भारत के स्वतंत्रता संग्राम में हर एक वीर ने अपने शौर्य का परचम लहराया था। मातृभूमि को विदेशी बेड़ियों से मुक्त कराने के लिए न जाने कितने ही वीर आजादी की लौह जलाने को फांसी पर झूल गए थे। उनके लिए मृत्यु से बढ़कर मातृभूमि की आजादी मायने रखती थी। राम प्रसाद बिस्मिल उन्हीं मतवालों में से एक थे। 11 जून 1897 में उत्तर-प्रदेश के शाहजहांपुर में जन्मे बिस्मिल बहुआयामी प्रतिभा के धनी थे। बिस्मिल एक क्रांतिकारी होने के साथ-साथ कवि, रचनाकार एवं साहित्यकार भी थे।
इतिहासकार एवं राम प्रसाद बिस्मिल को पढ़ने वाले यह बताते हैं कि जब उन्होंने कलम छोड़ क्रांति की राह में अपना कदम आगे बढ़ाया था, तब उन्होंने अपना पहला हथियार जो की तमंचा था, उसे स्वयं द्वारा लिखी किताबों को बेचकर मिली राशि से खरीदा था। कहा जाता है कि बिस्मिल ने कुल 11 किताबें लिखीं थीं। आप को बता दें कि बिस्मिल में देश-भक्ति की ज्वाला तब प्रज्वलित हुई थी जब उनके बड़े भाई परमानन्द को अंग्रेज सरकार के खिलाफ आवाज उठाने के लिए फांसी की सजा सुनाई थी।
जिस समय राम प्रसाद बिस्मिल की चर्चा होती है उस समय एक और नाम भी लिया जाता है और वह नाम है अशफाकुल्लाह खां का। बिस्मिल, अशफाक को अपने छोटे भाई की तरह मानते थे और अशफाक भी उन्हें बड़े भाई की तरह ही सम्मान देते थे। बिस्मिल और अशफाक की दोस्ती हुई तो थी शायरी पर चर्चा करते हुए, किन्तु यह दोस्ती स्वतंत्रता संग्राम में अमिट छाप छोड़ गई। आज भी राम और अशफाक की दोस्ती को गर्व से याद किया जाता है।
गांधी जी के असहयोग आंदोलन को वापस लेने से कई क्रांतिकारी निराश हुए थे।(Wikimedia Commons)
गाँधी जी ने वर्ष 1922 में चौरी-चौरा कांड के उपरांत असहयोग आंदोलन को वापस ले लिया था। किन्तु उनके इस फैसले ने कई युवा क्रांतिकारियों को निराश कर दिया। बिस्मिल एवं अशफाक अब तक यह समझ चुके थे कि आजादी मांगने से नहीं मिलने वाली है और इसी वजह से उन्होंने क्रान्तिकारी पार्टी का हाथ थामा। क्रान्तिकारी पार्टी और उसके सदस्य यह विश्वास रखते थे कि अंग्रेजों तक अपनी बात पहुँचाने के लिए बम और बंदूक के आवाज की आवश्यकता पड़ती है।
किन्तु हथियार खरीदने के लिए पैसों की आवश्यकता थी, जिसका आभाव उनके और मातृभूमि की आजादी के राह में अर्चन पैदा कर रहा था। तब बिस्मिल ने अग्रेजों की ट्रेन लूटने का फैसला किया। राम प्रसाद बिस्मिल के नेतृत्व में योजना तैयार हुई और तय हुआ कि 9 अगस्त को काकोरी में ट्रेन लूटा जाएगा। बिस्मिल और अशफाक के साथ आठ क्रांतिकारियों ने अपनी योजना को सफलतापूर्वक अंजाम दिया और ट्रेन लूट लिया। इस लूट से अंग्रेज सरकार के अहम पर मानों हथौड़ा पड़ गया हो। इसके बाद बिस्मिल और उनके साथियों को पकड़ने के लिए बड़े स्तर पर तलाशी अभियान को शुरू किया गया और अंत में न चाहते हुए भी बिस्मिल अंग्रेजों के हाथ लग गए।
उन पर काकोरी कांड के साथ-साथ अन्य मामलों में मुकदमा चलाया गया और अंत में उन्हें फांसी की सजा सुनाई गई। जब बिस्मिल से उनकी अंतिम इच्छा पूछी गई तब उनके मुख से निकला "Downfall of British Empire" अर्थात 'ब्रिटिश साम्राज्य का पतन'। 19 दिसंबर को राम प्रसाद बिस्मिल मातृभूमि की आजादी के लिए फांसी के फंदे पर तो झूल गए मगर क्रांति की उस अलख को लाखों युवाओं में जगा गए, जिन्होंने भारत भूमि को आजाद देखने का सपना देखा था।