असम की चंद्रप्रभा सैकियानी की जिन्होंने असम में प्रचलित पर्दा प्रथा का पुरजोर विरोध किया [Sora Ai] 
इतिहास

एक बेबाक महिला जिन्होने असम से हटाई पर्दा प्रथा

20वीं शताब्दी का वह दौर जहां एक और सामाजिक कुरीतियों एवं रूढ़िवादी रीति रिवाजों ने महिलाओं को मानसिक एवं शारीरिक तौर पर जकड़ कर रखा था वहीं दूसरी और असम की यह महिला न केवल महिला उत्थान के लिए तरह-तरह के प्रयास कर रही थी बल्कि इन रूढ़िवादी रीति-रिवाज का मुंह तोड़ जवाब भी दे रही थी।

न्यूज़ग्राम डेस्क

20वीं शताब्दी का वह दौर जहां एक और सामाजिक कुरीतियों एवं रूढ़िवादी रीति रिवाजों ने महिलाओं को मानसिक एवं शारीरिक तौर पर जकड़ कर रखा था वहीं दूसरी और असम की यह महिला न केवल महिला उत्थान के लिए तरह-तरह के प्रयास कर रही थी बल्कि इन रूढ़िवादी रीति-रिवाज का मुंह तोड़ जवाब भी दे रही थी। यह कहानी है असम की चंद्रप्रभा सैकियानी (Chandraprabha Saikiani) की जिन्होंने असम में प्रचलित पर्दा प्रथा का पुरजोर विरोध किया एवं नारी शिक्षा के लिए अथक प्रयास किया। यह ब्लॉग चंद्रप्रभा सैकियानी (Chandraprabha Saikiani) की जीवन पर प्रकाश डालते हुए महिलाओं के लिए किए गए उनके अमूल्य योगदान एवं स्वतंत्रता आंदोलन (Freedom Movement) में उनके द्वारा किए गए संघर्ष को दिखाता है जो हमें काफी उत्साह से भर देगा।

एक अदम्य पुरुषार्थ और सामाजिक परिवर्तन की महिला

चंद्रप्रभा सैकियानी (Chandraprabha Saikiani) का जन्म असम (Assam) के कामरूप जिले के दोनसिंगारी गांव में 16 मार्च 1901 ई को हुआ। बचपन में उनका नाम चंद्रप्रिया दास था। चंद्रप्रभा सैकियानी 11 बच्चों में सातवीं संतान थी । इनके जीवन में उनके पिता रतिराम मजूमदार का बहुत ही प्रमुख योगदान रहा है इनके पिता ने ही अपनी संतान में सामाजिक चेतना का बीज बोया जो आगे चलकर चंद्रप्रिया दास को चंद्रप्रभा सैकयानी बनती है। इनके पिता रतिराम मजूमदार गांव के मुखिया थे और वह एक शिक्षित व्यक्ति थे जिन्होंने अपने बेटियों को पढ़ाई के लिए प्रेरित किया।

चंद्रप्रभा और उसकी छोटी बहन रजनीप्रभा (जो कि आगे चलकर असम की पहली महिला डॉक्टर बनी) उन दिनों समाज की सोच के विपरीत तमाम तरह की कठिनाइयों को पार करते हुए लड़कों के स्कूल पहुंचती जो कि समाज के लिए बहुत ही आश्चर्य की बात थी क्योंकि उस समय अधिकतर महिलाएं शिक्षा के अधिकार से वंचित थी। उन्हें स्कूल जाने में तमाम तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता था जैसे उन्हें पानी और कीचड़ आदि को पार करके अपने स्कूल जाना होता था।

चंद्रप्रभा महिलाओं की दुर्दशा को देखकर इतनी आहत हुई की मात्रा 13 वर्ष की उम्र में ही उन्होंने अपने गांव के स्कूल अकाया में एक झोपड़ी के नीचे लड़कियों की स्कूली शिक्षा की व्यवस्था शुरू की। वह रोज स्वयं स्कूल से सीख कर उस झोपड़ी में लड़कियों को पढ़ाया करते थी और यही से शुरू होती है चंद्रप्रभा की समाज सुधार की यात्रा।

चंद्रप्रभा सैकियानी [X]

एक बार चंद्रप्रभा जब इस झोपड़पट्टी में शिक्षा दे रही थी तभी एक स्कूल निरीक्षक नीलकंठ बरुआ इस झोपड़ी में आए उन्होंने इतनी कम उम्र की बच्ची को महिलाओं को शिक्षा देते देख बहुत प्रभावित हूंए। वह चंद्रप्रभा की क्षमताओं से प्रभावित होकर उन्हें तथा उनकी बहन को नागांव मिशन स्कूल में छात्रवृत्ति प्रदान की।

पर्दा प्रथा का विरोध

चंद्रप्रभा सैकयानी ने 1918 में तेजपुर में छात्रों के सम्मेलन को संबोधित किया था इस समय उनकी उम्र मात्र 17 वर्ष थी इस संबोधन में उन्होंने अफीम के हानिकारक प्रभावों को लेकर लोगों में जन चेतना उजागर किया । यह असम में महिलाओं द्वारा किए गए सबसे पहले सार्वजनिक भाषणों में से एक था।

चंद्रप्रभा सैकयानी ने 1918 में तेजपुर में छात्रों के सम्मेलन को संबोधित किया था [Sora Ai]

