आज भारत में भी बहुत से लोग उम्र बढ़ने के साथ होने वाली समस्याओं से जूझ रहे हैं। (pixabay)  
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बेहतर ज़िंदगी और उम्र बढ़ाने के लिए क्यों जरूरी है ध्यान

Tanu Chauhan

हाँ, यह बात सत्य है कि ध्यान के माध्यम से हम उम्र बढ़ने के प्रभाव को रोक तो नहीं, लेकिन कम जरूर कर सकते हैं। आज की इस आधुनिक दुनिया में लोग तकनीकी से भरे हुए है। लोग अपने कामों में इतने व्यस्त हो गए हैं कि उन्हें अपने स्वास्थ और उम्र का भी ध्यान नहीं। यह समस्या भारत की ही नहीं बल्कि दुनिया भर के लोगों की है। आज भारत में भी बहुत से लोग उम्र बढ़ने के साथ होने वाली समस्याओं से जूझ रहे हैं। इस तकनीकी दुनिया में मनुष्य खो सा गया है। उसके पास अपने आप पर ध्यान देने के लिए 2 मिनट का समय भी नहीं है। उदाहरण के तौर पर: मनुष्य अपने कार्य में इतना व्यस्त हो गया है कि वह समय बचाने के लिए घर का खाना छोड़ बाहर बने उच्च वसा वाले आहार को खाना पसंद करता है।आमतौर पर, उच्च वसा वाले आहार का प्रभाव मुख्य रूप से त्वचा की उम्र बढ़ने का कारण होता है, जिससे त्वचा में ऑक्सीडेटिव तनाव होता है जिससे सूजन संबंधी क्षति होती है।

नकारात्मक सोच हमरी सोचने और समझने की क्षमता को कम कर देती है। (wikimedia commons)

उम्र बढ़ने की सामान्य स्थितियों में तनाव, भावनात्मक असंतुलन, सुनने की हानि, मोतियाबिंद और अपवर्तक त्रुटियां, पीठ और गर्दन में दर्द और पुराने ऑस्टियोआर्थराइटिस, क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज, मधुमेह, नकारात्मक सोच,अवसाद और मनोभ्रंश शामिल हैं। इससे शारीरिक और मानसिक क्षमता में धीरे-धीरे वृद्धि होती है जो मनुष्य के उम्र बढ़ने की समस्या को सीधे प्रभावित करता है। बुढ़ापा भी एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति पर निर्भर करता है, जहां कुछ 70 वर्षीय बहुत अच्छे स्वास्थ्य और कामकाज का आनंद लेते हैं, अन्य 70 वर्ष के उम्र वाले लोग कमजोर होते हैं और उन्हें दूसरों से मदद की आवश्यकता पड़ती है।

कभी सोचा है, एक ही उम्र के दो अलग लोगों के जीवन में इतना अंतर क्यों?

जीवन भर स्वस्थ व्यवहार बनाए रखना, विशेष रूप से संतुलित आहार खाना, ध्यान करना, नियमित शारीरिक गतिविधि में संलग्न होना, और तंबाकू के सेवन से बचना सभी गैर-संचारी रोगों, उम्र बढ़ने की समस्या, शारीरिक और मानसिक क्षमता में सुधार लाती है और इन सब से पैदा होने वाली बीमारियों को दूर रखती है।

हिंदू धर्म में "मेडिटेशन" को "ध्यान" कहा जाता है। ध्यान भारत में उत्पन्न हुआ और हिंदू धर्म (सनातन धर्म) और योग के साथ विकसित हुआ। ध्यान एक संस्कृत शब्द है। "धी" का अर्थ है संदूक या मन और "याना" का अर्थ है चलना या जाना। ध्यान का अर्थ है यात्रा या मन की गति। ध्यान हिंदू धर्म, बौद्ध धर्म और योग का एक केंद्रीय हिस्सा है। हिंदू शब्दों में ध्यान का प्राथमिक उद्देश्य किसी की आत्मा के साथ एकता प्राप्त करना और ब्राह्मण, सर्वव्यापी और सर्वशक्तिमान हिंदू देवता के संपर्क में रहना है, जिसका अंतिम लक्ष्य मोक्ष (बौद्ध धर्म में निर्वाण) की स्थिति तक पहुंचना है।

उम्र बढ़ने की समस्या जैविक स्थिति है, जो एक ना एक दिन आनी ही है परंतु इस समस्या को कम करने के लिए हमें अपनी आदतें सुधार कर ,नकारात्मक आदतों को छोड़ सकारात्मक आदतें अपनाने चाहिए (pixabay)

ध्यान की स्थिति प्राप्त करने के लिए हिंदू धर्मग्रंथ कुछ आसनों का वर्णन करते हैं – योग। प्राचीन भारतीय शास्त्रों जैसे वेद, उपनिषद, महाभारत और भगवद गीता में योग और ध्यान के कई संदर्भ पाए जाते हैं। बृहदारण्यक उपनिषद ध्यान को "शांत और एकाग्र होने के बाद, अपने भीतर स्वयं को महसूस करता है" के रूप में परिभाषित करता है। ध्यान के दौरान, आप अपना ध्यान केंद्रित करते हैं और उलझे हुए विचारों की धारा को समाप्त करते हैं जो आपके दिमाग में तनाव पैदा कर रहे हैं। इस प्रक्रिया के परिणामस्वरूप बढ़ी हुई शारीरिक और भावनात्मक समाप्त कर सकते है। और सकारात्मक विचारधारा को अपनी और आकर्षित कर सकते हैं।

ध्यान के माध्यम से भी हम उम्र बढ़ने की सभी समस्याओं का निवारण कर सकते हैं जैसे: तनावपूर्ण स्थितियों पर एक नया दृष्टिकोण प्राप्त करना, अपने तनाव को प्रबंधित करने के लिए कौशल का निर्माण,आत्म-जागरूकता बढ़ाना, वर्तमान पर ध्यान केंद्रित करना, नकारात्मक भावनाओं को कम करना, कल्पना और रचनात्मकता को बढ़ाना, और धैर्य और सहनशीलता बढ़ाना। ध्यान और विश्राम तकनीकों के कई प्रकार हैं जिनमें ध्यान के घटक होते हैं। सभी आंतरिक शांति प्राप्त करने का एक ही लक्ष्य साझा करते हैं। गाइडेड मेडिटेशन, मंत्र ध्यान, माइंडफुलनेस मेडिटेशन, योग, ट्रान्सेंडैंटल मेडिटेशन और आदि।

उम्र बढ़ने की समस्या जैविक स्थिति है, जो एक ना एक दिन आनी ही है परंतु इस समस्या को कम करने के लिए हमें अपनी आदतें सुधार कर ,नकारात्मक आदतों को छोड़ सकारात्मक आदतें अपनाने चाहिए।

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