आज भारत में एक तबका काफी सक्रीय भूमिका में है और वह है धर्मनिपेक्ष तबका। जिसका एक धर्म पर जुबान नहीं खुलता है और एक धर्म के विषय में कुछ अच्छा नहीं निकलता है। गलती निकालने में और गाली देने में बहुत बड़ा अंतर होता है। किन्तु इस अंतर को यह तबका नहीं समझ पाया है और कोई कसर नहीं छोड़ता है हिंदुत्व या हिन्दू को कोसने में। इस बात का सबूत है लव-जिहाद पर राज्य सरकारों द्वारा लाया गया कानून जिसका इस तबके ने यह कहते हुए विरोध किया कि एक पुरुष और स्त्री को अपना जीवन साथी चुनने का अधिकार है।
लेकिन जब लव-जिहाद से पीड़ित लड़कियों की बातें सामने आई तब इस तबके ने बड़ी सादगी से चुप्पी साध ली। क्योंकि उन्हें कुछ कहने को नहीं बन पा रहा है।
हाल ही में भारत की बहुचर्चित जोड़ी टीना डाबी और अतहर खान ने अपनी शादी के लिए तलाक की अर्ज़ी दायर की है। किन्तु इनकी शादी पर ही इस तबके ने बड़े अक्षरों में लिखा था कि "असहिष्णुता और सांप्रदायिक घृणा के इस बढ़ते दौर में' इन दोनों का प्यार और परवान चढ़े और सभी भारतीयों के लिए प्रेरणा बने।"
धर्मनिरपेक्षों का इस तरह प्रभाव पड़ा है कि आज की युवा पीढ़ी में कोई भी हिंदुत्व की बात नहीं करना चाहता है। और अगर कोई करता भी है तो उसे एक विशेष राजनीतिक पार्टी का भक्त बता दिया जाता है या सांप्रदायिक तनाव को बढ़ाने वाला बता कर धुत्कारा दिया जाता है। भगवा रंग इन्हे सांप्रदायिक माहौल को बिगाड़ने वाला रंग लगता है और इसी लिए किसी सरकारी भवन पर भगवा रंग दिख जाए तब इन्हे असहिष्णुता होने लगती है।
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उन सभी(तथाकथित धर्मनिरपेक्ष) को इस बात का भय है कि यह (हिन्दू) समाज एकजुट (जो पहले से है) हो गया तो धर्म-निर्पेक्ष तबके की कौन सुनेगा? और इसलिए यह सभी तनिष्क द्वारा दिखाया गए विज्ञापन और नेटफ्लिक्स पर मंदिर में दर्शाए गए अभद्र दृश्य के बचाव में बोलने से भी नहीं घबराते। यह वह है जो एक विश्वविद्यालय में भारत से आज़ादी की मांग करते हैं। यह वह समूह है जिसने दिल्ली में आग को जन्म दिया था।
तथाकथित सेक्युलर का चोगा राजनीति के गलियारे से लेकर बॉलीवुड के चमक-धमक में अधिकांश लोगों ने ओढ़ रखा है और यही वजह है कि इस तबके को इतना बढ़ावा मिलता है। क्योंकि धर्म पर हिंसा फैलाना अब पुराना हो चूका है, अब तो धर्मनिरपेक्ष के नाम पर एक ही धर्म दो गुट को भिड़ाना आसान हो गया है।