भारत में डॉक्टर को भगवान माना जाता है लेकिन जरा कल्पना करिए यदि यही भगवान आपकी जान का दुश्मन बन जाए तो क्या होगा? पूरे भारतवर्ष में अक्सर कई ऐसी खबरें आती है कि जब हमारा हेल्थ केयर सेक्टर खतरे में नजर आता है या Health Malpractice के कारण कई फर्जी डॉक्टर और कर्मचारी अक्सर पकड़े जाते हैं लेकिन उनकी फर्जी गिरी खत्म नहीं होती। आज हम आपको भारत की राजधानी दिल्ली और गुड़गांव क्षेत्रों में मेडिकल घोटालों से जुड़ी कुछ ऐसे किस्से बताएंगे जिसे सुनकर हैरानी होगी। निशांत भरीहोके (Nishant Bharihoke) गुड़गांव के एक वरिष्ठ वकील हैं जिन्होंने गुरुग्राम व दिल्ली (Gurugram and Delhi) में ऐसे कई Medical Malpractice की जांच की है जिसमें मरीजों की जान पर तख़्तापलट, और नकली डॉक्टर्स / नर्सों के द्वारा इलाज सामने आया हैं।
उन्होंने अपनी किताब “Doctor Death” में कई ऐसा केस शेयर किया है जहाँ मरीजों की मौत हो गई क्योंकि इलाज कर रहे लोग पढ़े-लिखे नहीं थे। पैसों के लिए ऑपरेशन कर दिए गए, मरीज की हालत बिगड़ी, और डॉक्टर्स ने झूठे कागज़ात बनाकर खुद को बचाया। निशांत भड़िहोके इनकी कहानियों के ज़रिये आज यह स्पष्ट कर रहे हैं कि दिल्ली‑एनसीआर और खासकर गुड़गांव कोई मेडिकल टूरिज्म नहीं बल्कि मेडिकल तस्करी और टेरेरिज्म का हब बन चुका है।
गुड़गांव "Tourism नहीं Terrorism" केंद्र
निशांत भरीहोके (Nishant Bharihoke) गुड़गांव के एक वरिष्ठ वकील हैं इन्होंने अपनी किताब डॉक्टर डेथ में कई ऐसी कहानी बताई है जिसके द्वारा यह समझना आसान हो जाएगा कि भारत में Medical Malpractice का Business कैसे चलाया जा रहा है। इन्होंने हाल ही में “किंतु परन्तु विद शीबा” नाम के एक पॉडकास्ट में भी अपनी इस किताब के बारे में बात की और बताया कि उनकी किताब का नाम Doctor Death क्यों है साथ ही गुड़गांव एक टेररिज्म हब क्यों है? आइए इसके बारे में विस्तार से जानतें है :
1.Simran Chhabra Case: जब एक फर्जी डॉक्टर बना एक डॉक्टर की जान का दुश्मन
वकील निशांत भरीहोके (Nishant Bharihoke) के हवाले से एक किस्सा बताया गया, सिमरन 22 वर्ष की एक मेडिकल की छात्रा थी और गुड़गांव (गुरुग्राम) की निवासी थी। 21 जनवरी 2023 को वह हल्का बुखार और खांसी की शिकायत लेकर जगतम्बा मेडिकल सेंटर पहुँची। मामूली लक्षणों के बावजूद अस्पताल में उसे Dynapar 75 इंजेक्शन लगाया गया, आपको बता दें यह इंजेक्शन आम तौर पर एक्सीडेंट्स के बाद लगाया जाता है ताकि दर्द को कम किया जा सके। इंजेक्शन लेने के तुरंत बाद वह बेहोश हो गई और उसके मुंह से झाग निकलने लगा और मात्र चालीस मिनट के भीतर उसकी मृत्यु हो गई। पोस्टमार्टम रिपोर्ट में उसके शरीर पर केवल दो पंक्चर मार्क मिले, जबकि अस्पताल और डॉक्टर ने बाद में छह इंजेक्शन लगाने की बात कही, जिससे कई विरोधाभास उजागर हुए।पिछले कई महीनों तक परिवार न्याय के लिए भटकता रहा।
