उन्होंने अपने बड़े भाई राज कपूर और पिता पृथ्वीराज कपूर की परंपरा को आगे बढ़ाया, लेकिन अपने अनोखे अंदाज से। अपने करिश्माई व्यक्तित्व और मस्तमौला डांस से उन्होंने हिंदी सिनेमा में एक नया रंग भरा, जिसे आज भी याद किया जाता है।
शम्मी कपूर (Shammi Kapoor) का फिल्मी करियर 1953 में ‘जीवन ज्योति’ से शुरू हुआ, लेकिन असली पहचान उन्हें 1957 में ‘तुमसा नहीं देखा’ से मिली। इस फिल्म ने उन्हें एक रोमांटिक हीरो के रूप में स्थापित किया। 1961 की ‘जंगली’ और 1964 की ‘काजल’ जैसी फिल्मों में उनके रॉक-एन-रोल डांस मूव्स और 'याहू' स्टाइल ने युवाओं को दीवाना बना दिया।
उनके हिट गानों—'दिल के झरोखे में', 'ये चांद सा रोशन चेहरा', और 'आजा आजा मैं हूं प्यार तेरा' ने संगीत और सिनेमा को एक नई ऊंचाई दी। 1960 के दशक में ‘तीसरी मंजिल’, ‘एन इवनिंग इन पेरिस,’ और ‘ब्रह्मचारी’ जैसी फिल्मों ने उन्हें सुपरस्टार बना दिया।
उनके लिए मोहम्मद रफी (Mohammed Rafi) की आवाज एकदम फिट थी, दोनों ने मिलकर कई गानों में काम किया। 1974 में फिल्म ‘मंजिल’ के बाद उन्होंने लीड रोल से दूरी बना ली, लेकिन बाद में कई फिल्मों में कैमियो रोल कर फैंस को चौंकाया।
शम्मी कपूर (Shammi Kapoor) का कहना था कि सिनेमा में सफलता का राज है—खुद को वक्त के साथ बदलना। उन्होंने पश्चिमी संगीत और नृत्य को भारतीय सिनेमा में ढाला, जो उनके फैंस के लिए एक क्रांति थी। उनका मस्तीभरा अंदाज, लंबे बाल और रंगीन शर्ट्स आज भी फैशन आइकन के रूप में याद किए जाते हैं।
भारतीय सिनेमा (Indian Cinema) में अगर किसी एक कलाकार को 'विद्रोही स्टार' की उपाधि मिली है, तो वह हैं शम्मी कपूर। रऊफ अहमद की किताब 'शम्मी कपूर: द गेम चेंजर' (The Game Changer) उनकी इसी अनूठी शख्सियत को करीब से दिखाती है। इसमें एक मशहूर किस्सा शम्मी कपूर के इसी 'गेम चेंजर' रवैये को उजागर करता है—जब उन्होंने एक दुर्घटना को अपने करिश्मे में बदलकर फिल्म के एक आइकोनिक सीन को अमर कर दिया।
यह वाकया 1964 की सुपरहिट फिल्म 'कश्मीर की कली' के सबसे रोमांटिक गानों में से एक "ये चांद सा रोशन चेहरा" की शूटिंग के दौरान हुआ था। इस गीत को श्रीनगर की शांत डल झील में शिकारे पर फिल्माया जा रहा था, जिसमें शम्मी कपूर की नायिका शर्मिला टैगोर थीं।
शम्मी कपूर अपनी सिग्नेचर डांसिंग स्टाइल (Signature Dancing Style) के लिए जाने जाते थे, जिसे वह खुद 'फ्रीस्टाइल' या 'याहू' डांस कहते थे। वह कोरियोग्राफर के निर्देशों की परवाह किए बिना अपनी धुन में मग्न होकर नाचते थे।
गाना पूरे जोश में फिल्माया जा रहा था। जोश-जोश में शम्मी कपूर का शिकारे के तंग किनारे पर संतुलन बिगड़ गया और वह झील के बर्फीले पानी की तरफ फिसलने लगे। शम्मी कपूर ने गिरने के बजाय जानबूझकर खुद को पूरी ताकत से झील में धकेल दिया! वह पानी में पूरी तरह से भीग गए। अगले ही पल वह मुस्कुराते हुए तैरकर वापस शिकारे के पास आए और अपनी भीगी हुई 'याहू' मुस्कान के साथ शर्मीला टैगोर की तरफ देखा। यह सब कुछ एक ही 'अनकट' शॉट में कैद हो गया।
सेट पर मौजूद सभी लोग, यहां तक कि निर्देशक शक्ति सामंत भी अचंभित थे। शॉट को न सिर्फ फिल्म में इस्तेमाल किया गया, बल्कि यह सीन शम्मी कपूर के करियर के सबसे यादगार दृश्यों में से एक बन गया।
यह किस्सा इस बात की मिसाल है कि शम्मी कपूर केवल एक अभिनेता नहीं थे, बल्कि एक ऐसे कलाकार थे जिन्होंने अभिनय और जीवन के बीच की रेखा को धुंधला कर दिया था। वह अपने हर किरदार को इतनी सहजता और ऊर्जा से जीते थे कि दुर्घटनाएं भी उनके स्टाइल का हिस्सा बन जाती थीं।
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