इसके बाद 1925 में नागांव में उन्होंने साहित्य सभा (Sahitya Sabha) के एक सत्र में हिस्सा लिया। स्टेज पर पहुंचकर उन्होंने वहां मौजूद महिला एवं पुरुषों को संबोधित किया । इस भाषण के दौरान ही उन्होंने यह पाया कि महिलाएं बास की अवरोध के पीछे पुरुषों से अलग बैठी हुई है चंद्रप्रभा ने मंच पर आकर असमानता की सार्वजनिक रूप से निंदा की एवं महिलाओं को अवरोध तोड़कर पुरुषों के साथ मिलने का आग्रह किया। इस प्रकार इन्होंने असम में प्रचलित पर्दा प्रथा का सर्वथा खंडन किया। एक इंटरव्यू के दौरान उनके पोते ने बताया कि गांव के तालाबों से निम्न जाति के लोगों को पानी पीने का अधिकार नहीं था इसके खिलाफ भी चंद्रप्रभा ने लड़ाई लड़ी एवं सभी लोगों के लिए तालाब का पानी मुहैया करवाया। इन्होंने अनुसूचित जाति के लोगों के मंदिर प्रवेश के लिए भी संघर्ष किया परंतु उनका यह संघर्ष सफल न हो पाया।

स्वतंत्रता आंदोलन का संघर्ष

चंद्रप्रभा सैकयानी महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) के विचारों से अती प्रेरित थी जिसके फलस्वरुप उन्होंने 1921 में असहयोग आंदोलन (Non-Cooperation Movement) में भाग लिया और महिलाओं को इसके लिए संगठित किया जिसके फलस्वरुप 1926 में असम में पहली संगठित महिला आंदोलन का उदय हुआ। इन्होंने असम प्रादेशिक महिला समिति की स्थापना की जिसका मुख्य उद्देश्य महिलाओं की शिक्षा, बाल विवाह, महिला स्वरोजगार ,हद्करघा और हस्तशिल्प जैसे सामाजिक मुद्दों पर काम करना था।

चंद्रप्रभा सैकयानी महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) के विचारों से अती प्रेरित थी [X]

इन सबके साथ-साथ चंद्रप्रभा इस समिति की पत्रिका अभियात्रि का संपादन भी 7 वर्षों तक किया। चंद्रप्रभा सैकयानी न केवल महिलाओं की शिक्षा के लिए कार्य कर रही थी बल्कि स्वतंत्रता आंदोलन से उन्हें जोड़ने के लिए भी पुरजोर मेहनत कर रही थी वह साइकिल के जरिए पूरे गांव भर में यात्रा कर महिलाओं को स्वतंत्रता आंदोलन के बारे में जागरूक करती एवं उन्हें इसमें जोड़ने का कार्य करती है। सन 1930 में उन्होंने असहयोग आंदोलन में भी भाग लिया जिसके कारण उन्हें जेल भी जाना पड़ा। वह 1947 तक कांग्रेस पार्टी (Congress Party) की कार्यकर्ता के तौर पर कार्य करती रही।

व्यक्तिगत जीवन और एक अकेली मां की यात्रा

चंद्रप्रभा सैकयानी का विवाह बहुत कम उम्र में ही कर दी गई थी। उनकी शादी एक बड़े उम्र के व्यक्ति के साथ कर दी गई थी जिनका उन्होंने हमेशा विरोध किया एवं इस शादी को इंकार करती रही। तेजपुर में कार्य करते समय उनकी डंड़ीनाथ कलिता नमक लेखक से प्रेम संबंध बना जिसके बाद उन्होने एक पुत्र अतुल सेकिया को जन्म दिया। परंतु उनका यह प्रेम संबंध बहुत दिनों तक नहीं चल पाया और वह अलग हो गए चंद्रप्रभा अकेली मां बनी और समाज के तिरस्कार और विरोध के बावजूद अपने बेटे का पालन पोषण किया और संस्कारी बनाया। 1972 में चंद्रप्रभा सैकयानी को पद्मश्री से नवाजा गया।

Also Read: क्या आप जानतें है भारत की पहली महिला वकील के बारे में? जिन्हें ज़हर देकर मारने की कोशिश की गई थी!

चंद्रप्रभा सैकियानी नारी सशक्तिकरण, सामाजिक सुधार और स्वतंत्रता संग्राम की प्रेरणास्रोत थीं। उन्होंने जिस युग में महिलाओं की आवाज दबाई जाती थी, उस दौर में शिक्षा, पर्दा प्रथा, जातिवाद और बाल विवाह जैसी सामाजिक बुराइयों के खिलाफ संघर्ष किया। वह सिर्फ विचारों की ही नहीं, बल्कि कर्म की भी प्रतीक थीं। अकेली मां होकर भी उन्होंने अपने बेटे को अच्छे संस्कार दिए और समाज की बेड़ियों को तोड़ा। उनका जीवन यह संदेश देता है कि सच्चा परिवर्तन साहस, समर्पण और अडिग निष्ठा से ही आता है। चंद्रप्रभा सैकियानी आज भी हर महिला के लिए एक प्रेरणा हैं।[Rh/SP]

गणपति 2025: विचार, देशभक्ति और सोशल मीडिया

टीवी सितारों ने धूमधाम से विघ्नहर्ता का किया स्वागत, शेयर की तस्वीरें और वीडियो

दक्षिण कोरिया: अदालत ने पूर्व प्रधानमंत्री हान के गिरफ्तारी वारंट पर सुनवाई की

सीसीआई ने अदाणी समूह द्वारा जयप्रकाश एसोसिएट्स लिमिटेड के अधिग्रहण को मंजूरी दी

राष्ट्रपति ने सुप्रीम कोर्ट में दो नए जजों आलोक अराधे और विपुल एम. पंचोली की नियुक्ति को दी मंजूरी