तब जिला मेडिकल बोर्ड ने जून 2023 में शुरुआती रिपोर्ट में डॉक्टर को क्लीन‑चिट दे दी, जिससे परिवार भारी निराश हुआ। उनके वकील निशांत भड़िहोके ने इस निर्णय को चुनौती देते हुए कहा कि डॉक्टर के बयान और पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में गंभीर विसंगतियाँ हैं। अदालत ने सितंबर 2024 में माना कि डॉक्टर ने IPC की धारा 304A के तहत प्राथमिक परीक्षण योग्य लापरवाही की शक की है, और मुकदमा चलाने का आदेश दिया। यह केस न केवल मेडिकल नेग्लिजेंस का उदाहरण है, बल्कि भारतीय मेडिकल सिस्टम, मेडिकल बोर्ड और पुलिस द्वारा न्याय के ढक‑छांछी का भी सबूत है।
2. ‘Delivery by phone call’: जब फ़ोन कॉल के ज़रिए की गई डिलीवरी
वकील निशांत भरीहोके (Nishant Bharihoke) बताते हैं कि उनके पास एक केस आया जिसमें एक महिला गर्भवती थी जब उसे गुड़गांव के एक अस्पताल में ले जाया गया तो वहां हॉस्पिटल वालों ने मेडिकल सुविधा न होने के कारण किसी अच्छे अस्पताल में जाने की सलाह दे जब महिला को लेकर एक अच्छे प्राइवेट अस्पताल में ले जाया गया तो वहां पर डॉक्टर के नाम पर केवल दो लोग मौजूद थे जो 12वीं पास भी नहीं थे।
हॉस्पिटल बिल्कुल प्राइवेट और खूबसूरत था लेकिन एक भी डॉक्टर नहीं। दरअसल वह अस्पताल पहले एक PG (Paying Guest) हुआ करता था, और जब फायदा ना पहुंच पाया तो उन्होंने अस्पताल बना दिया। उन दो अनपढ़ लोगों ने उसे महिला की डिलीवरी की और उन्हें फोन पर डिलीवरी कैसे करनी है इसकी पूरी जानकारी दी जा रही थी। हालांकि वह महिला और बच्चा दोनों बच नहीं पाए और तब यह कैसे निशांत भरीहोक के पास गया।
3. Kidney stone vs. पूरी किडनी निकालना
एक आश्चर्यजनक कहानी ऐसी भी है जहाँ मरीज को बताया गया कि उसे किडनी स्टोन की समस्या है, लेकिन इलाज करते हुए पूरी किडनी निकाल दी गई।
पहले एक किडनी निकाली गई और फिर दूसरी किडनी निकाली गई मरिज रात भर तड़पता रहा लेकिन कोई भी डॉक्टर नहीं आया। निशांत जी बताते हैं कि कुछ क्लीनिक में नर्स या असमर्थ स्टाफ विशेषज्ञों की जगह सर्जरी करने का प्रयास करते हैं, क्योंकि अधिक पैसे कमाने की लालच होती है। परिणामस्वरूप, मरीज की मौत, लेकिन अस्पताल नकली डॉक्टेशन से खुद को बरी कर लेते हैं।
4. Intestine निकाल देना: समझौता जान बचाने से
कितनी ही कहानियाँ ऐसी हैं जहाँ मरीज को बताकर सर्जरी की गई हो। जैसे small or large intestine निकाल देना, जहां इलाज के नाम पर मरीज की जान पर खेल खेला गया। निशांत जी ने कई मरीजों के परिवार को कोर्ट में प्रतिनिधित्व देकर उनका मामला उजागर किया। जहाँ इलाज करने वाले कोई योग्य डॉक्टर नहीं, बल्कि अनपढ़ या अव्यवसायिक कर्मचारी थे।
