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तिब्बत अपनी “आजादी” चाहता है

NewsGram Desk

मध्य एशिया की पर्वत श्रेणियों , कुनलुन (Kunlun) एवं हिमालय (Himalaya) के मध्य स्तिथ तिब्बत (Tibet) एक अद्भुत देश है। जिसका एतिहासिक वृतांत 7 वीं शताब्दी से ही मिलता आ रहा है। पांच सौ वर्ष पहले, महान शेनराब मीवो नामक एक अर्ध पौराणिक व्यक्तित्व ने तिब्बती बोन धर्म  (Tibeti Bon religion) की स्थापना की थी।

तिब्बत (Tibet) के इतिहास की बात करें तो करीब 17 वीं शताब्दी के दौरान 1642 में, पांचवे दलाई लामा (Dalai lama) गवांग लोजांग ग्यात्सो ने तिब्बत पर अपना अधिकार स्थापित किया तथा उन्होंने तिब्बती सरकार की वर्तमान शासन प्रणाली "गांदेन फोड्रांग" की स्थापना भी की थी। उस समय तक तिब्बत के चीन(China) के साथ काफी अच्छे संबंध थे। उस समय पांचवे दलाई लामा ने चीन से मांग की थी कि , वह उनकी संप्रभुता को पूरी मान्यता प्रदान करे। तब चीन के शासक मिंश (Minsh) ने न केवल दलाई लामा को एक स्वतंत्र शासक के रूप में स्वीकार किया, बल्कि उन्हें पृथ्वी पर एक देवता के रूप में भी स्वीकार किया था।

चीन हमेशा से ही, तिब्बत के मामलों में अपना हस्तक्षेप करता आया था। चीन पर शासन करने वाले मांचुओं (Manchua), तिब्बत (Tibet) के मामलों में दखल देने का प्रयास करते रहते थे। कई वर्षों तक तो ये स्तिथि सामान्य रही लेकिन वर्ष 1876 में जब 13 वें दलाई लामा (Dalai lama) थूप्तेन ग्यातसी ने 19 वर्ष की आयु में , राज्य की जिम्मेदारी अपने हाथों में ली। तब उन्होंने तिब्बत (Tibet) को, अंतराष्ट्रीय मामलों में न्यायसंगत पूर्ण प्रभुसत्ता हासिल करने में मदद की थी। तभी से चीन ने तिब्बत पर अपना अधिकार स्थापित करना शुरू कर दिया था। उस समय लगभग सभी ओर ब्रिटिशों का शासन था और चीन के संबंध ब्रिटिशों के साथ काफी बेहतर थे। जब तक तिब्बत का मुद्दा ब्रिटिशों (British) तक पहुंचा, चीन ने ब्रिटिशों को यह समझाने में सफलता हासिल कर ली थी कि, तिब्बत (Tibet) पर उनका अधिराज है। तिब्बत के लोगों ने चीन के इस प्रभुत्व को कभी स्वीकार नहीं किया था। लेकिन तिब्बत के पास चीनी विरोध का कोई जरिया नहीं था। तब उस दौरान विश्व में एक ताकत अपनी जगह बना रही थी, जो ब्रिटिशों से बराबरी कर सकती थी, और वो ताकत था "रूस" (Russia) और तिब्बतियों ने रूस से अपनी बात – चीत को आगे बढ़ाया था ताकि वो चीन (China) के शासन से मुक्त हो सकें। लेकिन धीरे – धीरे ब्रिटिश (British) सरकार ये समझने लगी थी कि, आने वाले समय में उनके हितों को खतरा पहुंच सकता है। उस दौरान ब्रिटिशों ने योजना बनाकर तिब्बत पर चढ़ाई की और 1904 को ल्हासा में प्रवेश किया। दलाई लामा ने तब एक आखिरी उम्मीद से चीनी शासक से मदद मांगी की, वह इन सैन्य आक्रमणों को रोकें और ल्हासा (Lhasa) से अपनी सेनाएं भी हटा लें। लेकिन चीन नहीं माना था। बल्कि 2000 से भी अधिक मांचू (Manchu) व चीनी सैनिकों ने ल्हासा में हत्या , बलात्कार जैसी कई हिंसक घटनाओं को अंजाम दिया था।

13 फरवरी का दिन, तिब्बतियों का बड़ा वर्ग अपनी आजादी (Freedom) के तौर पर मानता है। (Unsplash)                 

