झारखंड(Jharkhand) की मिट्टी, धातु और लकड़ी से बने आभूषण, जेवरात और कलाकृतियों की चमक अब पूरी दुनिया में फैल रही है। यहां के हस्त शिल्पकारों के हुनर ने पिछले चार-पांच वर्षों में रोजगार और कारोबार के नये आयाम खोले हैं। इनके बनाये प्रोडक्ट्स ई-कॉमर्स वेबसाइट से लेकर देश-विदेश के ब्रांडेड शो-रूम और राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय मेलों-प्रदर्शनियों में खूब बिक रहे हैं।
बीते धनतेरस पर झारखंड की परंपरागत ट्राइबल ज्यूलरी(Tribal Jewellery) को बड़ा बाजार उपलब्ध कराने के लिए राज्य सरकार की एजेंसी झारखंड स्टेट लाइवलीहुड प्रमोशन सोसाईटी (जेएसएलपीएस) के आदिवा नामक ब्रांड लांच किया। इन पारंपरिक आभूषणों और जेवरात का निर्माण गांव-गांव में सखी मंडलों से जुड़ी महिलाएं कर रही हैं। दुमका और खूंटी जिले की महिलाओं द्वारा किया जा रहा है। ये आभूषण चांदी, सिल्वर, मेटल से बनाए जा रहे हैं। आदिवा ब्रांड के आभूषणों की खरीदारी ऑनलाइन पलाश मार्ट मोबाइल एप्लिकेशन के जरिए की जा सकती है। बीते नवंबर में नई दिल्ली में आयोजित इंडिया इंटरनेशल ट्रेड फेयर में आदिवा ब्रांड के तहत चांदी के मंढली, झोंपा सीकरी, पछुवा, कंगना, डबल झुमका एवं मेटल से बने जनजातीय परंपराओं वाले आभूषणों ने लोगों को खूब लुभाया। चार दिन के दौरान यहां आदिवा ब्रांड के लगभग नौलाख रुपये से ज्यादा की ज्वेलरी की बिक्री की हुई।
महिला हस्त शिल्पकारों के प्रोडक्ट्स को बाजार उपलब्ध कराने के लिए सरकार ने राज्य में 158 पलाश मार्ट खोले हैं। पलाश मार्ट में अब तक करीब 60 से ज्यादा प्रकार के उत्पाद बिक्री के लिए उपलब्ध हैं। अमेजन एवं फ्लिपकार्ट जैसे ई-कॉमर्स वेबसाइट पर भी पलाश के उत्पाद को बेहतरीन रिस्पांस मिल रहा है। पलाश का अपना मोबाइल एप भी है, जहां से ये उत्पाद खरीदे जा सकते हैं।
झारखंड स्टेट लाइवलीहुड प्रमोशन सोसाइटी की सीईओ नैन्सी सहाय ने समाचार एजेंसी से कहा कि इंटरनेशनल ट्रेड फेयर में झारखंड की महिला शिल्पकारों के प्रोडक्ट्स को मिले शानदार रिस्पांस से हम उत्साहित हैं। प्रदर्शनी के दौरान आदिवा और पलाश के प्रोडक्ट्स की सप्लाई के लिए 15 लाख के ऑर्डर भी प्राप्त हुए हैं। खूंटी की महिला शिल्पकार यशोदा कहती हैं कि आदिवा ब्रांड की लांचिंग के बाद हमारे हाथों से बनी ज्यूलरी को नयी पहचान मिली है।
झारखंड के शिल्पकारों, बुनकरों और कारीगरोंके लिए रोजगार के अवसर सृजित करने और उनके बनाये प्रोडक्ट्स को देश-दुनिया के विभिन्न हिस्सों में पहुंचाने के लिए 2006 में सरकार ने झारखंड सिल्क टेक्सटाइल एंड हैंडीक्राफ्ट डेवलपमेंट कॉरपोरेशन(झारक्राफ्ट) नामक एजेंसी स्थापित की थी।
इससे कई लोगों के लिए रोज़गार और कारोबार की राह खुल गई है। (IANS)