वकील निशांत का संघर्ष: लड़ाई कानून के दायरे में
निशांत जी ने इन केसों की वकीलिंग और कानूनी लंबी लड़ाई के ज़रिए समाज के सामने मेडिकल सिस्टम की पोल खोली। उनका उद्देश्य सिर्फ केस जीतना नहीं, बल्कि सिस्टम में सुधार और जागरूकता लाना है। ताकि कमजोर लोग धोखे का शिकार न बनें।
इतना ही नहीं निशांत जी अपने पॉडकास्ट में बताते हैं कि जब उन्होंने फर्जी डॉक्टर और हरियाणा के कुछ अस्पतालों से जुड़े मामलों को अपने हाथ में लिया तब उन पर कई प्रकार के हमले किए गए उन्हें और उनके परिवार को धमकियां दी गई जिसके कारण उन्हें अपने बच्चों को सुरक्षित रखने के लिए विदेश भेजने पड़ा। लेकिन फिर भी निशांत जी ने हार नहीं मानी और लगातार सिमरन केस को लेकर लड़ाई लड़ते रहें।
टीवी और मीडिया में झलकती सच्चाई
‘Dr Zeriwala’ गिरोह गिरफ्तार
निशांत जी के बताए दलीलों के अलावा भी आए दिन ऐसी खबरें आती हैं कि जिसमें फर्जी डॉक्टर का पर्दाफाश होता हैं। हाल ही में गुरुग्राम पुलिस ने ‘Dr Zeriwala’ नाम से एक घोटालेबाज को गिरफ्तार किया। उसने वादा किया कि लकवे (paralysis) का इलाज वह रक्त की बूंदों की निकासी कर सकता है, जिसकी कीमत थी ₹5,000 प्रति बूंद। मरीजों को काटना, थूकना और जटिल प्रक्रिया करना बताया जाता था।
यह धोखाधड़ी निशांत जी द्वारा बताए गए पैटर्न जैसा ही है। जहाँ वास्तविक उपचार कोई नहीं, सिर्फ थैली खाली करना होता है। यह केस सीधे तौर पर दिल्ली‑एनसीआर में एक बड़े पैमाने पर हो रहे जहरीले फर्जी इलाज का हिस्सा लग रहा है।
दक्षिण भारत से भी आए ऐसे मामले
वैसे ही एक रिपोर्ट प्रकाशित हुई थी जहाँ दक्षिण दिल्ली के अस्पताल में अनपढ़ लोग सर्जरी कर रहे थे, दस्तावेज फर्जी बनाए जा रहे थे, और मरीजों को सही इलाज न देकर ट्रायल और marketing gimmicks के तहत बुलाया जाता था। जैसे किसी मार्केटिंग मैनेजर की दीवार कैलेंडर से मरीज लाना और पीड़ितों को mislead करना। यहाँ हज़ारों सर्जरी की संभावना सामने आई, और वो भी बिना डॉक्टर के।
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यह कहानी सिर्फ मरीजों की मृत्यु की नहीं, बल्कि विश्वास, आर्थिक शोषण, और संवेदनहीनता की है। दिल्ली‑एनसीआर और खासकर गुरुग्राम को “टूरिज्म हब” नहीं, बल्कि “मेडिकल आतंकवाद हब” कहा जाने लगा। जहाँ लोलुपता, फर्जी इलाज और जानबूझकर अनपढ़ इलाज जैसी घटनाएँ होती हैं। निशांत भड़िहोके जैसे वकीलों की आवाज इन अँधेरे को उजागर करती है। उनकी पुस्तक Doctor Death इन चौंकाने वाले पहलुओं को सामने लाती है। जहाँ मरीजों की मौत सिर्फ इग्नोरेंस और लालच का परिणाम होती है। वहीं सिस्टम की जड़ में बैठे लोग झूठे डॉक्टरी काग़ज़ बनाकर खुद को बचा लेते हैं। [Rh/SP]