उसके बाद, वर्ष 1949 में चीन ने बिना किसी कारण के फिर एक बाद पूर्वी तिब्बत (East tibet) पर चढ़ाई की और वहां अपना अधिकार जमाना शुरू कर दिया था। उस समय चीन कि आक्रामकता के विरोध में तिब्बत सरकार ने संयुक्त राष्ट्र संघ (United Nation) में अपनी गुहार लगाई लेकिन संयुक्त राष्ट्र संघ ने तिब्बत के इस मुद्दे को नज़रंदाज़ कर दिया था।

इसके बाद जब, 14 वें दलाई लामा (Dalai lama) ने तिब्बत (Tibet) की सत्ता ग्रहण की तब उन्होंने, तिब्बत की शांतिपूर्ण आज़ादी के लिए , तिब्बत प्रतिनिधिमंडल से एक समझौते पर जबरन हस्ताक्षर करवाए थे। लेकिन ये दस्तावेज़ तिब्बत सरकार पर उलटे पड़ गए थे क्यूंकि बाद में जाकर चीन ने उन्हीं दस्तावेजों का प्रयोग कर तिब्बत को अपना उपनिवेश बनाने की योजना को अंजाम दिया था। इसी के तहत् 1951 में लाखों चीनी सैनिकों ने फिर एक बार ल्हासा पर आक्रमण किया। कई मठों पर बम – गोले बरसाकर उनका विनाश कर डाला। लोगों की राजनीतिक स्वतंत्रता की छीन लिया। बड़े पैमाने पर विद्रोह करने वाले लोगों को चीनी सैनिकों ने गिरफ्तार कर कैद कर डाला। हजारों महिलाओं, बच्चों को मौत के घाट उतार दिया था। एक ऐसा निर्ममतापुर्ण प्रतिहार किया, जिसे तिब्बत के लोगों ने शायद ही कभी देखा था। कई वर्षों तक ना तिब्बती लोग इससे उभर पाए ना चीनियों ने उन्हें कभी उठने दिया। करीब 1959 तक चीन ने तिब्बत पर अपना कब्जा स्थापित कर लिया था। एक बार 14 वें दलाई लामा के विरोध करने पर , चीनियों ने उनके पीछे भी अपनी सैना लगा डाली थी और तब दलाई लामा (Dalai lama) चीनी सैनिकों से बचते हुए, भागकर भारत (India) में आ गए थे। उनके साथ – साथ तिब्बतियों की बड़ी सैन भी आयी थी। जो आज भारत के कई हिस्सों में बस चुके हैं।

13 फरवरी का दिन, तिब्बतियों का बड़ा वर्ग अपनी आजादी (Freedom) के तौर पर मानता है। इसी दिन तिब्बत सरकार के मुख्यालय धर्मशाला में तिब्बत के सैकड़ों लोगों ने रैली निकालकर, चीन के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया था। तिब्बतियों ने इस रैली के दौरान अपनी आजादी कि मांग को काफी मजबूत किया है।

14 वें, व अंतिम रूप से क्यूंकि, दलाई लामा ने अपने बाद अभी तक किसी को तिब्बती सरकार के पद पर नहीं बिठाया है। दलाई लामा निरन्तर भारत (India) से ही तिब्बत की आज़ादी मांग उठाते आएं हैं। दलाई लामा के भारत में और भारत के बाहर भी कई समर्थक हैं जो दलाई लामा के साथ तथा उनकी भांति तिब्बत की आजादी को लेकर निरंतर आवाज़ उठाते रहते हैं।
विस्फोटक बल्लेबाज "विवियन रिचर्ड्स" (Vivian Richards) ने हालहीं में अपने ट्वीट में माध्यम से कहा कि "हैप्पी इंडिपेंडेंस डे तिब्बत, अभी बहुत आगे तक जाना है|"
भारतीय कलाकार गजेन्द्र चौहान (Gajendra Chauhan) ने भी तिब्बत को लेके कहा कि "तिब्बत आजादी चाहता है।" इसके अतिरिकत अमेरिकी अभिनेता रिचर्ड गेरे (Richard Gere) , रेसिंग साइकिलिस्ट केडल इवांस (Cadal Evans) , रसेल ब्रांड को एक ब्रिटिश अभिनेता है। इन सभी ने तिब्बत की आजादी के लिए अपनी आवाज़ को हमेशा बुलंद रखा है।

भारत में भी तिब्बत की आजादी के कई समर्थक हैं , जो तिब्बत (Tibet) की स्वतंत्रता का मुद्दा हमेशा वैश्विक स्तर पर उठाते आएं हैं। आज के विश्व में आगे बढ़ता ये विश्व उसमें से एक देश अब भी किसी के कब्जे में पड़ा है। चीन का ये तिब्बत पर से दबदबा हटना और तिब्बत को एक स्वतंत्र राष्ट्र का दर्जा मिलना बहुत जरूरी है।

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