गाय आधारित खेती से हो सकती है जल, जमीन और जन की सुरक्षा। (Wikimedia Commons) 
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गाय आधारित खेती से हो सकती है जल, जमीन और जन की सुरक्षा

NewsGram Desk

गो-आधारित खेती(Cow Based Farming) से जल(Water), जमीन(Land) और जन(People) की सुरक्षा होगी। इतना ही नहीं, परंपरागत खेती में लगाने वाली सिंचाई के पानी की तुलना में यह विधि महज 10 प्रतिशत जल में ही फसल को लहलहायेगी भी। एक गाय के पालन से 30 एकड़ जमीन पर खेती की राह खुलेगी और शून्य लागत पर किसान खेती से जुड़ा राह सकेगा।

यह कोई तीर चलाने या तुक्का में कही गई बात नहीं है, बल्कि जीरो बजट खेती के सिद्धांत इसे सिद्ध भी करते हैं। यह विधि अपनाने से हिन्दू मान्यता में एक विशेष स्थान रखने वाली गौ माता की सुरक्षा की गारंटी है तो गाय बचने को बनाये गए कानून का पालन करने वाला भी है।

शून्य बजट खेती किसानों के साथ पशुपालकों के लिए वरदान है। जहां इस विधि से किसानों के की फसल लहलहायेगी, वहीं पशुपालकों के गोबर की खाद की कीमत भी अच्छी मिलेगी। गोमाता अब न सिर्फ पूजापाठ का विषय रहेंगी बल्कि इनके दम पर अच्छी खेती भी होगी। वजह, गाय का केवल गोबर ही नहीं बनेगा। इसके त्याज्य से खेतीबाड़ी में काम आने वाले कृषि निवेशों खाद, कीटनाशक आदि भी बनाये जा सकेंगे। गाय के गोबर से बनी वर्मी कम्पोस्ट खाद, जीवामृत, बीजामृत, घनजीवामृत और पंचगव्य आदि का प्रयोग कर सकेंगे। यह किसी भी अन्य कीटनाशक अथवा पेस्टीसाइड के साइड इफेक्ट की तरह जीवन को खतरे में डालने वाला नहीं है।

जीरो बजट खेती के जानकार डॉ संजय कुमार द्विवेदी का कहना है कि इस विधा से खेती करने वाले किसान को बाजार से किसी कृषि निवेश की जरूरत नहीं होती। फसलों की सिंचाई में पानी एवं बिजली भी सिर्फ 10 फीसद तक ही खर्च होती है। खेती की लागत न्यूनतम हो जाती है। पम्पिंग सेट कम चलाना पड़ता है और प्रदूषण भी कम फैलता है।

कृषि विशेषज्ञ गिरीश पांडेय की मानें तो गो-आधारित खेती को अपनाने का अनेक फायदे हैं। गाय की गर्दन कसाई की छुरी नहीं चलेगी। गाय और गोवंश निराश्रित एवं बदहाल नहीं रहेंगे। गो-आधारित उत्पादों की मांग से किसानों-पशुपालकों का न सिर्फ आर्थिक पक्ष मजबूत होगा बल्कि कालांतर में गोआश्रय स्थल भी आत्मनिर्भर होगे।

परंपरागत खेती में लगाने वाली सिंचाई के पानी की तुलना में यह विधि महज 10 प्रतिशत जल में ही फसल को लहलहायेगी । (Wikimedia Commons)

उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने इसे खूब बढ़ावा दिया है। जैविक खेती को प्रोत्साहन तो दे ही रही है, गो आधारित खेती पर भी जोर दिया है। इस गो-आधारित या जीरो बजट खेती की चर्चा मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अक्सर करते रहे हैं। पशुपालक और किसान सरोज कांत मिश्र कहते हैं कि यह बात अलग है कि योगी आदित्यनाथ के इस प्रयास को एक धार्मिक व राजनैतिक नजरिये से ज्यादा देखा गया है। लेकिन यह बहुत फायदे की चीज है।

किसान चंद्रभान सिंह का कहना है कि हम जीरो बजट खेती की ओर धीरे-धीरे बढ़ रहे हैं। हालांकि अब तक कोई प्रशिक्षण नहीं ले सके हैं। बावजूद इसके जैविक का ज्यादा उपयोग शुरू कर चुके हैं। गो-पालन और खेती एक साथ करने के फायदे हमें दिखाने लगे है। अन्य किसानों को भी हम गो आधारित खेती करने को प्रेरित कर रहे हैं। हमें यह बताया गया है कि सरकार ने प्रदेश के चार कृषि विश्वविद्यालयों और 20 कृषि विज्ञान केंद्रों पर गो आधारित खेती का डिमांस्ट्रेशन कराया है। हम भी इसे देखने और करने को उत्सुक हैं।

पदमश्री सुभाष पालेकर के अनुसार जीरो बजट प्राकृतिक खेती देसी गाय के गोबर एवं गोमूत्र पर आधारित है। एक देसी गाय के गोबर एवं मूत्र से बने उत्पादों से एक किसान 30 एकड़ जमीन पर खेती कर सकता है। देसी प्रजाति के गोवंश के गोबर से गो आधारित खेती करने पर कालांतर में मिट्टी में पोषक तत्वों की वृद्धि होती है। मिट्टी में जैविक गतिविधियों का विस्तार होता है।

पूर्व जोनल प्रबन्धक यूपी पशुधन विकास परिषद के डॉ. बीके सिंह का कहना है कि एक गाय के गोबर से साल भर में मिलने वाली मीथेन गैस 235 लीटर पेट्रोल के बराबर होती है। देश में उपलब्ध पशु संपदा के गोबर एवं मूत्र से इतनी मीथेन गैस प्राप्त हो सकती है जो रसोई गैस की खपत पूरी करने के बाद पेट्रोल-सीएनजी का भी विकल्प बन सकती है। इससे बाई प्रोडक्ट के रूप में बेहतरीन जैविक खाद भी उपलब्ध होगी। ऐसा होने पर पशुओं के मल-मूत्र से उत्पन्न होने वाला री-सायकिल होने योग्य कचरे के निस्तारण की समस्या भी हल हो जाएगी।

Input-IANS; Edited By-Saksham Nagar

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