंकड़े बयां करते हैं कि, बांग्लादेश में हिन्दुओं की स्थिति अब सामान्य नहीं रही। फिर क्यों भारत के वामपंथी और सेक्युलर वर्ग इसे गलत ठहराने में लगे हैं? बांग्लादेश से हिंदुओं की आबादी का समाप्त होना केवल सवाल नहीं है। यह एक ऐसा तथ्य है कि, जिस देश की सहायता से वह आजाद हुआ, आज उसी देश के हिन्दू वहां सुरक्षित नहीं हैं।

बांग्लादेश का एक घिनौना सत्य भी है जिससे हमें कोसों दूर रखा जाता है। हमारा इतिहास भी इस पर कोई टिप्पणी नहीं करता और ना ही इस पर कोई बात की जाती है।  

पूर्वी पाकिस्तान यानी आज का बांग्लादेश में हिंदुओं का सबसे बड़ा नरसंहार हुआ था। (सांकेतिक चित्र , Wkimedia Commons)

घटना है साल 1950 की, उस समय पूर्वी पाकिस्तान यानी आज का बांग्लादेश में हिंदुओं का सबसे बड़ा नरसंहार हुआ था। बांग्लादेशी मुस्लिमों ने बर्बरता पूर्ण न जाने कितने हिंदुओं को मौत के घाट उतार दिया था। बड़ी संख्या में हिन्दुओं के घर उजाड़ दिए गए। महिलाओं का बलात्कार किया गया उन्हें मार डाला गया और यह आंकड़ा करीबन 30 लाख से भी ज्यादा का था। लेकिन इस विषय में ना कोई सवाल उठाता है ना बात करता है। बांग्लादेशी हिन्दुओं पर किए गए अत्याचार का एक और पहलू है, 1992 में विध्वंस किया गया बाबरी मस्जिद। बाबरी मस्जिद जिसका निर्माण ही अवैध था, के टूटने के बाद उसका प्रभाव बांग्लादेशी मुस्लिमों पर भी पड़ा और कट्टरपंथियों ने मस्जिद के मुद्दे को आधार बनाकर फिर एक बार हिन्दुओं की हत्या कर दी। उन्हें पीड़ित किया गया। इसका सबसे बड़ा प्रमाण "सलाम आज़ाद" की पुस्तक "बांग्लादेश में हिन्दू नरसंहार" है। इसमें पूर्णतः उल्लेख किया गया है कि, बांग्लादेशी कट्टरपंथियों ने ना जाने कितने हिंदुओं को मौत के घाट उतार दिया था। 

लेकिन वो वक्त था और आज का वक्त है। इस बांग्लादेशी मुस्लिम कट्टरपंथियों द्वारा किए गए इन दुष्कर्मों को ना उस समय गंभीरता से लिया गया और ना आज सरकार इसका उल्लेख करती है। क्यों इस अहम मुद्दे को सरकार छुपा कर रखना चाहती है? क्यों इसके विरुद्ध आवाज की आज एक गूंज तक सुनाई नहीं देती?

अभी हाल ही में भारतीय मूल की अमेरिकी नेता, तुलसी गबार्ड ने बांग्लादेश में हिंदुओं पर हो रहे हमलों पर अपना गुस्सा जाहिर किया है। गबार्ड ने कहा कि, वहां 50 सालों से हिंदुओं पर अत्याचार हो रहे हैं। पाक सेना ने 1971 में लाखों बंगाली हिन्दुओं की हत्या की, दुष्कर्म किए। उन्हें पीड़ित कर घर से भगा दिया। ढाका यूनिवर्सिटी ने महज एक ही रात में 5 से 10 हजार लोगों को मार दिया था। उन्होंने कहा, बांग्लादेश की आजादी के बाद अत्याचार का यह सिलसिला अभी भी थमा नहीं है। 

 अनुमान के मुताबिक अगर यही स्थिति कायम रही तो 25 साल बाद तक बांग्लादेश में एक भी हिन्दू नहीं बचेगा। (सांकेतिक चित्र, Twitter)

Gary J. Boss की किताब The blood telegram: Nixon, Kissinger and a forgotten Genocide में एक बात साफ – साफ लिखी है कि, उस समय तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को बांग्लादेश में हिंदुओं के साथ हुए अत्याचार, बर्बरता की पूरी जानकारी थी। लेकिन वह केवल इसलिए चुप रहीं क्योंकि एक तो बांग्लादेश की आजादी ने देश में उनकी लोकप्रियता को बढ़ा दिया था। दूसरा वह जनसंख्या को किसी भी विरोध को उठने का मौका नहीं देना चाहती थी। आज देखा जाए तो आज भी हालात वैसे ही हैं। राजनीतिक दल अपने वोट बैंक को भरने के लिए, इस मुद्दे को अनदेखा करते जा रहे हैं। उस समय भी सरकारों ने अपने मुंह पर ताला लगा रखा था और आज की स्थिति तो और भी निंदनीय है। 

पाकिस्तान के बाद बांग्लादेश दुनिया का एक ऐसा देश है, जहां से अल्पसंख्यक विशेष रूप से हिंदुओं को खदेड़ दिया जाता है। लेकिन इस विषय पर कोई बात नहीं करता है। एक तरफ बांग्लादेश भारत से अपने संबंधों का दिखावा करता है। भारत का हितेषी होने का दावा करता है। वहीं दूसरी ओर हिन्दुओं को मौत के घाट उतार देता है। जब तक इस विषय को गंभीरता से नहीं लिया जाएगा ये समस्या बढ़ती जाएगी। 

हमारे हिन्दू भाई – बहन इनकी यातनाओं का शिकार बनते रहेंगे। यह विषय जरूरी है और इस पर आवाज उठाना बहुत जरूरी है।

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