Achleshwar Mahadev Mandir:इस मंदिर का इतिहास करीब 5 हजार वर्ष पुराना बताया जाता है।(Wikimedia Commons) 
सैर-सपाटा

इस मंदिर में भगवान शिव के अंगूठे की होती है पूजा, मंदिर के गर्भ गृह में बनी है ब्रह्म खाई

ज्यादातर शिव मंदिर में शिवलिंग और कुछ में मूर्ति की पूजा होती है। इनमें से कई के पीछे पौराणिक कहानी और किंवदंतियां हैं। लेकिन आज हम बात करने वाले हैं एक ऐसा दुर्लभ शिव मंदिर के बारे में, जहां भोलेनाथ के अंगूठे की पूजा होती है।

न्यूज़ग्राम डेस्क

Achleshwar Mahadev Mandir: राजस्थान के इकलौते हिल स्टेशन माउंट आबू में भगवान शिव के छोटे से बड़े कुल 108 मंदिर हैं। आपको बता दें, पुराणों में तो माउंट आबू को अर्द्ध काशी के नाम से भी जाना जाता है। ज्यादातर शिव मंदिर में शिवलिंग और कुछ में मूर्ति की पूजा होती है। इनमें से कई के पीछे पौराणिक कहानी और किंवदंतियां हैं। लेकिन आज हम बात करने वाले हैं एक ऐसा दुर्लभ शिव मंदिर के बारे में, जहां भोलेनाथ के अंगूठे की पूजा होती है। इस मंदिर का इतिहास करीब 5 हजार वर्ष पुराना बताया जाता है।

दरअसल, हम बात कर रहे हैं अचलेश्वर महादेव मंदिर की। आपको बता दें, इस मंदिर के बारे में शिवपुराण और स्कंद पुराण के अर्बुद खंड में भी उल्लेख है। मंदिर के प्रवेश द्वार पर हाथी की 2 मूर्तियां बनी हुई हैं। इसके अंदर मुख्य मंदिर के अलावा कई छोटे मंदिर हैं। मुख्य मंदिर के सामने प्रवेश द्वार पर पंचधातु की नंदी की प्रतिमा है, जो करीब 4 टन वजनी है।

इस खाई के अंदर ही भगवान शिव के अंगूठे की पूजा होती है। (Wikimedia Commons)

यहां होती है अंगूठे की पूजा

मुख्य मंदिर में 108 छोटे शिवलिंग हैं। यहां आसपास कई प्राचीन प्रतिमाएं स्थापित हैं। इसके गर्भ गृह में अर्बुद नाग की प्रतिमा के बीच में गहरी खाई बनी हुई है। इस खाई के अंदर ही भगवान शिव के अंगूठे की पूजा होती है। बताया जाता है कि इस खाई में जितना भी जल अर्पित किया जाता है, ये खाई कभी भरती नहीं है। इसके अलावा आपको यहां गर्भ गृह में महाराजा कुम्भा द्वारा स्थापित कालभैरव समेत कई देव प्रतिमाएं भी देखने को मिलेगा।

कैसे आया यहां महादेव का अंगूठा?

मंदिर के पुजारी पन्नालाल रावल ने बताया कि यह मंदिर हजारों वर्ष पुराना है। मान्यता है कि इंद्रदेव ने यहां एक ब्रह्म खाई बना दी थी। यहां के वशिष्ठ आश्रम में एक नंदिनी गाय रहती थी, जो खाई में गिर गई थी। इसके बाद ऋषि ने देवी सरस्वती का आह्वान कर गाय को बाहर निकाला था। आज भी वशिष्ठ आश्रम में गाय के मुख से जलधारा बहती है। देवों ने ऋषि को बताया कि आश्रम के बाहर एक गहरी खाई है, इसका कोई उपाय कीजिए। तब अर्बुदांचल पर्वत और अर्बुद नाग को लाकर ब्रह्म खाई पर स्थापित किया गया।

इसके बाद से यहां भूकम्प आने लगे, तो सभी देवता ऋषि वशिष्ठ के पास गए। ऋषि ने समाधि ध्यान कर देखा कि महादेव के यहां नहीं होने से अर्बुद नाग के हिलने-डूलने की वजह से यहां भूकम्प आ रहे थे। तब यहां भगवान शिव के अंगूठे को स्थापित किया गया। तब से अर्बुदांचल पर्वत यहां अचल हो गया। इसलिए इस मंदिर का नाम भी अचलेश्वर हो गया।

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