<div class="paragraphs"><p>बच्चों में सोशल मीडिया के प्रति आकर्षण है उनमें पनपते विकार, अवसाद और बेसब्री की वजह (Uriel Soberanes/Unsplash)</p></div>

बच्चों में सोशल मीडिया के प्रति आकर्षण है उनमें पनपते विकार, अवसाद और बेसब्री की वजह (Uriel Soberanes/Unsplash)

 

बच्चों में सोशल मीडिया के प्रति आकर्षण

स्वास्थ्य

बच्चों में सोशल मीडिया के प्रति आकर्षण है उनमें पनपते विकार, अवसाद और बेसब्री की वजह

Prashant Singh

न्यूज़ग्राम हिन्दी: चंदा मामा, नंदन वन, चाचा चौधरी, नागराज.. ये नाम सुनकर आपको अपने बचपन के वो दिन तो याद आ ही गए होंगे, जब आप इन कॉमिक्स को पढ़ने के लिए बेताब रहा करते थे। इतना ही नहीं, बल्कि इसके लिए हममें से कइयों ने तो डांट भी सुनी होगी। पर आज का परिवेश बदल चुका है। आज की नवांकुरित पीढ़ी के हाथों में विज्ञान की सबसे बड़ी उपलब्धि आ चुकी है, जिसने सोशल मीडिया के प्रति आकर्षण को बढ़ाया है। बच्चे दिन भर फोन में डूबे हुए कई सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म्स (Social Media Platforms) पर समय बिताते रहते हैं। यही कारण है कि बच्चों में प्रभावी रूप से मानसिक शक्ति की कमी आई है। यहाँ तक कि वो समाज से अलग एक तरफ हो चुके हैं। वैसे ही आज संयुक्त परिवार से इतर एकांकी परिवार का क्रेज चल रहा, और उस एकांकी परिवार में भी बच्चा यदि अपने माँ-बाप से भी अलग हो जाए तो फिर उस बच्चे का व्यक्तित्व-पतन निश्चित है।

यही कारण है कि अमेरिका में इन दिनों सोशल मीडिया के प्रयोग को लेकर आयु सीमा को 13 वर्ष से बढ़ाने के पक्ष में कई नए और कड़े कानूनों की वकालत की जा रही है। ये वकालत तब और तेज हो गई जब सोशल मीडिया के नुक्सानों पर आधारित कई अनुसंधान सामने आए। अमेरिका के सर्जन जनरल विवेक मूर्ति के एक साक्षात्कार के अनुसार 13 साल की उम्र बहुत ही कम उम्र है सोशल मीडिया से जुड़ने के लिए। बता दें कि अभी मेटा, ट्विटर जैसे सोशल प्लाटफॉर्म्स पर जुड़ने के लिए न्यूनतम आयु सीमा 13 है। यह उम्र, बच्चों के विकास का स्वर्णिम समय होता है, जिसमें वह नए आयामों से परिचित होता है और एक सशक्त युवा बनने की तरफ अग्रसर होता है। यह जीवन के सफर का वो पड़ाव होता है जिसमें बच्चा अपने संबंधों को समझता है। पर इस परिस्थिति में सोशल मीडिया का हस्तक्षेप उन्हें इस उपलब्धि से भटका कर उनकी दिशा ही मोड़ दे रहा है।

अमेरिका में इन दिनों सोशल मीडिया के प्रयोग को लेकर आयु सीमा को 13 वर्ष से बढ़ाने के पक्ष में कई नए और कड़े कानूनों की वकालत की जा रही है। (Wikimedia Commons)

आज बच्चों में संयम की भारी कमी आई है, जिसका कारण साफ तौर पर सोशल मीडिया पर अपनी दिनचर्या का एक लंबा समय व्यतीत करना है। बार-बार स्टेटस देखना और लगातार ऐक्टिव रहने से बच्चे के दिमाग पर गहरा और बुरा असर पड़ता है। जिसका परिणाम है कि उनमें भटकाव की मात्रा ज्यादा होती जा रही है। बात-बात पर चिड़चिड़ा हो जाना, आज बच्चों में आम होता जा रहा है, जबकि ऐसा पहले नहीं था। एक स्वस्थ दिमाग ही स्वस्थ शरीर का निर्माण कर सकता है।