झारक्राफ्ट के शो-रूम और इंपोरियम नई दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, बेंगलुरू के साथ-साथ झारखंड के कई शहरों में चलाये जा रहे हैं। इन शो-रूम्स में झारखंड के तसर सिल्क के कपड़े, ढोकरा कलाकृतियां, लाख के आभूषण, टेराकोटा के प्रोडक्ट्स, बेंत-बांस और घास से बने आकर्षक सामान, चमड़े के उत्पाद, संगीत वाद्ययंत्र, जूट उत्पाद की विस्तृत रेंज आप पा सकते हैं। झारक्राफ्ट और जेएसएलपीएस से जुड़े 50 हजार से भी ज्यादा शिल्पकारों और कारीगरों के लिए रोजगार की राहें खुली हैं।
झारखंड की पांच हजार साल पुरानी सोहराई-कोहबर चित्रकला को वर्ष 2021 में जीआई टैग मिलने के बाद इस कला को ग्लोबल पहचान मिल गयी है। विगत एक दशक में न्यूयॉर्क, पेरिस, लंदन सहित विदेश के कई शहरों में सोहराई-कोहबर चित्रकला की प्रदर्शनियां आयोजित हो चुकी हैं। इस कला को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने में पद्मश्री बुलु इमाम की अहम भूमिका रही है। फ्रांस की कलाप्रेमी बुजुर्ग महिला डेडी वॉन शावेन वर्ष 2014 से ही फ्रांस के अलग-अलग शहरों में झारखंड की परंपरागत सोहराई-कोहबर पेंटिंग वाली कलाकृतियों की प्रदर्शनियां प्रति वर्ष लगाती हैं।
रांची की रहनेवाली शोभा कुमारी पिछले 13 वर्षों से झारखंडी जनजातियों की परंपराओं वाले आभूषण बना रही हैं। उनके द्वारा बनाये गये झीका, चिपलो, सिलपट, तरकी, छूछी, ताबिज, कमरधनी जैसे कई तरह के आदिवासी आभूषण और जेवरात अमेरिका, न्यूजीलैंड और आस्ट्रेलिया सहित देश के कई शहरों में प्रदर्शित किये जा चुके हैं। रांची की ही रहनेवाली जयश्री इंदवार द्वारा कपड़ों पर बनायी गयी सोहराई पेंटिंग झारक्राफ्ट के जरिए जर्मनी और इटली तक में प्रदर्शित हो चुकी है। झारखंड के डोकरा शिल्प, वुडन क्राफ्ट और बांस के बने प्रोडक्ट्स भी अब देश-विदेश के शो-रूम से लेकर ई-कॉमर्स वेबसाइट्स पर उपलब्ध हैं।
झारखंड की मिट्टी, लकड़ी, पत्थर के बाद अब यहां बड़े पैमाने पर उत्पादित होने वाले कोयला से भी ज्यूलरी और सजावटी सामान तैयार करने की योजना बनायी गयी है। कोयला खनन के क्षेत्र में शोध करने वाली धनबाद स्थित केंद्रीय एजेंसी सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ माइनिंग एंड फ्यूल रिसर्च ने यह प्रोजेक्ट तैयार किया है। सीएसआर-सीआईएमएफआर के अंतर्गत शुरू किये जा रहे इस प्रोजेक्ट के तहत राज्य के खनन क्षेत्रों में महिलाओं को कोयले की ज्यूलरी और शो-पीस बनाने की ट्रेनिंग दी जायेगी। संस्थान के निदेशक के अनुसार ऐसी तकनीक विकसित की गई है जिसके माध्यम से कोयले के कचरे को प्रोसेस करने के बाद उसे अलग-अलग आकार देकर आभूषण और सजावटी उत्पाद बनाये जायेंगे। जाहिर है, झारखंड की मिट्टी, धातु और लकड़ी की चमक आनेवाले दिनों में और फैलने वाली है।
Input: IANS ; Edited By: Saksham Nagar