यदि हम जामा पीडियाट्रिक्स (JAMA Pediatrics) के ताजा अध्ययन पर प्रकाश डालें तो यह साफ और स्पष्ट तौर पर पाएंगे कि सोशल मीडिया का अत्यधिक प्रयोग दिमाग के संवेदनशील हिस्से पर बुरा असर डालता है, जिसके परिणाम स्वरूप उसका मस्तिष्क और अधिक संवेदनशील हो जाता है। मनोचिकित्सक डॉ. एड्रियाना स्टेसी के एक छपे लेख के अनुसार कोकीन अथवा स्मार्ट फोन आदि चीजों की लत पाल लेने वाले के मस्तिष्क में डोपामाइन की उत्पत्ति होने लगती है। यह डोपामाइन ही है जो हमारे दिमाग को इन क्रियाकलापों को जारी रखने को कहता है। इस नाजुक उम्र में बच्चे को जहां आत्मसंयम के गुण सीखने चाहिए, उसकी जगह वह आत्मपतन के राह पर ढकेल दिया जा रहा है। परिणाम यह है कि उनमें आज मानसिक विकार तेजी से पनप रही है। आए दिन हम खबर पढ़ते हैं की एक नाबालिग ने एक नाबालिग का बालात्कार किया। आप सोच सकते हैं कि इस अपराध की पहुँच कितने नीचे तक आ चुकी है। जिस उम्र में बच्चे छुपम-छुपाई खेलते हैं, उस उम्र में इतना गंदा विकार!

अब यदि इसके हल पर बात करें तो हम फोन की उपयोगिता देखते हुए बच्चों को फोन से दूर भी नहीं कर सकते, पर यह भी सत्य है कि हम इन बड़ी टेक कम्पनियों के आगे अपने नौनिहालों को छोड़ भी नहीं सकते जो इन्हें बर्बादी के मंजर की तरफ ढकेले जा रहे हैं, जिसका अंतिम परिणाम होगा एक बर्बाद राष्ट्र और अंततः एक पतित विश्व।

जब पूरा विश्व कोविड से जूझ रहा था, तब एक डॉक्यूमेन्टरी फिल्म- 'द सोशल डिलेमा' (The Social Dilemma), लोगों के बीच खास चर्चा का विषय बनी हुई थी। उसमें दर्शाये गए परिस्थितियों को हम अपने जीवन में आसानी से देख सकते हैं। यह सत्य है कि आज बेहतरीन डिज़ाइनर्स ने इसे इतना आकर्षित बना दिया हो जो किसी वासना से कम नहीं है। इससे उबरने के लिए एक कठोर प्रण और तीव्र आत्मशक्ति की आवश्यकता है। हमारे कोमल और भोले-भाले बच्चे शायद इतने सबल नहीं हैं पर अभिभावक तो हैं। अभिभावकों को तो सब कुछ प्रत्यक्ष रूप से परिणाम सहित पता है। इसलिए ज़िम्मेदारी भी उन्हीं पर है।

अमेरिकी सरजन मिस्टर मूर्ति अपने साक्षात्कार में सुझाव देते हुए कहते हैं कि अभिभावक चाहें तो संगठित होकर वो इसके खिलाफ एक मोर्चा खोल सकते हैं। वह स्वयं टेक कम्पनियों को कहें कि वो अपने बच्चों को 18 वर्ष की आयु तक सोशल मीडिया का इस्तेमाल नहीं करने दे सकते। यह एक प्रभावी तरीका होगा। इस बात का समर्थन डेमोक्रेट सीनेटर क्रिस मर्फी भी करते हुए कहते हैं कि इस वर्तमान परिप्रेक्ष्य में समाज ने अपने स्वरूप में बहुत कुछ खो दिया है। आज वर्चुअल वर्ल्ड का दौर ऐसा चल गया है जिसमें हम वास्तविक समाज से हटकर कृत्रिम समाज की परिकल्पना को साकार करने में लगे हुए हैं। एक दूसरे से मिलने के लिए अब स्क्रीन कम्यूनिकेशन जरिया बना हुआ है। ऐसे में अभिभावक ही कंपनियों पर ऐसा दबाव डाल सकते हैं कि वो ऐसे ऐल्गोरिदम का निर्माण करे जो बच्चों में लत न पैदा करे। बजाय इसके वो एक ऐसा माहौल निर्मित करें जहां बच्चे एक बेहतर युवा में परिवर्तित हो पाएं।

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